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इस मुस्लिम की बांसुरी से निकलते हैं भगवान कृष्ण के प्यार भरे सुर

Admin
Published on: 13 April 2016 4:10 AM GMT
इस मुस्लिम की बांसुरी से निकलते हैं भगवान कृष्ण के प्यार भरे सुर
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शाहजहांपुर: हिंदू बनेगा, न तू मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, तो इंसान ही बनेगा। कवि साहिर लुधियानवी की इन्हीं चंद लाइनों को सच साबित कर रहे हैं यूपी में रहने वाले नवी मोहम्मद खां। भगवान ने तो केवल इंसान बनाए थे। वो तो हमारे बीच के ही कुछ लोग थे, जिन्होंने इंसानियत को मजहबी दर्जा दे दिया। किसी को हिंदू, तो किसी को मुसलमान बना दिया। पर कहते हैं जिसके दिल में ही प्यार हो, वो ये मजहबी फर्क नहीं मानते।

एक तरफ जहां पूरे देश में हिंदू मुस्लिम को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं उत्तर प्रदेश का एक व्यक्ति सिर्फ संगीत की भाषा को समझता है। हम आपको लेकर चलते हैं, यूपी के एक गांव में, जहां संगीत का जादूगर रहता है। मुफलिसी में भी बांसुरी की ऐसी धुन निकालता है, जिसे सुनकर कोई भी मदहोश हो जायेगा। जी हां, शाहजहांपुर में रहने वाले नवी मोहम्मद खां को लखनऊ से बांसुरी वादक का सम्मान प्राप्त है। बांसुरी वादक बदहाली के बावजूद अपने मीठे सुरों को गांवों की गलियों में बिखेरकर कर बांसुरी के संगीत को जिंदा रखना चाहता है। फिलहाल एक सामाजिक संस्था बांसुरी के सुरों के जादूगर की मदद के लिए आगे आई है।

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नवी मोहम्‍मद हैं भगवान श्रीकृष्‍ण के भक्‍त

कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण जब बांसुरी बजाते थे, तो बांसुरी की धुन पर इंसान तो क्या साथ में जानवर भी झूमने लगते थे। गोपियां अपने घरों का रास्ता भटक जाती थी और ग्वाले दूध दुहना भूल जाते थे। कृष्ण की बांसुरी सुनकर लोग अपने अपने काम छोड़कर ऐसे भागकर उनके पास चले आते थे, मानों कोई चुम्बक उन्हें जबरदस्ती खींचता था। कई बार राधा भी उस सुरों की रानी बांसुरी से जलन महसूस करती थी। कहते हैं जिस प्‍यार से कृष्‍ण बांसुरी पर मनमोहक धुन छेड़ते थे, ठीक उसी तरह नवी मोहम्‍मद भी बांसुरी के उस्‍ताद हैं।

बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं नवी

नवी मोहम्मद खां की बांसुरी को भी सुनकर वहां के लोग अट्रैक्‍शन महसूस करते हैं। वैसे तो उनका नाम नवी मोहम्मद खां है और वो हरदोई के शाहाबाद के रहने वाले हैं। लेकिन ये भगवान श्रीकृष्ण और उनकी बांसुरी के सबसे बड़े भक्त हैं। यूं तो 65 साल की उम्र में नवी इस वक्त बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन इनका हुनर उन्हें अपनी बदहाली का एहसास नहीं होने देता है।

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लज्‍जाराम औ नवी मोहम्‍मद खां लज्‍जाराम औ नवी मोहम्‍मद खां

हर फिल्‍मी गाने की धुन को बजा सकते हैं बांसुरी पर

नवी मोहम्मद जिस गांव में जाते हैं,वहां अपनी बांसुरी की धुन से लोगों को अपनी तरफ खींच लेते हैं। दरअसल नवी मोहम्मद 45 साल से भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी के भक्त हैं। उनका दावा है कि वो हर फिल्मी और धार्मिक गानों पर अपनी बांसुरी से ऐसी धुन निकाल सकते है, जो किसी को भी अपनी ओर खींच सकती है। नवी मोहम्मद का कहना है कि वो अब तक देश के सभी राज्यों के हजारों गांवों में भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी का संगीत पहुँचा चुके हैं ताकि बांसुरी के संगीत से लोग जुड़ें और बांसुरी को जिंदा रखा जा सके। उनका कहना है कि सरकार की बेरूखी के चलते उनका ये बांसुरी का संगीत धीरे-धीरे कम पड़ता जा रहा है।

लखनऊ दूरदर्शन से मिल चुका है सम्‍मान

नवी मोहम्मद बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चैरसिया को अपना आदर्श मानते हैं। कुछ साल पहले इन्हें लखनऊ दूरदर्शन ने बांसुरी की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए सम्मानित भी किया था। पर आज बदहाली से इनकी कमर झुकती जा रही है। लेकिन इसके बावजूद बांसुरी जो संगीत निकलता है, वो काबिले तारीफ है।

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नवी मोहम्‍मद को लोक संगीत में शामिल करने की है गुजारिश

वहीं ग्रामीण संगीत मंडली संस्था के मेंबर लज्जाराम की मानें, उनके गांव में ये बुजुर्ग काफी समय से बांसुरी से कई गानों की धुन निकाल रहे हैं। नवी मोहम्मद ने इतनी अच्छी धुन निकालते हैं कि इन्हें सुनने के लिए गांव के ज्यादातर लोग उनके पास आ जाते हैं। लेकिन लज्जाराम को बहुत अफसोस है कि इतना अच्छा बांसुरी वादक आज इस हाल मे अपनी जिंदगी बसर कर रहा है। इस इंसान ने अपनी पूरी जिंदगी बांसुरी के नाम कर दी है। उनका कहना है कि वह एक संस्था चलाते हैं। उसमें उनको मौका जरूर देंगे और साथ ही जिलाधिकारी से भी बात करेंगे कि बांसुरी वादक नवी मोहम्मद को लोक संगीत मे शामिल किया जाए। जिससे कि उनकी रोजी रोटी और सम्मान मिल सके, जिसके वह हकदार हैं।

तमन्‍ना संगीत के पुराने आयामों को जिंदा रखने की

उनकी बांसुरी को सुनने वाला हर कोई कहता है कि नवी मोहम्मद की बांसुरी में बिल्कुल वही कशिश महसूस होती है जैसा कि वे अपने बड़े बुजुर्गों से भगवान कृष्ण की बांसुरी के बारे में सुना करते थे। सामाजिक संस्था के लज्जाराम का कहना है कि जरूरत है। ऐसे कलाकारों की कला को निखारने और उन्हें एक प्लेटफार्म देने की ताकि संगीत के पुराने आयामों को जिंदा रखा जा सके। वहीं नवी मो‍हम्‍मद का कहना है कि वह भगवान श्रीकृष्‍ण की सबसे ज्‍यादा प्रिय बांसुरी के खोते अ‍स्तित्‍व को वह जिंदा रखना चाहते हैं।

कम्‍युनिटी से कोई फर्क नहीं पड़ता

नवी मोहम्मद का कहना है कि उन्हें कभी ये नहीं लगा कि वे एक मुसलमान हैं। उनकी कम्युनिटी के लोगों ने भी उनकी बांसुरी की तारीफ की है। उनका कहना है कि भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी की धुन को आने वाली पीढ़ी को सिखाना चाहते हैं। लेकिन जरूरत उस मदद की है, जिसके सहारे वो अपना आगे का सफर तय कर सकें।

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