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ओह ! तो इस डर से यहां के लोग नहीं मनाते रक्षाबंधन का त्यौहार
ना ना बाबा ना, राखी बिल्कुल नहीं! जहां सावन की पूर्णिमा को पूरे देश की बहने अपने भाईयों की कलाईयों में प्यार के कच्छे धागे बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं
संभल: ना ना बाबा ना, राखी बिल्कुल नहीं! जहां सावन की पूर्णिमा को पूरे देश की बहने अपने भाईयों की कलाईयों में प्यार के कच्छे धागे बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं, वहीं संभल जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां के लोग राखी देखकर दूर भागते हैं। यहां कोई भाई अपनी किसी बहन से सिर्फ इसलिए राखी नहीं बंधवाता है कि उसे डर है कि उसकी बहन उससे कहीं ऐसा उपहार न मांग ले, जिससे उससे अपना घर द्वार त्यागना पड़ जाए।
क्यों नहीं बंधवाते राखी?
- संभल के बेनीपुर चक गांव में रक्षाबंधन का त्योहार सदियों से नहीं मनाया जाता है।
- कोई बहन अपने भाई को राखी नहीं बांधती है। ऐसा क्यों है, इसका प्रमाणिक जवाब तो किसी के पास नहीं लेकिन बुजुर्गो की जुबानी एक कहानी प्रचलित है।
- बुजुर्ग ऋषिराम यादव बताते हैं कि सैंकड़ों साल पहले उनके बुजुर्ग अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव सेमरई के निवासी थे।
- यह यादव व ठाकुर बाहुल्य गांव था। जमींदारी यादव परिवार की ही थी।
- ठाकुर का कोई बेटा नहीं था, इसलिए ठाकुर परिवार की एक युवती यादव परिवार के लड़कों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थी।
- परंपरा के अनुसार यादव भाई अपनी बहन को उपहार भी देते थे। एक दिन ठाकुर की बेटी ने यादव के पुत्रों को राखी बांधी और उपहार में उनके गांव की जमींदारी मांग ली।
- बात के धनी जमींदार अपनी मुंहबोली बहन को रक्षाबंधन के दिन ही गांव व उसकी जमींदारी देकर खुद गांव से निकल गए।
- हालांकि बाद में ठाकुर बहन ने बहुत कहा कि यह तो मजाक था लेकिन यादव परिवार ने कहा कि हमारे यहां बहनों से मजाक की परंपरा नहीं है,जो दे दिया, सो दे दिया।
वह जमीदार यादव परिवार संभल के बेनीपुर गांव पहुंचकर बस गए। उस दिन के बाद इन यादव परिवारों ने बहनों से राखियां बंधवाना इस लिए छोड़ दिया, कि कहीं दोबारा कोई बहन उन्हें अपना घर द्वार छोड़ने पर मजबूर न कर दे।