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मोदी सरकार @3: काशी की गलियों में विकास की रफ्तार बढ़ी, पर वर्ल्ड क्लास का सपना नहीं हुआ पूरा

काशी से सांसद चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी के पीएम बनने से काशीवासियों के सपनों में पंख लग गए हैं। लोगों को उम्मीद है, कि उनके शहर की किस्मत बदल जाएगी।

sujeetkumar
Published on: 26 May 2017 4:57 PM IST
मोदी सरकार @3: काशी की गलियों में विकास की रफ्तार बढ़ी, पर वर्ल्ड क्लास का सपना नहीं हुआ पूरा
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: मोदी सरकार के आज शुक्रवार (26 मई) को तीन साल पूरे हो गए हैं। वाराणसी से सांसद चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी के पीएम बनने से काशीवासियों के सपनों में पंख लग गए हैं। काशी के लोगों को उम्मीद है, कि एक दिन उनके शहर की किस्मत बदल जाएगी। वैसे कई मोर्चों पर तेजी से काम चल भी रहा है। विकास के पैमाने पर काशी को वल्र्ड क्लास बनाने की तैयारी चल रही है।

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माना जाता है कि नरेंद्र मोदी जब किसी इलाके को चुनाव क्षेत्र चुनते हैं, तो उसे अपना घर मानकर संवारते हैं। तीन साल पहले मोदी ने विकास रूपी पौधे की जो नींव बनारस में रखी थी अब वो बढ़ने लगी है। चाहे रिंग रोड हो या फोरलेन रोड या फिर आईपीडीएस सिस्टम, पीएम का संसदीय क्षेत्र वाराणसी हाईटेक बनाने की ओर अग्रसर है।

पीएम अब तक इस शहर को लगभग 22 हजार करोड़ की सौगात दे चुके हैं। हालांकि अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोगों को केंद्र सरकार से निराशा हाथ लगी है। कई मोर्चों पर उतनी तेजी से काम नहीं हो पाया जितनी लोगों को उम्मीद थी।

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रफ्तार पकड़ने लगी रिंग रोड योजना

वाराणसी को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए मोदी ने रिंग रोड योजना की आधारशिला रखी थी। लगभग 262 करोड़ की इस योजना के जरिए संदहा से हरहुआ तक लगभग 16 किमी क्षेत्र में रिंग रोड बननी है। शुरुआती स्तर पर योजना में केंद्र सरकार के अधिकारियों को काफी परेशानी हुई।

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शहर में जाम की समस्या दूर होगी

खासतौर से भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों की नाराजगी के चलते इसकी रफ्तार सुस्त रही, लेकिन यूपी में योगी सरकार के आने के बाद से रिंग रोड का काम तेजी से चलने लगा है। अब तक इस परियोजना का 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है। आने वाले आठ- दस महीनों में इसके पूरा होने की उम्मीद लगाई गई है। माना जा रहा है कि रिंग रोड बन जाने से शहर में जाम की समस्या से लोगों को काफी हद तक निजात मिल जाएगी।

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परवान चढ़ी आईपीडीएस योजना

बिजली चोरी रोकने और तारों के जंजाल को हटाने के लिए ऊर्जा मंत्रालय ने आईपीडीएस योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत पहले सेक्टर के लिए 442 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। कुल तीन सेक्टरों में काम होना है। इसके तहत शहर के सभी बिजली तारों को अंडरग्राउंड किया जाना है।

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वाराणसी जैसे प्राचीन शहर जहां की गलियां और सडक़ें बेहद संकरी हैं वहां तारों के जंजाल को खत्म कर अंडरग्राउंड करना बेहद कठिन माना जाता है। यह योजना अब परवान चढऩे लगी है। शहर के एक चौथाई हिस्से में तारों को भूमिगत करने का काम लगभग पूरा हो चुका है। लंका स्थित कबीरनगर को मॉडल के तौर पर विकसित किया गया है।

हालांकि केन्द्र सरकार की इस परियोजना का काम आसान नहीं है। आईपीडीएस के अधिकारियों को कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। मसलन सडक़ों की खुदाई को लेकर दूसरे विभागों से तालमेल न बन पाना। इसके अलावा दूरसंचार कंपनियों के तारों के जाल को खत्म करना भी एक समस्या है।

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डीजल रेल इंजन कारखाने की क्षमता बढ़ी

रेलवे मंत्रालय ने 266 करोड़ रुपए खर्च करके वाराणसी में डीजल लोकोमोटिव वक्र्स (डीएलडब्लू) की क्षमता एक चौथाई बढ़ाने का काम शुरू किया है। वाराणसी के इस इकलौते बड़े कारखाने में डीजल इंजन बनाए जाते हैं,लेकिन टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन की कमी के कारण कुछ साल से यह कारखाना मंदी का शिकार हो रहा था।

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मोदी के आने के बाद इस कारखाने के अच्छे दिन आ गए हैं। डीएलडब्लू कारखाने के जरिए हजारों परिवारों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से रोजगार मिला हुआ है।

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बुनकरों के लिए ट्रेड फेसिलिटी सेंटर

सरकार बनने के बाद मोदी जब पहली बार बनारस पहुंचे तो उन्होंने यहां के बुनकरों की बदहाली दूर करने के लिए ट्रेड फेसिलिटी सेंटर की आधारशिला रखी थी। लगभग 280 करोड़ रुपए का यह प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है। सेंटर में बुनकर खुद सामान बनाएंगे और सीधे बायर को बेचेंगे। साथ ही बुनकरों को आधुनिक टेक्नोजॉली से जोडऩे की भी योजना बनाई गई है।

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शुरुआती स्तर पर यह प्रोजेक्ट बुनकरों के लिए मील का पत्थर बताया गया, मगर बाद बहुत से लोग इससे सहमत नहीं है। बुनकरों के मुताबिक केन्द्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को चंद बुनकर नेताओं ने हाईजैक कर लिया है। गिनती के बुनकरों को इस सेंटर का लाभ मिल रहा है जबकि अधिकांश बुनकर पहले जैसे ही हाल में हैं। बुनकरों की एक बड़ी आबादी को इस सेंटर का लाभ नहीं मिल पा रहा है जिसका मलाल उनके दिलों में है।

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घाटों पर अब भी गंदगी

तीन साल पहले मोदी ने प्रसिद्ध अस्सी घाट पर फावड़ा चलाकर स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। शुरुआती कुछ दिनों तक तो मोदी के इस संदेश का असर दिखा, लेकिन दिन बीतने के साथ ही लोगों ने मोदी के इस संदेश को भुला दिया। आलम यह है कि बनारस के 84 घाटों में से सिर्फ एक दर्जन घाटों पर ही सफाई की माकूल व्यवस्था दिखती है।

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इसके अलावा अधिकांश घाटों पर पहले की तरह ही हालत दिखती है। जिन घाटों पर सफाई है उसमें जिम्मेदार अधिकारियों की बजाय स्थानीय लोगों और स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका अहम है। घाटों की तस्वीर देखने के बाद साफ लगता है कि सफाई के मोर्चे पर मोदी सरकार को अभी बहुत कुछ करना है।

अव्यवस्था का आलम यह है कि दशाश्वमेध और राजेंद्र प्रसाद जैसे विश्वप्रसिद्ध घाटों पर महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम में दरवाजे तक नहीं लगे हैं। पिछले दिनों पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने जब इन घाटों का दौरा किया तो वे यहां के हालात देखकर दंग रह गईं।

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अधर में इलाहाबाद-हल्दिया जल परिवहन योजना

धीमी रफ्तार से चलने वाली केन्द्र की योजनाओं में इलाहाबाद-हल्दिया जल परिवहन योजना भी है। कछुआ सेंचुरी के प्रतिबंधों के चलते यह योजना भी परवान नहीं चढ़ पा रही है। गंगा में जलपोत जो एक बार आया तो फिर नहीं लौटा। इतना ही नहीं अनुमति के फेर में जलपोत महीने भर से अधिक समय तक आदिकेशव घाट के पास ही खड़ा रहा। इसके अलावा रिंग रोड अमृत योजना और हृदय योजना के तहत काशी को संवारने का सपना भी अभी साकार नहीं हो सका है।

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कायम है जाम का झाम

शहर की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है जाम। जाम के कारण छोटी से छोटी दूरी तय करने में काफी वक्त लग जाता है। मोदी के सांसद बनने के बाद यातायात प्रबंधन के लिए एकीकृत व्यवस्था बनाने की घोषणा हुई थी और इस पर कुछ काम भी हुआ, लेकिन हकीकत यह है कि जाम अभी भी लोगों के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

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पीएम की काशी यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक खुद जाम में फंस गए। जाम से निजात दिलाने के लिए लहरतारा-चौकाघाट फ्लाईओवर का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार काफी सुस्त है। इसके अलावा राज्य सरकार की तरफ से लगभग 11 किलोमीटर के एक फ्लाईओवर बनाने का खाका खिंचा गया है, लेकिन यह योजना भी अभी दूर की कौड़ी नजर आती दिख रही है।



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