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‘फ्लश’ हो गयी 2900 करोड़ रुपये की टॉयलेट घोटाले की जांच रिपोर्ट
राजकुमार उपाध्याय की स्पेशल रिपोर्ट
लखनऊ: पिछली सरकारों के कार्यकाल में 2900 करोड़ रुपये के टॉयलेट घोटाले की रिपोर्ट नौकरशाही और राजनेताओं के गठजोड़ के चलते दफना दी गयी है। करोड़ों रुपये का गोलमाल हो गया। इस घोटाले की जांच रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई, इसे लेकर बना रहस्य अब तक बरकरार है। इस पैसे जो टॉयलेट बनाए जाने का आंकड़ा भरा गया है, वह जमीन पर नदारद हैं। जो बने भी उसमें कमीशनखोरी इस हद तक हुई कि लाभार्थी के लिए टॉयलेट बनाना टेढ़ी खीर हो गया। 2002 से 2012 तक दस साल के समय में किए गए इस घोटाले के दौरान पंचायतीराज महकमे की जिम्मेदारी कुछ समय तक योगी सरकार में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या के हाथ में भी थी। मोदी सरकार में अब इस योजना का नाम बदलकर स्वच्छ भारत अभियान किया जा चुका है।
झूठी थी पंचायती राज विभाग की रिपोर्ट
केंद्र सरकार की सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएसी) योजना प्रदेश में 2002 में अस्तित्व में आई। यह योजना ग्रामीण इलाकों के घरों में 2017 तक शौचालय बनाए जाने के उद्देश्य से शुरू की गयी थी। उस समय पंचायती राज विभाग ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को जो रिपोर्ट दी उसमें बताया गया कि पिछले दस साल में अभियान के तहत 1.71 करोड़ टॉयलेट बनाए गए हैं पर वास्तविकता इससे जुदा निकली।
हकीकत यह है कि गांवों के सिर्फ 55 लाख घरों में टॉयलेट थे। 1.16 करोड़ टॉयलेट गायब हैं। उस समय भी सरकार ने टायलेट बनाने के लिए सब्सिडी दी थी। 2002 में जब यह योजना प्रदेश में शुरू हुई थी उस समय सब्सिडी की यह राशि 600 रुपये थी, जो 2012 तक बढक़र 4,500 रुपये हो गयी थी। टीएसी की रिपोर्ट बता रही थी कि गांवों के सिर्फ 17.50 फीसदी घरों में टायलेट नहीं है जबकि जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार 78 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण घरों में टॉयलेट नहीं था।
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हवाहवाई निकले आंकड़े
टीएसी की रिपोर्ट में जिन दो जिलों के गांवों के 100 फीसदी घरों में टायलेट निर्माण का दावा किया गया था वे आंकड़े भी हवा हवाई निकले। बताया गया था कि लखीमपुर खीरी और फर्रुखाबाद के 100 फीसदी ग्रामीण घरों में टॉयलेट हैं, जबकि 2011 की जनगणना रिपोर्ट बता रही थी कि इन जिलों के 81.70 और 76.10 फीसदी घरों में टॉयलेट नहीं है। तब तत्कालीन सरकार के कद्दावर मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने साफ कहा था कि घोटाले में शामिल लोगों पर सख्त कार्रवाई होगी, चाहे वे कितने ही प्रभावशाली क्यों न हों। जांच भी हुई पर समय बीतने के साथ यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई। बस अंतर इतना है कि उस कालखंड में बसपा की भी पूर्ण बहुमत की सरकार थी और स्वामी प्रसाद मौर्या पंचायतीराज मंत्री थे जो अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
कार्रवाई का पता नहीं
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक उस समय इस प्रकरण में जिलों से रिपोर्ट मांगी गयी थी। 2014 में मंडल स्तर पर कमेटी बनाई गयी। इस कमेटी से कामों का सत्यापन कराया जाना था। कुछ जिलों से रिपोर्ट भी आयी पर उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज विभाग चंचल तिवारी से जब इस बारे में जानकारी की गयी तो उन्होंने बताया कि मामला कई साल पुराना है। दिखवाकर बताएंगे।
पूर्व निदेशक के घोटालों की जांच लंबित
पंचायतीराज विभाग के निदेशक रहे दयाशंकर श्रीवास्तव पर भी भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे। उन पर लगे आरोपों की जांच ईओडब्लू से कराने का निर्णय लिया गया। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार नियुक्ति विभाग ने पीसीएस अफसर दयाशंकर के खिलाफ ईओडब्लू/सतर्कता जांच कराने के लिए गृह विभाग से अनुरोध किया मगर चार वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जांच अब तक लंबित है।
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जबकि 22 अप्रैल 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने जांच के संबंध में जारी किए गए शासनादेश में यह साफ किया है कि कोई भी जांच तीन महीने के अंदर पूरी कर ली जाए। आपको बता दें कि पीसीएस अधिकारी दयाशंकर पर शौचालय निर्माण के साथ ही विभाग की पंचायत शक्ति पत्रिका की छपाई में अनियमितता का आरोप है। उन पर आय से अधिक संपत्ति अॢजत करने का भी आरोप है।