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टॉयलेट : एक भ्रम कथा, सच्चाई ओडीएफ की

raghvendra
Published on: 5 Oct 2018 3:21 PM IST
टॉयलेट : एक भ्रम कथा, सच्चाई ओडीएफ की
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: खुले में शौच से मुक्ति यानी ओडीएफ को लेकर मुख्यमंत्री भले ही प्रदेश भर के अफसरों को लताड़ लगाएं, लेकिन उन्हीं के गृह जनपद गोरखपुर में अफसरों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। स्वच्छता और ओडीएफ के नाम पर करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी अधूरे टॉयलेट, टूटे मोबाइल टॉयलेट, शौचालय की किस्त के लिए नगर निगम से लेकर विकास भवन तक बाबुओं की दौड़ की तस्वीरें आम हैं। गोरखपुर नगर निगम ने तो ओडीएफ के प्रारूप पर फर्जी हस्ताक्षर कर शहर को ओडीएफ घोषित कर दिया। पार्षदों के विरोध के चलते अफसर शासन की टीम को ओडीएफ जांचने के लिए नहीं बुला पा रहे हैं।

  • नगर निगम ने 70 वार्डों को ओडीएफ घोषित करते हुए 21, 29 अगस्त और 7 सितम्बर को अखबारों में विज्ञापन दिया। पेंच तब फंस गया जब ओडीएफ घोषित होने के बाद पांच सवालों वाले प्रारूप पर पार्षदों से हस्ताक्षर कराए जाने लगे। कमोबेश सभी पार्षदों ने प्रारूप पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। पार्षदों से जिन पांच बिंदुओं पर सहमति ली जा रही थी वे ये थे :
  • वार्ड में सभी व्यवसायिक क्षेत्रों के एक किमी के दायरे में एक सार्वजनिक शौचालय है।
  • वार्ड के सभी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों ने स्वयं घोषणा की है कि पंजीकृत सभी छात्रों की पहुंच में शौचालय है। वह उसका प्रयोग घर अथवा विद्यालय में करते हैं।
  • वार्ड में कोई भी व्यक्ति खुले में शौच करता नहीं पाया गया।
  • वार्ड के सभी घरों, जिनमें शौचालय निर्माण की जगह थी, उनमें शौचालय का निर्माण हो चुका है।
  • वार्ड के सभी घरों के निवासी जिनके पास शौचालय निर्माण की जगह नहीं है, वहां 500 मीटर की दूरी पर सामुदायिक शौचालय है।

कोई भी पार्षद इन पांच सवालों में किसी से भी सहमत नहीं था। पार्षदों में हंगामा तब मच गया, जब उन्हें पता चला कि नगर निगम के अधिकारियों ने उनके फर्जी हस्ताक्षर कर प्रारूप को पहले ही शासन को प्रेषित कर दिया है। दुबारा हस्ताक्षर सिर्फ रिकार्ड को मजबूत करने के लिए कराया जा रहा है। इसके बाद सपा महानगर अध्यक्ष और सपा पार्षद जियाउल इस्लाम ने नगर निगम के कर्मचारी कर्मचारी फरहान शानू पर फर्जी हस्ताक्षर का आरोप लगाते हुए कोतवाली में तहरीर दे दी। पार्षद जियाउल का कहना है कि कर्मचारी ने कहा था कि, ‘तुम लोग ओडीएफ के प्रारूप पर हस्ताक्षर नहीं करोंगे तो हम खुद कर लेंगे। जब मैने प्रारूप में पांच सूत्रीय बिंदुओं के मानक को पूरा नहीं होने की बात कही तो कर्मचारी गाली देने लगे और जान से मारने की धमकी दी।’ बाद में कर्मचारी ने भी पार्षद के खिलाफ गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी की तहरीर कोतवाली में दे दी। निगम के ओडीएफ के दावे पर पार्षद ही सवाल खड़े कर रहे हैं।

शौचालय के नाम पर खूब फर्जीवाड़ा

सैकड़ों ऐसे लोगों ने भी 20 हजार रुपए पाने के लिए आवेदन कर दिया जो किराए के मकानों में रहते हैं। जब नगर निगम की टीम ने भौतिक सत्यापन किया तो 7500 आवेदक फर्जी निकले। मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुकेश रस्तोगी का कहना है कि ऐसे सभी आवेदन निरस्त कर दिए गए हैं।

मेयर नाराज

गोरखपुर के भाजपा महापौर सीताराम जायसवाल भी नगर निगम के फर्जीवाड़े से गुस्से में हैं। उन्होंने सभी पार्षदों को नसीहत दी है कि जबतक संतुष्ट नहीं हों, प्रारूप पर कतई हस्ताक्षर कतई न करें। महापौर ने बताया कि ओडीएफ को लेकर अफसर दबाव में काम कर रहे हैं। लेकिन जनता के प्रति हमारी जवाबदेही है। जब तक पूरा शहर शौचालय से आच्छादित नहीं हो जायेगा, तब तक शहर को ओडीएफ नहीं घोषित किया जा सकता है। उधर, कांग्रेस विधायक अजय कुमार लल्लू का कहना है कि मुख्यमंत्री प्रदेश के 24 जिलों को ओडीएफ घोषित कर अफसरों को 30 नवम्बर तक का समय दे दिया है। शौचालयों के नाम पर भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए।

दावा नगर निगम का

नगर निगम ने एक बार फिर सभी 70 वार्डों को ओडीएफ घोषित कर केन्द्रीय स्तरीय जांच के लिए शासन को पत्र भेज दिया है। नगर आयुक्त प्रेम प्रकाश सिंह का कहना है कि लक्ष्य के सापेक्ष 170 फीसदी अधिक शौचालय का निर्माण करा दिया गया है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक शहर 10,640 परिवारों के पास व्यक्तिगत शौचालय नहीं था। जिसके सापेक्ष 10,700 व्यक्तिगत शौचालय बना दिया गया है। शहर में बने 8000 प्रधानमंत्री आवास के लिए रुपयों का आवंटन कर निर्माण पूरा करा दिया है। शहर में 900 सीट के सामुदायिक शौचालय का निर्माण पूरा हो गया है। वहीं 428 सीट वाले पब्लिक टॉयलेट का निर्माण के सापेक्ष 427 सीट का निर्माण पूरा हो गया है। नगर निगम ने 20 मोबाइल टॉयलेट की खरीद की है। जहां व्यक्तिगत शौचालय को लेकर रकम बैंक खाते में नहीं पहुंची है, उसकी सूची पार्षद मुहैया करा दें। रकम तत्काल खाते में भेज दी जाएगी। भारत सरकार की संस्था क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) की टीम जल्द हकीकत जांचने पहुंचेगी। प्रत्येक छह महीने पर ओडीएफ का रिव्यू किया जाना है।

ओडीएफ के नाम पर खर्च कर दिये करोड़ों

नगर निगम ने ओडीएफ के लिए व्यक्तिगत शौचालयों पर 10 करोड़ रुपए तथा सार्वजनिक शौचालयों पर 7 करोड़ से ज्यादा पैसा खर्च किया है। २० मोबाइल टॉयलेट पर करीब डेढ़ करोड़ खर्च हुए हैं। इनमें से ज्यादातर कबाड़ हो चुके हैं। आज भी शहर में दर्जन भर से अधिक जगहें हैं जहां लोग खुले में शौच करते हुए नजर आ जाते हैं। मोबाइल टॉयलेट खरीदते समय दावा किया गया था कि टॉयलेट के टैंक में मौजूद बैक्टीरिया सॉलिड वेस्ट को पानी और मिथेन गैस में विघटित कर देंगे। लेकिन बायो डाइजेस्टर टैंक काम नहीं कर रहा है। बहरहाल, नगर निगम ने दिल्ली की एक कंपनी के साथ मिलकर टायलेट लोकेटर एप बनवाया है। निगम का दावा था कि शहर के सारे शौचालय गूगल मैप पर दिखाई देंगे। शहर में 53 सामुदायिक शौचालय हैं और 18 नये बन रहे हंै। ६३ सार्वजनिक शौचालय हैं और 32 नए बन रहे हैं।

महराजगंज में डंडे के बल पर ओडीएफ

महराजगंज में प्रभारी मंत्री रमापति शास्त्री ने 30 सितम्बर को एक कार्यक्रम में जिले को ओडीएफ घोषित कर दिया। जबकि हकीकत में जिला ओडीएफ से कोसों दूर है। डीएम की नाक के नीचे होमगार्ड के जवान डंडे के बल पर ओडीएफ का अनुपालन करा रहे हैं। नगर पालिका के 25 वार्डों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया लेकिन सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों की कमी साफ दिख रही है। जिनके पास व्यक्तिगत शौचालय नहीं है, उन्हें ग्रीन कार्ड जारी किया गया है, लेकिन वह खुले में शौच को मजबूर हैं। भाजपा के नगर पालिका चेयरमैन कृष्ण गोपाल जायसवाल ने खुले में शौच से लोगों को रोकने के लिए होमगार्डों की तैनाती की है। पकड़े जाने पर 100 रुपए जुर्माने का प्रावधान भी किया है। 100 से अधिक लोग जुर्माने की जद में भी आ चुके हैं।

सांसद पंकज चौधरी द्वारा गोद लिए दो गांव में ही लोग शौचालय को लेकर संतुष्ट नहीं है। सांसद ने सन 2014 में पहला बड़हरामीर गांव को गोद लिया था। 887 मकानों की आबादी वाले गांव में कई घरों में शौचालय नहीं है। यहां 135 शौचालय बनवाए जाने थे, लेकिन आंकड़ा 100 के पार भी नहीं पहुंचा है। वहीं सांसद के गोद लिये पनियरा ब्लॉक के गोनहा गांव के 885 मकानों में 101 में पहले से ही शौचालय था। 155 घरों में नया शौचालय बनना था। विभाग के जिम्मेदार बताने की स्थिति में नहीं हैं, कि कितने घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है। सामाजिक कार्यकर्ता केएम अग्रवाल कहते हैं कि तमाम ऐसे लाभार्थी हैं, जिनके खाते में रकम तो चली गई लेकिन शौचालय का निर्माण नहीं हुआ। निर्माण कहीं हुआ, फोटो कही और की अपलोड कर दी गई। ओडीएफ की हकीकत की जांच हो तो बड़ी संख्या में अफसर, कर्मचारी और प्रधान नपेंगे।

ओडीएफ घोषित गांव की महिला को शौच के दौरान वाहन ने रौदा

प्रशासन का दावा है कि कुशीनगर के 14 ब्लाकों में 1540 राजस्व गांव में से दो दर्जन गांव को छोडक़र शेष को ओडीएफ घोषित कर दिया है। जिले में रहने वाले 605369 परिवारों में से बमुश्किल 5 हजार घरों में शौचालय बनवाए जाने शेष हैं। जिले के अफसरों की हवा पिछले 2 अक्तूबर को ही निकल गई जब ओडीएफ घोषित गांव की महिलाएं फोरलेन के किनारे शौच करने के दौरान तेज वाहन की जद में आ गई। इसमें रजवटिया गांव के सूरत प्रसाद की पत्नी दुर्गावती देवी (55) की मौत हो गई।

पार्षदों ने खोली पोल

मोहद्दीपुर वार्ड के पार्षद प्रतिनिधि रामजनम यादव ने यह कहते हुए हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया कि वार्ड ओडीएफ के मानक को पूरा नहीं कर रहा है। वार्ड में 50 से अधिक घरों में व्यक्तिगत शौचालय अधूरे हैं। आरकेबीके और रेलवे पटरी पर सुबह-शाम अभी भी दर्जनों लोग खुले में शौच करते हैं। वार्ड में सिर्फ एक सार्वजनिक शौचालय है। वार्ड के दो दर्जन से अधिक लोगों को टॉयलेट निर्माण के लिए रकम नहीं मिली है।

जंगल तुलसीराम के पार्षद प्रतिनिधि राकेश बताते हैं कि फुलगेना, सुनीता, गीता दूबे, रीता आदि के आवास में आवेदन के बाद भी शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है। पूरे वार्ड में एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं है।

गिरधरगंज बाजार की पार्षद ममता सिंह ने नगर आयुक्त को 100 लोगों की सूची सौंपी जिन्हें चयन के बाद भी शौचालय निर्माण के लिए धन नहीं मिला है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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