ट्रेनी जजों की बहाली फिर अटकी, शराब पीकर किया था ऊधम

sudhanshu
Published on: 4 July 2018 2:17 PM GMT
ट्रेनी जजों की बहाली फिर अटकी, शराब पीकर किया था ऊधम
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लखनऊ: जिले के चरन रिसोर्ट में शराब पीकर उधम काटने के चक्कर में हटाये गये 15 ट्रेनी जजों को सेवा में वापस लेने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का आदेश निष्फल हो गया है। क्‍योंकि दो जजों की पीठ में दूसरे जज ने अपने अलग लिखाये फैसले में इन ट्रेनी जजों के न्यायिक सेवा से हटाने के फैसले को सही कहा है। चूंकि डिवीजन बेंच के दोंनों जजों का फैसला अलग अलग हो गया, लिहाजा अब चीफ जस्टिस मामले की सुनवायी के लिए दूसरी पीठ को सौंपेंगे ताकि इस केस का नये सिरे से फैसला सुनाया जा सके।

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ये था मामला

दरअसल 7 सितम्बर 2014 को पंद्रह ट्रेनी जज फैजाबाद रोड स्थित चरन क्लब एंड रिसार्ट में अपनी ट्रेंनिग खत्म होने की पूर्व संध्या पर पार्टी कर रहे थे। वहां शराब भी पी जा रही थी। तभी उनमें आपस मे मारपीट हो गयी। मामला जब हाईकोर्ट प्रशासन के पास पहुंचा तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने प्रशासनिक निर्णय लेते हुए सभी को न्यायिक सेवा से बाहर कर दिया था। इसी आदेश को सभी पंद्रह ट्रेनी जजों ने अलग अलग याचिका दायर कर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

ट्रेनी जजों को मौका देने की कही थी बात

इस याचिका पर जस्टिस सत्येंद्र सिंह चौहान व जस्टिस रजनीश कुमार की डिवीजन बेंच सुनवाई कर रही थी। डिवीजन के जस्टिस चौहान ने अपने फैसले में कहा कि ट्रेनी जजों को सुनवायी का मौका दिये गये बगैर सेवा से हटाने का पूर्ण पीठ का आदेश गलत था। जस्टिस चौहान ने सभी पंद्रह ट्रेनी जजों की याचिकायें मंजूर कर हाईकोर्ट प्रशासन को उन्हें सेवा में वापस लेने का आदेश कर दिया था।

दूसरी ओर बेंच के दूसरे जज जस्टिस रजनीश कुमार ने जस्टिस चौहान के फैसले से अलग अपना फैसला लिखाया। जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट प्रशासन के वकील गौरव मेहरोत्रा के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि पूर्ण पीठ का ट्रेनी जजों को हटाने का फैसला एकदम सही था और ये ट्रेनी जज प्रोबेशन पर थे लिहाजा उन्हें हटाने से पहले किसी प्रकार की सुनवायी का मौका न देने में कुछ भी गलत नहीं था। जस्टिस कुमार ने सभी याचिकायें खारिज कर दीं। डिवीजन बेंच के दोनेों जस्टिसों के अलग-अलग फैसले से केस का अंतिम फैसला नहीं हो पाया। जिसके बाद प्रकरण को चीफ जस्टिस को संदर्भित कर नई बेंच के गठन का अनुरेध किया गया है।

रिटायरमेंट से पहले दिया था फैसला

दरअसल अपने रिटायरमेंट के एक दिन पहले सुनाये गये अपने फैसले में जस्टिस चौहान ने कहा था कि ट्रेनी जजों ने न्यायिक कार्य के दौरान कोई गलत काम नहीं किया था। रिसार्ट में आपस में मारपीट के बाद सबने आपस में मामला सुलझा लिया था। उन्हें हटाने का आदेश उनके पूरे कैरियर पर एक धब्बा था। परंतु उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिये बगैर न्यायिक सेवा से हटा दिया गया। वहीं जस्टिस रजनीश कुमार ने अपने अलग फैसले में कहा कि एक जज को उच्च मर्यादा का पालन करना चाहिए। चाहे कोर्ट के अंदर हो या बाहर उसे हर समय एक मर्यादा में रहना होता है। एक जज के गैर जिम्‍मेदार व्यवहार से समाज में गलत संदेश जाता है ओैर यहां तक कि सरकारी अधिकारी भी जजों के आदेश के प्रति लापरवाह होने लगते हैं।

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कोर्ट की अन्‍य खबरें

मतपत्रों पर निशान पड़ने से मतगणना न करना गलत : हाईकोर्ट

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने कासगंज के परतापपुर ग्राम पंचायत के प्रधान पद के चुनाव की पुनर्मतगणना करने के चुनाव अधिकरण के आदेश को बुधवार को वैध करार दिया है। अधिकरण ने मतपत्रों में से 23 पर अंगूठा निशान लगे होने के कारण अवैध घोषित करने की वैधता की चुनौती याचिका पर इन मतों की गणना करने का आदेश दिया है। जिसे ग्राम प्रधान ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने उषा देवी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मालूम हो कि ग्राम प्रधान का चुनाव 5 दिसम्बर 15 को हुआ और 13 दिसम्बर 15 को मतगणना हुई। कुल सात प्रत्याशी चुनाव में थे। कुल 1242 वोट पड़े जिसमें से 55 वोट अवैध पाए गए। 1187 मतों में से याची ग्राम प्रधान को 472, चन्द्रकांता को 456 वोट मिले। सोमवती को 238 शेष अन्य प्रत्याशियों को मिले। चुनाव याचिका दखिल करने वाली चन्द्रकांता को मिले वोटों में से 23 वोट इस आधार पर निरस्त कर दिये गये कि इन मतपत्रों पर अंगूठा निशान भी लगा था। विपक्षी का कहना था कि कई अनपढ़ लोगों ने मतपत्र देते समय अंगूठे पर स्याही लगी होने के कारण जब मतपत्र हाथ से पकड़ा तो अंगूठे की स्याही मतपत्र पर लग गयी। इसलिए उनके वोट की गणना न करना गलत है। इस आधार पर मत पत्र निरस्त नहीं कर सकते। चुनाव याचिका पर अधिकरण ने मतगणना का आदेश दिया जिसे ग्राम प्रधान ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अधिकरण के आदेश में अवैधानिकता नहीं है। कोर्ट ने कहा मतपत्र पर मार्क का चिन्ह होने से अवैध नहीं माना जा सकता।

छात्र नदारद, कोर्ट से अध्यापकों की भर्ती की मांग, हुए जांच के आदेश

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने स्कूल प्रबंधक द्वारा 10 छात्र संख्या को 121 छात्र दिखाकर मिड डे मील योजना का दुरूपयोग करने व 6 अतिरिक्त सहायक अध्यापकों की नियुक्ति विज्ञापन निकालने की कोशिश करने की जांच का निर्देश बुधवार को दिया है। कोर्ट ने बीएसए देवरिया को स्कूल का निरीक्षण कर छात्रों की संख्या का भौतिक सत्यापन के साथ 9 जुलाई को रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि स्कूल में कुल कितने छात्र हैं और निरीक्षण के समय कितने उपस्थित थे, इसकी रिपोर्ट दी जाए।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केसरवानी ने नागेश्वर प्रसाद पी.एम.वी.देवरिया की प्रबंध समिति की याचिका पर दिया है। विपक्षी द्वारा यह कहते हुए याचिका की पोषणीयता पर आापत्ति की गयी कि इससे पूर्व प्रबंधक समिति की तरफ से यह याचिका दाखिल की गयी है। मालूम हो कि स्कूल में एक प्रधानाचार्य व 4 सहायक अध्यापक हैं और छात्र संख्या 8 से 10 है। नियमानुसार 35 छात्र पर एक अध्यापक होना चाहिए। प्रबंध समिति ने 6 अतिरिक्त अध्यापकों की भर्ती विज्ञापन की अनुमति मांगी तो यह कहते हुए अनुमति नहीं दी गयी कि पहले से ही अध्यापकों की संख्या छात्रों के अनुपात से अधिक है। वित्त एवं लेखाधिकारी ने प्रबंधक से स्पष्टीकरण मांगा था कि 121 छात्रों को आई.वी.आर.एस. स्कीम के लिए नामित किया गया है किन्तु मौके पर 8 ही छात्र पाए गए और 10 छात्र मिड डे मील ले रहे हैं। दोनों बातें स्वयं में विरोधाभाषी होने के कारण कोर्ट ने यह पता लगाने को कहा है कि वास्तव में कितने उपस्थित हैं। ऐसे में आवश्यकता से अधिक अध्यापक पहले से ही हैं। याचिका में अतिरिक्त 6 अध्यापकों की भर्ती विज्ञापन निकालने की अनुमति न देने की वैधता को चुनौती दी गयी है। सुनवाई 9 जुलाई को होगी।

कुम्भ के लिए झूंसी में सड़क किनारे बनी 27 दुकानें हटाने का निर्देश

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने इलाहाबाद-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर अतिक्रमण कर झूंसी में बनी 27 दुकानों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने की याचिका बुधवार को खारिज कर दी है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि एडीए तत्काल इन दुकानों को गिराए। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोंसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने सुन्दरीदेवी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुकानें होने के कारण सड़क चौड़ीकरण के तहत एडीए ने इन दुकानों को गिराने की याची को नोटिस दी थी। इस नोटिस को याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी। पूर्व में इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याची ने अपने अधिवक्ता शशीनंदन के मार्फत कहा था कि अधिकारी जमीन की पैमाइश करा लें और पैमाइश में यदि दुकानें अतिक्रमण कर बनायी गयी पायी जाती हैं तो याची स्वयं दुकानों को हटा लेगी। कोर्ट के आदेश से एसडीएम फूलपुर ने एक टीम बनाकर प्लाट नंबर 415 की पैमाइश करायी थी और हाईकोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत की। सरकारी अधिवक्ता रामानंद पाण्डेय ने कोर्ट को बताया कि प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार याची ने दुकानें अतिक्रमण कर बनायी हैं। बताया गया कि जितनी जमीन खरीदी गयी उससे अधिक जमीन पर अतिक्रमण कर दुकानें बनी हुई हैं। कोर्ट ने एसडीएम द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को देखने के बाद याचिका खारिज कर दी और आदेश दिया कि दुकानें वहां से हटायी जाएं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दुकानों को पूर्व विधायक विजमा यादव ने बनवाया था।

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