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यात्रा वृत्तान्त : आस्था का ऐतिहासिक मंदिर 'स्वर्गद्वारी'
प्रवीन चन्द्र मिश्र
हिमालय की गोद में बसे देश नेपाल की प्राकृतिक छटा बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है किंतु उसकी ऐतिहासिक धरोहर और आस्था के केंद्र न केवल नेपालियों बल्कि विदेशी सैलानियों को भी पर्यटन और वहां स्थित मंदिरों के दर्शन के लिए अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। नेपाल के पहाड़ों में प्रकृति प्रदत्त सुंदरता, उस पर उगे विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे, ठंडी हवाएं हर आगंतुक का हर पल मानो स्वागत करने की तैयारी में रहती हैं। नेपाल के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित प्यूठांन जिले का 'स्वर्गद्वारी' मंदिर भी अपने अद्भुत और विलक्षण ऐतिहासिक धरोहर के साथ ही आस्था के केंद्र के रूप में विख्यात है।
यदि आपको स्वर्गद्वारी की यात्रा करनी है तो मध्य नेपाल के निकटवर्ती स्थान बुटवल जाना होगा। बुटवल पहुंचने के लिये गोरखपुर से अनेक साधन मिल जाते हैं। सुविधा के लिए बस अथवा टैक्सी से गोरखपुर से सोनौली बॉर्डर पहुंचना बेहतर होगा जिसकी दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। सोनौली भारत और नेपाल का सीमावर्ती क्षेत्र है।
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सोनौली से बुटवल की दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। बुटवल में बस, टैक्सी और रिजर्व गाडिय़ों की सुविधा उपलब्ध रहती है। इनके जरिये बेलवास, ताम नगर, मुर्गिया, सालझण्डी, पिपरा, गोरूसिंहे, चंदरौता होते हुए भालुवांग तक लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी। भालुवांग से जसपुर की 43 किलोमीटर की यात्रा फिर १७ किलोमीटर दूर भींगरी नामक स्थान पहुंचना होगा। भींगरी तक पिच रोड है। रास्ता पहाड़ का है लेकिन सुगमता से गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है। भींगरी से स्वर्गद्वारी की 13 किलोमीटर की यात्रा निर्माणाधीन या यूं कहें कि कच्चे और पथरीले मार्ग से होकर तय करनी पड़ती है। भींगरी से स्वर्गद्वारी का रास्ता काफी घुमावदार और खतरनाक है। एक तरफ पहाड़ी दूसरी तरफ कहीं-कहीं नदी तो कहीं खाई दिखायी देती है। लेकिन मनोरम प्राकृतिक दृश्यों की छटा निराली रहती है। दूर बर्फ से ढकी चोटियां दिखाई देती हैं। ज्यादातर सैलानी भींगरी से स्वर्गद्वारी का खतरनाक रास्ता पैदल चलकर पूरा करते हैं लेकिन बस और अन्य गाडिय़ों द्वारा भी सावधानीपूर्वक ड्राइव करके पहुंचा जा सकता है।
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स्वर्गद्वारी पहुंचकर मंदिर परिसर के मुख्य द्वार में प्रवेश करने के बाद सीढिय़ों पर चढ़ते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। वृद्ध, बच्चों और अशक्तजनों के लिए घोड़े से जाने की व्यवस्था भी उपलब्ध रहती है। मुख्य प्रवेशद्वार से मंदिर पहुंचने के बीच आगंतुकों के लिए स्वास्थ्य चौकी भी है जहां चेकअप और दवा आदि की सुविधा रहती है। मुख्य स्थल पर पहुंचने के बाद एक छोटे प्रवेशद्वार से मंदिर परिसर में प्रवेश किया जाता है।
भगवान शिव का मंदिर
नेपाल के अधिकांश मंदिरों की तरह स्वर्गद्वारी भी भगवान शिव का मंदिर है। इसी के अनुरूप मंदिर की स्थापत्य कला है। मंदिर के दक्षिणी हिस्से में एक अलौकिक गुफा है। मान्यता है कि इसी गुफा से होकर महाप्रभु मांडवी नदी में स्नान हेतु जाते थे। ये मंदिर काफी विशाल है। बताया जाता है कि मंदिर के पास हजारों बीघे जमीन और लगभग पांच सौ गायें हैं। खुद की पाली गायों के दूध से बने घी का प्रयोग लगभग 120 वर्षों से अनवरत चल रहे यज्ञ और हवन में किया जाता है। ये यज्ञ कभी खंडित नहीं होता है। मंदिर में एक वेद पाठशाला भी है जहां अनेक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। मंदिर परिसर में एक कुंड भी है जिसका पवित्र जल अधिकांश यात्रियों द्वारा शुद्धिकरण एवं पीने हेतु प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है कि पांडव तथा अनेक ऋषि - महर्षि इस स्थान पर यज्ञ करके स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए थे इसीलिए इस मंदिर का नाम 'स्वर्गद्वारीं' पड़ा। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने स्वयं इस स्थल पर तपस्या की थी। मंदिर परिसर में एक विशाल हवनकुण्ड है जिसमें बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। इस हवन कुण्ड के अनेक दरवाजे हैं जो भिन्न- भिन्न दिशा में हैं।
मंदिर में ऐसे तो प्रतिदिन दर्शनार्थियों और आगंतुकों की अच्छी खासी संख्या रहती है लेकिन वैशाख मास की पूर्णिमा को यहां मेला लगता है जिसमें दूर दूसर से लोग आते हैं। मंदिर प्रबंधन की ओर से परिसर में स्थित भोजनालय में मात्र सौ रुपये (नेपाली) का कूपन प्राप्त कर चावल, दाल और मंदिर की जमीन में उगाये गए चौड़े पत्तों वाले साग की सब्जी दी जाती है जो अत्यंत स्वादिष्ट लगती है। दर्शनार्थी प्रसाद में नारियल के साथ -साथ गौशाला की गायों के लिए नमक का पैकेट और अनाज के पैकेट साथ ले जाते हैं। कहते हैं गायों को खिलाने से व्यक्ति पुण्य का भागी होता है।
ऊंची पहाड़ी पर स्थित स्वर्गद्वारी मंदिर परिसर में यात्रियों के रात्रि विश्राम के लिए भी व्यवस्था की गई है। ऐसे मनोरम स्थल पर पहुँचकर सचमुच एक अहसास होता है कि स्वर्ग से भी सुंदर है स्वर्गद्वारी।