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मुसीबत बने छुट्टा जानवर, फसलों के लिए मुसीबत साबित हो रहे हैं पशु

raghvendra
Published on: 15 Jun 2018 1:08 PM IST
मुसीबत बने छुट्टा जानवर, फसलों के लिए मुसीबत साबित हो रहे हैं पशु
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लखनऊ: प्रदेश के कई जिलों में छुट्टा पशु शहरी और ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए मुसीबत बन गए हैं। शहरी इलाकों में इन छुट्टा पशुओं के कारण तमाम हादसे हो रहे हैं। इसके साथ शहर के व्यस्त इलाकों में भी छुट्टा घूम रहे सांड़ों का आतंक है। तमाम लोग इनके हमलों का शिकार हो चुके हैं। कई लोगों की तो इन हमलों में मौत तक हो चुकी है जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इन हादसों के बावजूद जिम्मेदार अफसरों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। ग्रामीण इलाकों में छुट्टा पशु फसलों के लिए मुसीबत साबित हो रहे हैं। कई जिलों में किसानों को रात-रात भर जागकर फसल की रखवाली करनी पड़ रही है। किसान पहले ही तमाम तरह की दिक्कतों से जूझ रहे हैं और अब छुट्टा पशु उनके लिए नई मुसीबत बन गए हैं। कई किसानों की फसल इन छुट्टा पशुओं के कारण नष्ट हो चुकी है जिससे उन्हें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। पहले विभिन्न जिलों में कांजी हाउस हुआ करते थे मगर अब इन कांजी हाउसों पर भी ताला लग चुका है। इस कारण लोगों की समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है। इस बाबत पूछने पर जिम्मेदार अफसर टालमटोल करने लगते हैं और कोई सटीक जवाब नहीं देते।

सांड़ से जान पर आफत

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: नगर निगम क्षेत्र में 3000 से अधिक छुट्टा सांड़ और आवारा कुत्ते मुसीबत बने हुए हैं। पिछले तीन वर्षों में सांड़ों के हमले में दर्जन भर लोगों की मौत हो चुकी हैं तो 100 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। सांड़ के हमले में होने वाली मौतों के बाद नगर निगम की टीम हरकत में आती है, लेकिन चंद दिन बाद सब ठप हो जाता है।

नगर निगम गोरखपुर में छुट्टा गाय और सांड़ों को फर्टिलाइजर परिसर स्थित कांजी हाउस में रखा जाता है। यहां की कैपेसिटी 70 से 80 पशु की ही है। नगर निगम के सहायक नगर आयुक्त संजय कुमार शुक्ला के मुताबिक 5 सितम्बर 2017 से लेकर अभी तक नगर निगम की टीम ने 1085 सांड़ों को पकड़ा है। इनमें से 127 जानवरों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप के बाद महराजगंज के मधवलिया गो-सदन भेजा गया है। 898 को शहरी सीमा से बाहर छोड़ा गया है तो वहीं 62 पशुओं को कांजी हाउस में रखा गया है। शहर में खतरनाक सांड़ों को पकडऩे के लिए नगर निगम ने प्राइवेट फर्म को जिम्मेदारी दी है जिसके 20 कर्मचारियों के लिए नगर निगम साल में 18 लाख रुपये भुगतान करता है। इस फर्म का कार्यकाल 31 मार्च को ही पूरा हो गया है निगम पुरानी फर्म से महीने-महीने का अनुबंध कर पशुओं को पकड़ रहा है। नई फर्म की तलाश में निगम 4 बार विज्ञापन प्रकाशित कर चुका है, लेकिन पुरानी फर्म के सिवा कोई इच्छुक नहीं दिख रहा है। फर्टिलाइजर में छुट्टा पशुओं के खाने पर भी अच्छी खासी रकम खर्च होती है। निगम प्रति पशु 70 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्राइवेट फर्म को भुगतान करता है।

कुत्तों को पकड़ने में बेपरवाही

कुत्तों को पकडऩे के लिए नगर निगम के पास कोई योजना नहीं है। शहर में करीब 20 हजार कुत्ते रोज बच्चों और बुजुर्गों को अपना शिकार बनाते हैं। गोरखपुर और आसपास के सीएचसी पर प्रतिवर्ष 25 सौ से अधिक लोगों को रैबीज का इंजेक्शन लगाया जाता है। उधर, पिछले 7 सालों में नगर निगम ने पालतू कुत्तों को लेकर कोई लाइसेंस भी जारी नहीं किया है। सीतापुर में कुत्तों के आदमखोर होने के बाद शासन के आदेश पर नगर निगम सक्रिय हुआ है। कुत्तों की नसबंदी और एंटी रैबीज टीकाकरण के लिए टेंडर निकालने की तैयारी है।

महेवा में विकसित होगा कान्हा उपवन

शहर में घूम रहे खतरनाक सांड़ों और बीमार पशुओं के लिए नगर निगम महेवा में कान्हा उपवन विकसित करेगा। करीब 9 एकड़ में विकसित होने वाले कान्हा उपवन के लिए शासन ने 4 करोड़ रुपये जारी कर दिये हैं। निगम ने उपवन के लिए टेंडर जारी कर दिया है, लेकिन अभी तक टेंडर की प्रक्रिया फाइलों में ही सिमटी हुई है।

सांड़ के हमले में कई की हो चुकी है मौत

सांड़ के हमले में पूर्व कुलपति प्रो विश्वम्भर पाठक, पूर्व ब्लाक प्रमुख अर्जुन निषाद, बाबूलाल निगम, सुशील श्रीवास्तव, नेबुलाल निषाद, राम बदन निषाद आदि तमाम लोगों की सांड़ के हमले में मौत हो चुकी है। पिछले वर्ष कूड़ाघाट के युवा व्यापारी तुषार और रिटायर्ड रेलकर्मी हफीजुल्लाह सिद्दीकी की सांड़ के हमले में मौत हो गई थी। जून के पहले सप्ताह में सांंड़ के हमले में पीस पार्टी के जिलाध्यक्ष अताउल्लाह शाही गंभीर रूप से घायल हो गए थे। निगम की लापरवाही को लेकर अताउल्लाह शाही अपने समर्थकों के साथ महापौर सीताराम जायसवाल और नगर आयुक्त प्रेम प्रकाश सिंह के खिलाफ तहरीर तिवारीपुर थाने में दी थी, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। पिछले महीने राजेन्द्र नगर निवासी रमा शंकर मणि त्रिपाठी को काले सांड़ ने पटक कर घायल कर दिया था।

छुट्टा पशुओं के चलते बिगड़ रही कानून व्यवस्था

गोरखपुर-बस्ती मंडल में किसान छुट्टा पशुओं से परेशान हैं। गोरखपुर के बांसगांव और गोला में बीते जनवरी माह में किसानों ने छुट्टा पशुओं को तहसील परिसर में बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया था। वहीं बस्ती में किसानों ने सैकड़ों बीघा गेहूं की फसल चटकर जाने वाले छुट्टा पशुओं को पकडक़र किसानों ने रामजानकी मार्ग हाईवे पर खड़ा कर दिया था। वहीं देवरिया जिले में किसानों ने करीब 150 छुट्टा पशुओं को लेकर रुद्रपुर के आदर्श चैराहे और रुद्रपुर-पिडऱा मार्ग पर जाम लगा दिया था। आलम यह है कि छुट्टा जानवरों से फसलों को बचाने की किसानों ने स्वयं पहल कर दी है। गांव-गांव में किसान बाड़े का निर्माण कर छुट्टा पशुओं को कैद कर रहे हैं। अपने स्तर से इन्हें चारा पानी भी दे रहे हैं। गोरखपुर के कोदवट गांव में किसानों ने ऐसा ही प्रयोग किया था। महराजगंज जिले में फरेंदा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बजरंग बहादुर सिंह और नौतनवां से पूर्व विधायक कौशल किशोर सिंह उर्फ मुन्ना तो छुट्टा पशुओं का मामला विधानसभा में भी उठा चुके हैं।

किसानों की फसल कर रहे बर्बाद

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: ग्रामीण क्षेत्र में छुट्टा जानवर किसानों के दुश्मन बने हैं तो शहर सीमा से सटे सैकड़ों गांवों में आवारा घूमने वाले दुधारू पशु। आवारा पशुओं के झुंड रातोंरात हरी भरी फसल चौपट कर देते हैं। प्रशासन इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल सका है। शहर से सटे पथवलिया, परेड सरकार, छावनी सरकार, जानकीनगर, बूढ़ादेवर, गिर्द गोंडा, सोनी हरलाल, बडग़ांव, इमरती विसेन, बिमौर, मिश्रौलिया, रुद्रपुर विसेन, कोवपुर पहड़वा, भदुआ तरहर, पूरे उदई सहित सैकड़ों गांवों में छुट्टा जानवर मुसीबत बने हुए हैं। किसान रात-रात भर जागकर फसल को बचाने में लगे हैं। गांवों से लेकर मुख्य मार्ग तक छुट्टा जानवरों और जानलेवा सांड़ों का आतंक है।

शहर से सटे ग्राम कोवपुर पहड़वा के किसान रमेश सिंह और तुलसीराम सिंह ने बताया कि रात में एक साथ पचास-साठ आवारा जानवरों का झुंड निकलता है। वह जिस तरफ से भी गुजरता है फसलों को बर्बाद कर देता है। अहिरनपुरवा के स्वामी यादव और पथवलिया के झंडे सिंह पुरवा निवासी बजरंगबली शुक्ला बताते हैं कि हर सीजन में आवारा पशु बड़ी समस्या बन गए हैं। पूरे उदई के मुक्तियार पाण्डेय और सरदवन पुरवा के उदयराज सिंह कहते हैं कि एक ओर जहां आवारा पशु सिरदर्द बने हुए हैं वहीं दूसरी तरफ नीलगायों का झुंड खेतों में खड़ी फसल को तबाह कर रहा है। दुधारू पशुओं का दूध निकालने के बाद पशुपालक बछड़ों संग आवारा छोड़ देते हैं। शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां चार से पांच आवारा बछड़े और सांड़ न टहलते दिखाई पड़े।

कंटीले तार से लगाया बाड़

किसानों ने फसल को छुट्टा जानवरों से बचाने के लिए हजारों-लाखों खर्च कर कंटीले तार लगा रखे हैं, जिसमें फंसकर अब तक दर्जनों गौवंश घायल हो चुके हैं। कई किसानों ने तो आरी वाला तार लगा रखा है जिनसे घायल होकर गौवंश मर जाते हैं। कुछ किसानों ने बेल के कांटों और बांस से अपनी फसल को बचाने का प्रबंध कर रखा है जिससे गौवंश को तो हानि नहीं पहुंचती, लेकिन कुछ पशु बाड़े को तोडक़र फसल नष्ट कर देते हैं।

कई लोग हो चुके हैं घायल

शहर में आवारा पशु लोगों के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं। राह चलते कब, कहां और कौन इनके कारण चोट खा जाए, नहीं कहा जा सकता। चौक बाजार, फैजाबाद रोड, उतरौला, लखनऊ रोड हर तरफ छुट्टा जानवरों का आतंक है। प्राय: इनके आपस में लडऩे से अफरातफरी हो जाती है। शहर में ही आवारा पशुओं की संख्या तकरीबन तीन हजार के ऊपर ही होगी। इनके हमले और लड़ाई में दर्जनों लोग घायल भी हो चुके हैं।

बंद हो गए हाउस कांजी हाउस

जिले भर में जिला पंचायत के अधीन तमाम कांजी हाउस संचालित थे जहां गांव के लोग फसल का नुकसान करने वाले जानवरों को पकडक़र बंद करवा देते थे। निश्चित अवधि के बाद न छुड़ाए जाने वाले पशुओं को नीलाम किया जाता था। लेकिन नए पाउन्ड कीपरों की भर्ती न होने से सभी कांजी हाउस डेढ़ दशक पहले बंद हो गए।

नगर पालिका परिषद ने छुट्टा जानवरों को पकडऩे से हाथ खड़े कर लिए हैं। शहर में लगभग दो दशक पहले तीन बड़े कांजी हाउस हुआ करते थे। इनमें बडग़ांव का कांजी हाउस रेलवे ने ले लिया और लखनऊ रोड का स्वयं पालिका ने बंद कर दिया जबकि देहात कोतवाली का अभी कागजों में संचालित है। नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी बलबीर सिंह का कहना है कि उनके पास कांजी हाउस नहीं है। समय-समय पर पशुओं की नसबंदी का अभियान चलाया जाता है।

गांव से शहर तक दहशत

सुशील कुमार

मेरठ: शहर की 20 लाख की आबादी छुट्टा जानवरों के खौफ में है। व्यस्त सडक़ों पर चहलकदमी करते आवारा मवेशी सडक़ हादसों का सबब बन रहे हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में भी लोग छुट्टा घूम रहे मवेशियों के झुंड से खौफजदा है। आम जनता से लेकर अधिकारी वर्ग तक आवारा जानवरों की अचानक बढ़़ी तादाद के पीछे सरकारी नीति को जिम्मेदार मानता है मगर वे खुले तौर पर इस बारे में कुछ भी बोलने से कतराते हैं। नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बूचडख़ानों पर लगी रोक आवारा जानवरों की बढ़ती आबादी के लिए जिम्मेदार है। आवारा कुत्ते और सांड़ राह चलते लोगों और विशेषकर बाइक सवारों की जान के दुश्मन बने हुए हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार पिछले छह महीनों के दौरान सांड़, गाय और कुत्तों के कारण होने वाले सडक़ हादसों की संख्या में खासी बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है।

एक अनुमान के अनुसार मेरठ में 50 हजार से अधिक आवारा कुत्ते हैं।

जिला अस्पताल में एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए रोजाना लंबी लाइनें लगती हैं। प्रतिदिन का आंकड़ा दो सौ से ज्यादा का है। जनपद के 12 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सप्ताह में एक बार बुधवार को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इनका महीने का आंकड़ा लगभग 5 हजार का है।

बंदर-कुत्तों के हमलों से आतंकित जनता लगातार नगर निगम अफसरों से गुहार लगा रही है। निगम प्रशासन बंदर पकडऩे के लिए एक साल में दो बार अभियान चलाकर दो हजार से अधिक बंदरों को पकड़ चुका है, लेकिन बंदरों के आतंक में कोई कमी नहीं आई है। कुत्तों को पकडऩे की हिम्मत नगर निगम प्रशासन नहीं कर पा रहा है। नगर निगम अफसरों का कहना है कि कुछ साल पहले अभियान शुरू किया गया, लेकिन पशु प्रेमी संगठनों के विरोध के कारण अभियान दो दिन में ही बंद कर दिया गया। संगठन के लोगों ने निगम की टीम से अभद्रता की तथा उनकी गाडिय़ां तक छीन ली थीं। पुराने और नए शहर की दर्जनों कालोनिया व मोहल्ले आवारा कुत्तों और बंदरों खौफ से मुक्त नहीं हैं। शहर में लगभग 22 हजार बंदरों के होने का अनुमान है।

जनहित पर भारी पड़ जाते हैं पशु क्रूरता के नियम

महापौर सुनीता वर्मा कहती हैं कि आवारा कुत्तों के साथ बंदरों से निजात दिलाने के लिए योजना तैयार की जा रही है। जिला नगर सुधार समिति की रेखा सिंह कहती हैं,नगर निगम के दस्ते आवारा जानवरों को पकडऩे के लिये समय-समय पर अभियान चलाते हैं मगर ज्यादातर मौकों पर यह दिखावटी होता है। एक मोहल्ले से जानवर पकडक़र नगर निगम दस्ता उन्हें सुनसान इलाकों में छोड़ देता है जिसके बाद वह उस इलाके में दहशत का पर्याय बन जाते हैं।

फसल हो रही चौपट

उधर मेरठ के मवाना, भैंसा, छोटा हसनपुर, खेड़ी, सरधना, दबुथवा, खरखौदा, छबडिय़ा आदि दो दर्जन से अधिक गांवों में नील गाय और आवारा जानवरों का खौफ है। ग्रामीणों का कहना है कि छुट्टा मवेशी मौका मिलते ही उनकी फसल चट कर जाते हैं। तादाद में ज्यादा होने की वजह से अकेला किसान उन जानवरों से अपने खेत को बचाने में लाचार साबित होता है। प्रतिवर्ष लाखों की फसल बर्बाद हो रही है। इससे किसानों मेें आक्रोश भी पनप रहा है। एक तो पहले से बकाया गन्ना भुगतान न होने से किसान आॢथक तंगी से जूझ रहा है, ऊपर से आवारा पशु फसल के दुश्मन बने हुए हैं। बड़ौली के ओमपाल, किरठल गांव के किसान पुष्पेंद्र चौहान, हरेंद्र सहित क्षेत्र के किरण सिंह, सत्यवीर, ब्रह्मपाल, सुरेंद्र, महीपाल, विनोद, तेजपाल और ओमवीर ने कहा कि खेतों में जंगली जानवरों व आवारा पशुओं की संख्या बढ़ रही है।

मेरठ निवासी लोकेश कुमार खुराना कहते हैं कि सरकार ने शासनादेश जारी कर कहा था कि शहर से बाहर कैटिल कालोनी बसेगी। यह भी कहा गया था कि आवारा पशुओं को शहर से बाहर किया जाएगा, लेकिन आज तक उस शासनादेश का अनुपालन नहीं किया गया। खुराना इस मामले में लखनऊ हाईकोर्ट में याचिका भी डाल चुके हैं।

मुसीबत बने आवारा कुत्ते

महेश कुमार

सहारनपुर: जिले में आवारा कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन इन पर लगाम लगाने के लिए न तो नगर निकायों के पास कोई उपाय है और न ही जिला प्रशासन आवारा कोई सकारात्मक कदम उठा रहा है। कई माह पहले आवारा कुत्तों को पकडऩे के लिए नगर निगम ने पिंजरा पोल बनाया था, लेकिन यह पिंजरा इस समय न जाने कहां धूल फांक रहा है। इस बाबत नगर निगम अधिकारियों को कोई भी जानकारी नहीं है। सहारनपुर में अभी तक आवारा कुत्तों को पकड़े जाने का अभियान ही शुरू नहीं हुआ है। बीच-बीच में दो-चार कुत्तों को पकडक़र कोरम पूरा कर लिया जाता है।

आवारा कुत्तों की नसबंदी करने के लिए निकायों के पास विशेष रूप से कोई बजट नहीं है। बताया जाता है कि सरकार इस मद में पैसा नहीं देती है।

सहारनपुर के स्मार्ट सिटी बनने के बाद अब तक केवल एक बार ही आवारा कुत्तों को लेकर अभियान चलाया गया था। यह अभियान भी करीब दो माह पूर्व चला था। आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए नगर निगम सहारनपुर द्वारा दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी को 900 रुपये प्रति कुत्ता नसबंदी के लिए दिए जाते हैं, लेकिन यह नसबंदी भी हाल फिलहाल बंद है क्योंकि इसके लिए बजट नहीं है। सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबिज की बात करें तो सहारनपुर शहर के जिला अस्पताल को छोडक़र देहात क्षेत्र में स्थित सीएचसी व पीएचसी में एंटी रेबिज की कोई व्यवस्था नहीं है। कुत्ते काटने के बाद एंटी रेबिज के लिए देहात क्षेत्र से लोग जिला अस्पताल में ही पहुंचते है। जिला अस्पताल में प्रति माह करीब एक हजार लोग यह इजेक्शन लगवाने आते हैं।

कुंभ मेले की तैयारियों पर पानी फेरेंगे छुट्टा जानवर

कौशलेंद्र मिश्रा

इलाहाबाद: प्रयाग में 2019 में लगने वाले ‘कुंभ मेले’ की तैयारी जोरों पर है। चौराहों और सडक़ों को लकदक करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। प्रदेश सरकार के मंत्री भी आए दिन यहां मेले की तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं। लेकिन शहर की एक अहम समस्या की तरफ अधिकारियों का ध्यान नहीं जा रहा है। समस्या है यहां की गलियों, सडक़ों और चौराहों पर मंडराते आवार जानवर। नगर निगम के पास भी अभी तक ऐसे जानवरों के बारे में कोई ठोस योजना नहीं है। पिछले एक-दो दशक में ऐसे जानवरों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है, लेकिन इसके विपरीत निगम के पशुबाड़े बंद होते जा रहे हैं। मौजूदा समय में सिर्फ एक पशुबाड़ा संचालित किया जा रहा है। घायल जानवरों को भी इसी में ठूंसा जाता है। इलाहाबाद में जब इतने अधिक आवारा छुट्टा जानवर नहीं दिखते थे तब यहां आधा दर्जन से अधिक पशुबाड़ों (कांजीहाउस) का संचालन किया जाता था। आज जब ऐसे जानवरों की संख्या डेढ़ लाख के करीब है तब सिर्फ एक पशुबाड़ा ही चलाया जा रहा है।

13 माह में पकड़े गए आठ हजार

नगर निगम ने पशुओं को पकडऩे के लिये तीन कैटिल वैन लगाए हैं। हर वैन की ओर से रोज दस-बारह जानवर पकड़े जा रहे हैं।

नगर निगम ने बीते एक साल में करीब आठ हजार जानवर पकड़े हैं। इसमें गाय, बछिया और सांड़ आदि शामिल हैं। पांच हजार से अधिक सांड़ों को नगर निगम सीमा के बाहर भेजा गया और पौने तीन सौ गाय-बछिया को गोसदन भेजा गया। पूर्व में कुछ निजी संस्थाएं/एनजीओ गौशालाएं चलाती थीं लेकिन अब वे इसमें रुचि नहीं ले रहीं हैं। वर्तमान में शंकरगढ़ के निकट ‘बिहरिया गौशाला’ में गायें भेजी जा रही हैं। नगर निगम की ओर से आवारा जानवरों की नसबंदी की कोई व्यवस्था नहीं है।

बीते एक साल में करीब पांच हजार सांड़ नगर निगम सीमा के बाहर गंगापार और यमुनापार के ग्रामीण इलाकों में छोड़े गए हैं। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। रात के अंधेरे में सन्नाटा देखकर निगम कर्मी इन्हें करछना के आसपास, घूरपुर के आगे या फिर सोरांव हाई-वे के पास छोडक़र भाग जाते हैं। किसान अपने गांव और आसपास के छुट्टा आवारा जानवरों से तो रोज दो-चार हो ही रहे हैं, नगर निगम उनकी इस परेशानी में और इजाफा कर रहा है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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