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कछुओं की जान पर आफत, उत्तर प्रदेश के इटावा में होती है इसकी खूब तस्करी

seema
Published on: 2 Feb 2019 12:56 PM IST
कछुओं की जान पर आफत, उत्तर प्रदेश के इटावा में होती है इसकी खूब तस्करी
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कछुओं की जान पर आफत, उत्तर प्रदेश के इटावा में होती है इसकी खूब तस्करी

लखनऊ। कछुओं की जान आफत में है। आए दिन कहीं न कहीं से कछुआ तस्करों के पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं। कभी ट्रेन तो कभी अन्य वाहनों से ढेरों कछुए बरामद होते रहते हैं। जितने तस्कर पकड़े जाते हैं उससे कई गुना तो कभी पकड़ में नहीं आते होंगे सो किस पैमाने पर कछुए पकड़ कर बेचे जा रहे हैं इसका कोई अनुमान ही लगा पाना असंभव है। यह हालत तब है जबकि कछुआ संरक्षित जीव है और इसे बेचना, पालना, रखना सब प्रतिबंधित और गैरकानूनी है। इन धंधे इतना पैसा है कि इसकी तुलना सोने या ड्रग्स की तस्करी या अवैध खनन से की जा सकती है। कछुओं की खरीद-फरोख्त का बड़ा एक कारण अंधविश्वास भी है। वास्तु शास्त्री सलाह देते हैं कि घर में कछुआ रखने पर परिवार में सुख समृद्धि आती है और लक्ष्मी का आगमन होता है। इसका नतीजा यह है कि पर एक्वेरियम में कछुआ रखने का चलन बढ़ता जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के इटावा में कछुआ तस्करी खूब होती है। बरसों से तस्कर इस काम में लगे हुए हैं। इस इलाके में चंबल, यमुना, सिंधु, क्वारी और पहुज जैसी अहम नदियों के अलावा छोटी नदियों और तालाबों में कछुओं की भरमार है। 1979 में सरकार ने चंबल नदी के लगभग 425 किलोमीटर में फैले तट से सटे हुए इलाके को राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य घोषित किया था। इसका मकसद घडिय़ाल, कछुओं और गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन का संरक्षण था। इस अभयारण्य की हदें उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैली हुई हैं। इसमें से 635 वर्ग किलोमीटर उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा में है। इनमें से इटावा कछुओं की तस्करी का केंद्र बन गया है। सन् अस्सी से सैकड़ों तस्कर पकड़े जा चुके हैं और हजारों कछुओं की बरामदगी हो चुकी है। अंदाजा लगाना मुश्किल नहींं कि जब इतने कछुए पकड़ में आए तो कितने सप्लाई हो चुके होंगे।

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यूपी के अमेठी, इलाहाबाद, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और उत्तराखंड के नैनीताल, काठगोदाम, रुद्रपुर आदि से कछुए की तस्करी होती है। लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत के जंगलों में स्थित नदियों, पोखरों और तालाबों से दुर्लभ प्रजाति के कछुओं का खूब व्यापार होता है। शारदा, घाघरा, मोहाना, देवहा, खकरा, के साथ नेपाल से आने वाली कर्नाली नदी में दुर्लभ कछुए मिलते हैं। खास तौर पर दीपावली के दौरान तंत्र साधना के लिए कछुओं की मांग बढ़ जाती है। तांत्रिक का दावा करते हैं कि 20 नाखून वाले कछुए मिल जाएं तो साधना के जरिए वे नोटों की बारिश करा सकते हैं। इसी के फेर में पड़ कर लोग कछुआ पकडऩे में लग जाते हैं। 20 नाखून वाले नरम कछुओं से एकाएक धनवान बनने की मंशा रखने वाले बड़ी रकम देने को तैयार हो जाते हैं। यदि किसी शिकारी के हाथ 18 नाखून वाला कछुआ लग जाता है तो वह भी बड़ी कमाई करता है।

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कछुओं की सप्लाई पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के रास्ते चीन, हांगकांग और थाईलैंड जैसे देशों तक की जाती है। वहां लोग कछुए के मांस को पसंद करते हैं। भारतीय कछुओं के मांस की मांग सबसे ज्यादा चीनी बाजार में है। कछुए के मांस को यौनवर्धक दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इन तमाम देशों में कछुए के सूप और उसके मांस से बने चिप्स की जबरदस्त मांग है। कोलकाता के होटलों में भी कछुए के मांस की बहुत डिमांड है। यूपी-बिहार के जिलों से ट्रेन के जरिए यहां कछुओं की सप्लाई होती है।

टॉरट्वाइज एड इंटरनेश्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में केवल खोल की जेली बनाने के लिए ही सालाना एक लाख कछुए मारे जाते हैं। वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्लूडब्लूएफ) का मानना है कि इस जबरदस्त मांग को पूरा करने के लिए कई देशों से माल मंगाया जाता है। इसी तरह थाईलैंड और हांगकांग में भी कछुओं की बहुत मांग है। जिंदा कछुओं की मांग सबसे ज्यादा होती है क्योंकि उनका खोल और मांस ताजा मिलता है। मगर जिंदा कछुओं की तस्करी मुश्किल होती है इसलिए तस्करों ने एक और तरीका ईजाद कर लिया है। अब कछुओं के मांस के चिप्स बनाकर तस्करी की जाने लगी है।

चीन के लोग कई तरह के पूजा-पाठ और भविष्यवाणी के लिए कछुओं की खाल का इस्तेमाल लंबे अरसे से करते आए हैं। कछुए की खाल के जरिए भविष्य बताने की कला को किबोकू कहा जाता है। इसमें कछुए के खोल को गर्म करके उस पर पडऩे वाली दरारों और धारियों को पढ़कर भविष्य जाना जाता है। इसी तरह चीन के लोग कछुए के खोल की जेली बनाकर दवाओं में इस्तेमाल करते हैं। कछुओं के खोल से तरह-तरह का सजावटी सामान भी बनाया जाता है।

अंधविश्वास की भारमार

कछुओं के इस पूरे खेल को लेकर कई अंधविश्वास हैं। मसलन कछुए के पेट में जितने का नोट रखा जाएगा, उसी राशि के नोटों की बरसात होगी।मान्यता है कि तंत्र-मंत्र से मिले पैसे को तीन माह में ही खर्च करना होता है नहीं तो नोट अपने आप उड़ जाते हैं। नोटों के लालच में लोग ठगी का शिकार हो जाते हैं। नोट बरसाने का दावा करने वाले तांत्रिकों का नेटवर्क पीलीभीत समेत कई जिलों में फैला हुआ है। हालांकि इस खेल में किसी को धन मिलता देखा नहीं गया।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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