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खुद की हुकूमत में अत्याचार
आरएसएस व उसका मुख संगठन हिन्दू जागरण मंच (हि.जा.म.) अपनी ही सत्ता में अत्याचार और नाइंसाफी का दंष झेल रहा है। इंसाफ पाने के लिए उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा।
कुलदीप सिंह
अलीगढ़: आरएसएस व उसका मुख्य संगठन हिन्दू जागरण मंच (हि.जा.म.) अपनी ही सत्ता में अत्याचार और नाइंसाफी का दंष झेल रहा है। इंसाफ पाने के लिए उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। सांसद की कोशिशें नाकाम रहीं और विधायक व भाजपा की कुर्सी पर बैठे नेताओं ने ध्यान ही नहीं दिया। जबकि पुलिस के डंडे के षिकार हुऐ कार्यकर्ताओं में दलित युवाओं की गिनती सौ फीसदी है।
मंच के प्रदेष नेता संजू बजाज का कहना है कि राष्ट्रपति और पीडि़त कार्यकर्ता एक ही समाज से ताल्लुक रखते हैं। फिर भी इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मार्फत जांच षुरू होने के सिवाय इंसाफ की दिषा में अंधेरा बरकरार है।
असल में हि.जा.म. की जिला इकाई ने अतिसाहस का परिचय दिया और उसके कार्यकर्ता वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय परिसर में आन्दोलन करते हुऐ धरने पर बैठ गये। विगत 6 जून को किये गये इस प्रदर्षन में करीब 150 सदस्य पुलिस कप्तान से एक संगीन मामले में आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग उठा रहे थे।
जिला पुलिस मुख्यालय में इस तरह के प्रदर्षन को अभूतपूर्व घटना माना जा रहा है। पुलिस और पुलिस अफसरों के एक्षन जो कैमरों में कैद हुऐ हैं उन्हें देखकर यह साफ है कि अफसरों की नाक के नीचे हो रहा यह आन्दोलन ‘‘षान में गुस्ताखी’’ बन गया।
अत्याचार और नाइंसाफी...
हि.जा.मं. के प्रदर्षनकारियों पर लाठियाँ बरसायीं गई, उन्हें भागने का मौका नहीं दिया गया। उन्हें गुण्डे बदमाषों की तरह पुलिस अफसरों ने अपने आक्रोष का षिकार बनाया। राष्ट्रीय मानवाधिकार को पेष की गई फरियाद में दर्जनों कार्यकर्ताओं का बुरी तरह घायल होने, जानलेवा हमला और पषुओं जैसा बर्ताव करने के गम्भीर आरोप पुलिस और उनके अफसरों पर लगाये गये हैं। सबूतों के तौर पर फोटो और वीडियो रिकॉर्डिंग आयोग को सौंपी गई है।
मंच के नेताओं का कहना है कि पुलिस का यह हिंसक रूप भाजपा नेताओं के ईषारे पर और उनसे अभयदान मिलने का नतीजा है। यही वजह है कि घायल हुए कार्यकर्ताओं की चोटों का डाक्टरी मुआयना तो हुआ लेकिन प्राथमिकी दर्ज करवाने की सभी कोषिष बेकार साबित हुई हैं।
पुलिस का डंडा और कानून दोनों चले।
प्रदर्षनकारियों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज करवाई गई जिसमें 13 कार्यकर्ताओं केा नामजद करते हुऐ आईपीसी की धारा 307 सहित दर्जनभर धाराओं में मुल्जिम बनाकर धरपकड़ अभियान चलाया गया जो अभी तक जारी है। मंच के प्रदेष कार्यकारिणी सदस्य संजू बजाज का कहना है कि प्रदर्षनकारियों पर दर्ज करवाया गया मुकदमा सरासर फर्जी है।
उन पर लगाये गये आरोपों के कतई सबूत पुलिस पक्ष आयोग को भेजी गई रिपोर्ट में दर्षाने में असफल रहा है। इतने पर भी पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय साहनी व मौजूदा आकाष कुलहरि ने स्थानीय भाजपा सांसद की सिफारिषों को खारिज कर दिया। इस मुतल्लिक प्रदेष गन्ना मंत्री सुरेष राणा का मष्विरा भी इन अफसरों बेअसर रहा।
ब्रिटिष कालीन आरोप...
पुलिस रिपोर्ट में आन्दोलनकारियों पर लगाये गये आरोप अंग्रेजों के षासनकाल की याद दिला सकते हैं। इन पर आरोप है कि एसएसपी दफ्तर का मुख्य गेट बंद कर देने से आने जाने वाले पुलिसकर्मियों और फरियादियों का रास्ता बंद हो गया।
मौजूद लोगों से अभद्रता की गई, अपनी मांगे न माने जाने पर एसएसपी दफ्तर पर ताला डालने की धमकी दी गई, आला अफसरों के समझाने पर प्रदर्षनकारीयों ने उग्र व हिंसक होकर पुलिस पीएसी पर पथराव किया, लाठी डण्डों से मारपीट की गई, संजू बजाज व सौरभ चौधरी ने जान से मारने की नीयत से पत्थर मारे जिससे पुलिसकर्मी घायल हुए, मौजूद लोगों में भय व्याप्त हो गया और जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया।
मानवाधिकार आयोग के विधिक रजिस्ट्रार द्वारा जबाब तलब करने पर जबाब में नगर पुलिस अधीक्षक ने इन्हीं आरोपों को दोहराया है। परन्तु जबाब में विवेचना के साक्ष्य सबूतों का खुलासा नहीं किया है। केवल वांछित अभियुक्तों की गिरफ्तारी अभियान को ही विवेचना की कार्यवाई दर्षाते हुऐ आयोग के समक्ष सफाई पेष की गई है। जबकि मंच द्वारा पेष किये गए वीडियो रिकॉर्डिंग सबूतों में न तो पत्थर दिखाई दे रहे हैं और न कार्यकर्ता हमला करते हुऐ।
मंच की लाचारी...
यहाँ हि.जा.म. की लाचारी गौरतलब है। उनके पास अपने ऊपर हुऐ अत्याचार के तमाम पुख्ता सबूत होने के बावजूद अभी तक वे अदालत के दरवाजे पर नहीं पहुँच सके हैं। डाक्टरी मुआयना के बाद प्राथमिकी दर्ज करवाने के मानवाधिकार से वंचित कर दिये गए। पीडित कार्यकर्ता अदालत में इस्तगासा भी दायर नहीं कर सके।
मामले की पैरवी कर रहे वकील गजेन्द्र कुमार वर्मा का कहना है कि राजपत्रित अधिकारियों पर मुकदमा दायर करने से पूर्व षासन से मंजूरी लेने का कायदा है। यहाँ मंजूरी मिलने की आषा नहीं थी। टीवी चैनलों पर लगातार दिखाई गई इस हिंसक घटना पर सूबे के मुख्यमंत्री, उनके मंत्री व भाजपा नेताओं का अभी तक संज्ञान न लेना भी ताज्जुब पैदा करता है।
आयोगों की उदासीनता...
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पीडि़तों की फरियाद पर 9 माह बाद जांच षुरू की है। आयोग ने अलीगढ़ व प्रदेष के मानवाधिकार पुलिस अधीक्षकोें से जबाब मांगा है। उसी जबाब को पीडित पक्ष के पास भेजते हुए आयोग ने उनका स्पष्टीकरण देने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया। जबाब देने के 5 माह बाद। 20 सितम्बर 2019 को यानि कि पीडि़तजन 15 माह से इंसाफ की बाट जोह रहे हैं। अनुसूचित जाति आयोग इससे भी दो कदम आगे है। अलीगढ़ में आयोग के अध्यक्ष रामषंकर कठेरिया के आगमन के दौरान उन्हें दी गई दरख्वास्त का 15 माह से लापता है।
यह है मसला...
हि.जा.मं. के कार्यकर्ता मुकेष माहौर कोली अपने साथी के साथ मीनाक्षी टॉकीज में पिक्चर देखने गए थे। वहाँ टिकट के पैसे लेनदेन में विवाद पैदा हो गया। मौके पर इन कार्यकर्ताओं की पिटाई की गई और लौटते समय पिस्तौल से फायरिंग होने पर आरोप में टॉकीज के मैनेजर सुधीर सिसौदिया को नामजद किया गया था।
घटना की रिपोर्ट धारा 307 और एससीएसटी एक्ट में दर्ज होने के 20 दिन बाद तक पुलिस का रवैया ढुलमुल ही रहा और धारा 307 हटा दी गई। कारणवष आक्रोष में आये कार्यकर्ताओं ने एस0एस0पी0 कार्यालय परिसर में प्रदर्षन करने की हिम्मत दिखा डाली।
हिन्दू जागरण मंच के बारे में...
साल 1982 में भाजपा के फायर ब्राण्ड नेता विनय कटियार ने हिन्दू जागरण मंच की स्थापना की थी। मंच में आरएसएस व कट्टर हिन्दूवादी, जिनमें खासकर युवाओं को षामिल किया जाता है। यह मंच कई उद्देष्यों पर काम करता है। मसलन धर्मपरिवर्तन को रोकने, लवजिहाद व महिलाओं से छेड़छाड़ के विरूद्ध जागरूकता और कानूनी कार्यवाही की पैरवी करना है। सो मंच की इकाई प्रदेष, जिला व षहर के साथ ही थाना स्तर पर भी गठित की जाती है।
चुनावों में टिकट आवंटन की सिफारिष में मंच की विषेष भूमिका रहती है। देखने में आया है कि भाजपा संगठन के मुकाबले मंच व आरएसएस का प्रभाव अधिक रहता है। अलीगढ़ में पूर्व मेयर षकुन्तला भारती, सांसद सतीष गौतम व विधान सभा इगलास के उपचुनाव में राजकुमार सहयोगी को प्रत्याषी घोषित करवाने में मंच की ताकत उजागर हुई है।
यहां मंच का कोई कार्यालय नहीं है आरएसएस के द्वारिकापुरी स्थित दफ्तर से ही मंच अपनी गतिविधियाँ संचालित करता है। इस संगठन की अधिकांष इकाईयों में दलित समाज के हाथों में कमान होने की वजह से इसी समाज के कार्यकर्ताओं की तादाद अधिक है। यह मंच स्थानीय भाजपा के संगठन के सापेक्ष अधिक सुर्खियाँ बटोरता है। यही वजह है कि भाजपा नेताओं की नजर में यह संगठन आंखों की किरकिरी बना हुआ है।