युवाओं की अनोखी पहल: असहाय, विक्षिप्तों की सफाई कर मना रहे स्वच्छता पखवारा

Manali Rastogi
Published on: 1 Oct 2018 10:13 AM GMT
युवाओं की अनोखी पहल: असहाय, विक्षिप्तों की सफाई कर मना रहे स्वच्छता पखवारा
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गोरखपुर: प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से जुड़ने के लिए हजारो, लाखो लोगो ने तमाम तरीके से अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वही नेता अभिनेता भी हाथ में झाड़ू थाम फोटो खिंचवाने में सबसे आगे दिखे। लेकिन सीएम सिटी के कुछ युवा ऐसे है जो हाथो में झाड़ू नही अस्तुरा, ब्लेड, पुराने कपडे और खाने पीने की चीजो के साथ समाज से अलग हो चके असहाय, गरीब, मानसिक रूप से विक्षिप्त व बीमार लोगो की सेवा में लगे हुए है।

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आज कुछ ऐसा ही नजारा शहर के सबसे व्यस्ततम इलाके इंडिराबाल बिहार पर देखने को मिला आधा दर्जन से अधिक बीमार, गरीब, विक्षिप्त व असहाय लोगो को पकड़ कर करीब एक दर्जन युवा उनकी साफ़ सफाई और जरूरतों को पूरा करने में लगे हुए है। आने जाने वाले राहगीर भी रुक रुक कर इन युवाओं को द्वारा किये जा रहे कार्यो को देख रहे है, और कुछ तो इनके पास आकर यह जानने के लिए बेकरार है कि आखिर ये युवा कर क्या रहे है।

अपनों से दूर, महीनो से बिना नहाए, बिना कपड़ा बदले, चहरे पर लम्बी लम्बी दाढ़ी-मूंछे, लम्बे बाल और शरीर से आते बदबू। जिसे कोई भी देखकर नजरअंदाज और बचते हुए निकल जाता है, क्या कभी किसी ने इन्हें समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का प्रयास किया है क्या बड़े बड़े राजनेता करोडो-अरबो रूपये सफाई के नाम पर पानी की तरह बहाने से परहेज नही करते। इन सब के बावजूद गन्दगी का अंबार देखने को मिलता है साथ ही बीमारियां भी आम बात है, इन्हें साफ़ करने के लिए तो बाकायदा निगमो का गठन किया गया है।

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जब सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वच्छता अभियान की लहर स्वच्छता सप्ताह में चल रही है। प्रधानमंत्री से लेकर ग्राम प्रधान तक देश को स्वच्छ करने में लगी हैं। ऑफिस, गली, मुहल्ले, स्टेशन, धर्मशाले, स्कूल चौतरफा झाड़ू लग रही और स्वच्छता अभियान चल रहा। इसी स्वच्छता अभियान को एक नई दिशा देते हुए गोरखपुर में इन युवाओं ने एक अनोखी सफाई अभियान की। जिसमें न झाड़ू था न कूड़ा। जिसमे स्वच्छता के हथियार के रूप में छुरा, कंघी, कैंची, साबुन थे।

पूरे शहर के मानसिक विछिपतों को संस्था की वैन से इक्कट्ठा करके इन्द्रबाल बिहार पे लाया गया । महीनों से जो नहाए नही थे, जिनके बालों में कीड़े पड़ गए थे, जिनके एक एक फुट के बाल हो गए थे, जिनके बाल गंदगी से जकड़ गए थे और जो दस फुट की दूरी से ही भयंकर बदबू कर रहे थे।

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इन सभी मनोरोगियों को एक जगह बैठा के बारी बारी से आज़ाद पाण्डेय ने खुद बाल और दाढ़ी बनाया । फिर सभी को संस्था के सदस्यों ने स्नान कराया और नए कपड़े पहनाए। महीनों से धूल से जकड़े चेहरे चमकते हुए नजर आए। राहगीरों और इन्द्रबाल बिहार के व्यापारियों ने बहुत प्रशंसा की और आगे मदद के लिए सम्पर्क भी किया।

आज़ाद पाण्डेय ने कहा कि स्वच्छता अभियान तभी सार्थक होगा जब इंसानों के बीच रहने वाले इन मनोरोगियों को भी गंदगी से निजात मिले। इसलिए हमारी टीम ने इंसानों को पशुवत जिंदगी से निकाल समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास जारी रखा है और यही असली स्वच्छता अभियान है।

वही रास्ते से गुजरते हुए डीडीयू के छात्र - छात्राये रूककर इन युवाओ के कार्यो के देखने लगे और इन युवाओ की पहल को सराहते हुए बताया की अक्सर यहां पर भीड़ लगी रहती है जब मैंने जानने की कोसिस की तो पता चला की मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों को यहां लाकर साफ़ सफाई करते है और फिर उनकी जरूरतों को पूरा करने का काम भी करते है।

फोटो खिचवाने के लिए कोई भी हाथो में झाड़ू लेकर खड़ा हो सकता है, लेकिन ये युवा उस सफाई अभियान से जुड़े है जिन्हे उनके ही परिजनों ने अपनों से दूर कर दिया है और सफाई तभी होगी जब इंसान का तन और मन साफ़ हो इसलिए हमारी समझ से असली सफाई अभियान यही है।

वही इस अभियान के सदस्य प्रियेश मालवीय ने बताया कि बेसहारा और मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है सरकार द्वारा इनकी देखरेख और इनके पुनर्वास के लिए कुछ भी नहीं किया जाता है यह लोग रेलवे स्टेशन और शहर के हर चौराहों पर पड़े रहते हैं हम लोगों ने बीड़ा उठाया है कि यहां आकर इनकी देखरेख करें हमसे जो बन पड़ता है हम करते हैं।

वहीं अभियान के सदस्य प्रणव द्विवेदी का कहना है कि मोदी जी का सपना है और गांधीजी का सपना स्वच्छ भारत इसी के तहत हम लोग भी यह एक मुहिम चला रहे हैं।

हम ऐसे लोगों कि मदद करने की कोशिश करते हैं जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ती जो लोग एकदम बेसहारा है और रेलवे स्टेशन पर ही अपनी जिंदगी बिताते हैं यह लोग जो अरसे से दाढ़ी बाल नहीं बने हैं उनके बालों में कीड़े तक पड़ गए हैं हम ऐसे लोगों की सेवा करते हैं हम लोग 2 वर्षों से इस अभियान में जुट हुए हैं। इस टीम में करीब 12 लोग हैं वह प्रत्येक सप्ताह में 2 दिन विभिन्न शहरी क्षेत्रों में बेसहारा और लाचार लोगों की सेवा करते हैं।

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