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Unnao News: नीचे धधकते लाल अंगारे, "या हुसैन" की सदा लगाते ऊपर से गुजरती अजादारों की भीड़

Unnao News: मुहर्रम की नौ तारीख की रात को उन्नाव के चौधराना में भारी संख्या में मुसलमान आग का मातम मनाने के लिए इकट्ठा हुए। इसमें शिया मुसलमानो ने नंगे पैर आग पर चल कर मातम किया।

Shaban Malik
Published on: 17 July 2024 9:41 AM IST (Updated on: 20 July 2024 7:04 PM IST)
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आग पर चलते अजादार। (Pic: Newstrack)

Unnao News: मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख दिन है। इस मौके पर ताजिये यानी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है। इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं। इसी क्रम में उन्नाव मे चौधराना मैदान में रात को मोहर्रम की 9 तारीख को आग का मातम किया गया। इसमें बड़ी संख्या में लोग आग के शोलों पर चलते हुए या हुसैन-या हुसैन की सदा लगाते हुए नजर आए। जिसमे बड़े बूढ़ों से लेकर गोद में खेलने वाले बच्चों ने भी आग पर मातम किया। लब्बैक या हुसैन-लब्बैक या हुसैन की सदा लगाते अपने हाथों में अलम लिए शिया मुसलमान हर साल इसी मैदान मे लकड़ी जलाकर बनाये गए आग के अंगारों में नंगे पाँव चल कर मातम करते हैं।

आग पर चले अजादार

मुहर्रम की नौ तारीख की रात को उन्नाव के चौधराना में भारी संख्या में शिया मुसलमान आग का मातम मनाने के लिए इकट्ठा हुए। इसमें शिया मुसलमानो ने नंगे पैर आग पर चलते हुए मातम किया है। या हुसैन की सदाओं के बीच बच्चे, बूढ़े और नौजवानों ने दहकते अंगारों पर चलकर हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों को पुरसा दिया। कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद इस्लाम के दुश्मनों ने हुसैनी खेमों में आग लगा दी थी। उसी दर्दनाक मंजर की याद में उन्नाव के शिया मुसलमानो ने आग पर मातम किया है।

इमाम हुसैन की शहादत का मनाते हैं मातम

आपको बता दें की मुहर्रम, कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन और उनके 72 रिश्तेदारों की याद में मनाया जाता है। पूरी दुनिया के मुसलमान इसे ग़म के महीने के तौर पर मनाते हैं। मोहर्रम इस्लाम का पहला महीना है और ये घटना मोहर्रम की दस तारीख़ यानी 'अशरा' को हुई थी। मुहर्रम खुशियों का त्‍योहार नहीं बल्‍कि मातम और आँसू बहाने का महीना है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं। सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है। मुहर्रम की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोज़े रखते हैं और मस्जिदों और घरों में इबादत की जाती है। वहीं सुन्‍नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोज़े रखते हैं। कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोज़े का सबाब 30 रोज़ों के बराबर मिलता है।



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Sidheshwar Nath Pandey

Sidheshwar Nath Pandey

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मेरा नाम सिद्धेश्वर नाथ पांडे है। मैंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से मीडिया स्टडीज से स्नातक की पढ़ाई की है। फ्रीलांस राइटिंग में करीब एक साल के अनुभव के साथ अभी मैं NewsTrack में हिंदी कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। पत्रकारिता के अलावा किताबें पढ़ना और घूमना मेरी हॉबी हैं।

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