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चुनावों में कभी चौपाई की तरह इस्तेमाल होते थें नारे 

चुनाव में जनता को प्रभावित करने के लिए और विरोधियों पर हमला करने के लिए चुनावी नारा राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत अच्छा हथियार माना जाता है। मगर सोशल मीडिया के इस डिजिटल युग में धीरे-धीरे नारों का दौर खत्म होता जा रहा है।

Bishwajeet Kumar
Published By Bishwajeet KumarWritten By Shreedhar Agnihotri
Published on: 16 Feb 2022 2:39 PM IST
चुनावों में कभी चौपाई की तरह इस्तेमाल होते थें नारे 
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प्रतीकात्मक तस्वीर

लखनऊ। चार दशक पहले शुरू हुआ नारों का दौर धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। यूपी में हो रहे विधानसभा चुनाव में इस बार सोशल मीडिया (Social Media) पर दो लाइन की पंचलाइन की धूम है और राजनीतिक दल केवल पंच लाइन का ही इस्तेमाल कर अपना काम चला रहे हैं। जबकि एक जमाने में चुनावी नारे चौपाई की तरह होते थें और इन नारों के चलते पूरा राजनीतिक माहौल बदल जाया करता था लेकिन नई सदी के आते ही दो चार लाइनों के नारे पंच लाइन में तब्दील होने लगे।

विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के नारे

इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से जहां 'फिर एक बार, योगी सरकार', 'बाइस में बाइसकिल', 'आ रहे हैं अखिलेश', 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' और 'बहन जी हैं सबकी आस'। इन सबकी ही धूम है। जबकि पिछले चुनाव में इसी तरह की पंच लाइनें 'कहो दिल से अखिलेश फिर से', '27 साल यूपी बेहाल', 'आने दो बहनजी को' और 'अबकी बार भाजपा सरकार' दिखाई दिए थें। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नई सदी में ही इस तरह की पंच लाइन शुरू हुई। जो अब पूरी तरह से ट्रेंड बन चुका है। इनमें 'एक ही चाहत, पहले भारत', 'रहे जो अपनी बात पर कायम, कहो मुलायम-कहो मुलायम', 'उठे हज़ारों हाथ सोनिया के साथ' और भाजपा का 'एक ही चाहत, पहले भारत' आदि ने लम्बे चौडे नारों की दिशा बदल दी।

अतीत की बात करें तो आजादी के बाद जब पहली बार चुनाव हुए तो दीवालों पर कांग्रेस के खिलाफ सबसे पहले इस तरह के नारों का इस्तेमाल जनसंघ की तरफ से शुरू किया गया क्योंकि वही मुख्य विपक्षी दल हुआ करता था। तब जनसंघ के कार्यकर्ता सत्ताधारी दल कांग्रेस (Congress) के खिलाफ नारे लगाते थें 'जली झोपड़ी भागे बैल, ये देखो दीपक का खेल'। इसका जवाब कांग्रेस के कार्यकर्ता 'दीपक में तेल नहीं, तेरा मेरा मेल नहीं' कर देते थें। जबकि गोवध के खिलाफ हुए बडे आंदोलन में भी जनसंघ के लोगों का नारा था 'जन-जन से यह नाता है, गाय हमारी माता है'।

इसके बाद जब इंदिरा सरकार ने राशनिंग प्रणाली लागू की तो विपक्ष ने उसे घेरने के लिए लोक लुभावन नारा दिया 'खा गई शक्कर पी गई तेल, यह देखो इंदिरा का खेल'। इसी दौर में हेमवतीनंदन बहुगुणा (Hemwati Nandan Bahuguna) जब यूपी के मुख्यमंत्री बने तो विरोधियों ने कांग्रेस के खिलाफ नारा दिया जब से आए बहुगुणा महंगाई बढ गई सौ गुना। देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा के बाद जब 1977 में चुनाव हुए तो जैसे नारों की बौछार हो गई तब सबसे हिट नारा था 'स्वर्ग से नेहरू करे पुकार, अबकी बिटिया जइहो हार' के अलावा नसबंदी कानून के खिलाफ भी खूब नारे लगे 'नसबंदी के तीन दलाल इंदिरा संजय बंसीलाल'।

इमरजेंसी के बाद विपक्ष के खिलाफ नारा

इसी तरह जब इंदिरा गांधी की आपातकाल के बाद सत्ता में वापसी हुई तो चिकमगलूर से चुनाव लडने के दौरान कांग्रेसियों ने विपक्ष के खिलाफ नारा बनाया 'एक शेरनी सौ लंगूर चिकमगलूर भई चिकमगलूर'। इस दौरान कांग्रेस का एक नारा और बहुत चला था जिसमें था 'पूरे देश से नाता है, सरकार चलाना आता है' साथ ही 'आधी रोटी खाएगें, कांग्रेस वापस लाएगें'

कांग्रेस के विभाजन के बाद जब इंदिरा गांधी ने अपनी नई पार्टी इंदिरा कांग्रेस बनाई और चुनाव निशान हाथ का पंजा मिला तो नया नारा बना 'जात पर न पांत पर, मुहर लगेगी हाथ पर' खूब हिट हुआ।

इंदिरा गांधी के हत्या के बाद हुए चुनाव में एक नारे ने पूरा चुनाव ही पलटा दिया। उस चुनाव में स्व इंदिरागांधी का अंतिम भाषण''मेरे खून का एक-एक कतरा देश के काम आएगा'', ''जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा'' के साथ ही इंदिरा तेरा यह बलिदान, याद करेगा हिन्दुस्तान ने कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने का काम किया था।

इसके बाद जब बोफोर्स दलाली के कारण राजीव गांधी की सरकार चली गयी तो 1989 में हुए चुनावों में वीपी सिंह के पक्ष में जबरदस्त माहौल बना और उनके लिए कहा गया 'राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है'। फिर जब अयोध्या आंदोलन आरम्भ हुआ तो ''अब भी जिसका खून न खौले, खून नहीं वो पानी है, जन्मभूमि के काम न आवे वो बेकार जवानी है''। साथ ही ''रामलला हम आएगें, मंदिर वहीं बनाएगें'' ने भाजपा को यूपी की सत्ता सौपने में बड़ी मदद की।

बसपा की राजनीति में एंट्री

इसके बाद बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) की राजनीति में जबरदस्त एंट्री हुई तो 1993 के चुनाव में हुई तो जनता के सामने एक नया नारा आ गया ''तिलक तराजू और तलवार, इनको मारों......चार'' साथ ही ''जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'' तथा ''पत्थर रख लो छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर''। ''हाथी नहीं गणेश है ब्रम्हा विष्णु महेश है''।

फिर जब 1996 में जब अटल विहारी वाजपेयी क पक्ष में हवा बननी शुरू हुई तो नारा चला ''लाल किले पर कमल निशान मांग रहा है हिदुस्तान''। साथ ही एक और नारा ''अटल सरकार लाना है, धारा 370 हटाना है''खूब चला।



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Bishwajeet Kumar

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