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खेल बनाने और बिगाड़ने को तैयार हैं छोटे दल

किसी भी बड़े दल का खेल बिगाड़ने की महारत हासिल किए हुए छोटे दल इन दिनों फिर विधानसभा चुनाव के पहले सक्रिय होना शुरू हो गए हैं।

Shreedhar Agnihotri
Published on: 15 Jun 2021 1:36 PM GMT
खेल बनाने और बिगाड़ने को तैयार हैं छोटे दल
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लखनऊ: किसी भी बड़े दल का खेल बिगाड़ने की महारत हासिल किए हुए छोटे दल इन दिनों फिर विधानसभा चुनाव के पहले सक्रिय होना शुरू हो गए हैं। कोई दल संयुक्त रूप से चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है तो कोई छोटा दल किसी बडे़ दल से गठबन्धन करने की जुगत में हैं। कई दल तो ऐसे भी है अपने दम पर ही चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं।

यूपी की राजनीति में छोटे दलों का काफी असर रहा है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2002 से ही अधिकतर जातिगत आधार पर गठित हुए छोटे दलों ने गठबंधन की राजनीति शुरू कर चुनाव मैदान में उतरने का काम किया है। इसके पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में भी दो सौ से ज्यादा पंजीकृत दलों के उम्मीदवारों ने किस्मत आज़माई थी। उस समय भी कई छोटे दलों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और उन्हें कुछ सीटें भी मिली लेकिन अगले चुनाव तक उनका किसी दल में विलय हो गया। 2012 में पीस पार्टी ने अपना दल के साथ गठबंधन किया तब एक सीट अपना दल और चार सीट पर पीस पार्टी को जीत मिली लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में में पीस पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया। इस चुनाव में कई छोटे दलों का असर खत्म होता दिखाई दिया।

छोटे दलों की उपजाऊ जमीन पूर्वांचल का क्षेत्र

अगर इन राजनीतिक दलों पर गौर करें तो सबसे अधिक छोटे दलों की उपजाऊ जमीन पूर्वांचल का क्षेत्र रहा है। यहां जातिगत और क्षेत्रीय आधार पर खूब दल पनपे हैं। यही कारण है कि मुख्य दलों में बसपा को छोड़कर, भाजपा, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस छोटे दलों को मिलाने का प्रयास में लगे हुए हैं। मायावती पहले ही अकेले चुनाव लडने की बात कह चुकी हैं। जबकि कमजोर पड़ चुकी कांग्रेस छोटे दलों को अपनी पार्टी में मिलाकर खुद को मजबूत करने की कोशिश में है।

हाल ही में राष्ट्रवादी जन समाज पार्टी के अध्यक्ष मोहम्मद अकरम अंसारी व अन्य पदाधिकारियों ने अपने दल का कांग्रेस में विलय कर प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली। साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जनवादी पार्टी व जन अधिकार पार्टी के अनेक नेता, कार्यकर्ता कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के समक्ष शामिल होकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की।

उधर सत्ताधारी भाजपा एक बार फिर पिछले चुनाव की तरह अपना दलएस की अनुप्रिया पटेल के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) के अलावा निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया था। निषाद पार्टी के अध्यक्ष डाक्टर संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा का चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे। उपचुनावों में भी संजय निषाद भाजपा के साथ खुलकर दिखे। पूरी उम्मीद है कि इस बार फिर वह भाजपा के साथ ही नजर आएगें।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में मुख्य मुकाबले में समाजवादी पार्टी के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना असर दिखा चुका महान दल साथ आ चुका है। जबकि राष्ट्रीय लोकदल पहले से उसके साथ है। जनवादी पार्टी की समाजवादी पार्टी से लगातार बातचीत हो रही है। पूरी उम्मीद है कि यह पार्टी अखिलेश यादव के साथ विधानसभा चुनाव में खड़ी दिखाई देगी। अखिलेश यादव अभी कई और छोटे दलों को अपने पाले में लाने के प्रयास में हैं। उम्मीद की जा रही है कि चुनाव के पहले और भी कई छोटे दल उनके साथ होगें।

उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने अपनी भीम आर्मी के राजनीतिक फ्रंट आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के बैनर तले उपचुनाव के जरिये दस्तक दे दी है। जल्द ही वह भी किसी बड़े दल के साथ अथवा किसी मोर्चे में शामिल होते नजर आएगें।

उधर पिछले चुनाव में भाजपा का साथ देकर उत्तर प्रदेश की सरकार में शामिल रहे सुहेलदेव समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर अब भाजपा से अलग हो चुके हैं और उन्होंने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल की अपना दल कमेरावादी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी, राम करन कश्यप की वंचित समाज पार्टी, राम सागर बिंद की भारत माता पार्टी और अनिल चौहान की जनता क्रांति पार्टी जैसे दलों को मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे में असदुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमईएम) भी शमिल हो चुकी है। जबकि समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव क चाचा शिवपाल सिंह यादव भी अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को लेकर भागीदारी संकल्प मोर्चा के अलाव अन्य दलों के सम्पर्क में है।

Shashi kant gautam

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