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UP Assembly Election 2022: स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद कितनी आसान हो सकती है सपा की राह, पढ़ें ये रिपोर्ट

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश के चुनाव में ओबीसी एक बहुत बड़ा जाति फैक्टर है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्या का बीजेपी का साथ छोड़ समाजवादी पार्टी में जाना सपा के लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकता है।

Bishwajeet Kumar
Published on: 11 Jan 2022 6:54 PM IST
Swami Prasad Maurya
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स्वामी प्रसाद मौर्य (फोटो-कांसेप्ट) 

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव शुरू होने में बस 1 महीने का समय रह गया है ऐसे में प्रदेश के सभी सियासी दलों के बीच अपना पलड़ा भारी करने के लिए खींचतान जारी है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातीय समीकरण बेहद अहम है। ऐसे में चुनाव से पहले किसी भी नेता का किसी दूसरे पार्टी में शामिल होने से चुनाव पर बेहद गहरा असर पड़ता है।

उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति का बहुत बड़ा चेहरा माने जाने वाले यूपी कैबिनेट में मंत्री रह चुके स्वामी प्रसाद मौर्य ने आज मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सपा का दामन थाम लिया। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद बीजेपी के कई नेताओं ने इस्तीफा दिया। जिसमें शाहजहांपुर के तिलहर विधानसभा सीट से विधायक सोहनलाल, कानपुर के बिजनौर से विधायक भगवती सागर और बांदा से तिंदवारी विधानसभा सीट से विधायक बृजेश कुमार प्रजापति ने शामिल है।

स्वामी प्रसाद मौर्या का इस्तीफा (swami prasad maurya news) से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है तो वही स्वामी प्रसाद मौर्या के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से सपा का चुनावी रास्ता थोड़ा आसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में जाति एक बहुत बड़ा मुद्दा होता है। पिछड़ी जाति के एक बड़े चेहरे के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से बीजेपी के पिछड़े वोटों में सपा और आसानी से सेंध लगा सकती है।

उत्तर प्रदेश के ज्यादातर विधानसभा सीटों पर दलित तथा पिछड़े वर्ग के वोटरों का प्रभाव पड़ता है। हालांकि स्वर्ण वोटर्स भी यूपी चुनाव पर खासा असर डालेंगे लेकिन दलित और पिछड़े वोटरों की अपेक्षा उनका प्रभाव कम रहेगा। हाल ही में समाजवादी पार्टी द्वारा की गई गठबंधनओं पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी ने कई छोटे-छोटे दलों से मिलकर जातीय समीकरणों को साधने का कोशिश किया है।

ओबीसी वोटर्स (obc voters in up)

अनुमानित आंकड़ों को माने तो उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट है पिछड़ी जाति से ही आते हैं। पिछड़ी जाति के बाद दलित, सवर्ण तथा मुस्लिम वोटर्स आते हैं। आंकड़ों की माने तो उत्तर प्रदेश में 40 फ़ीसदी से ज्यादा वोटर पिछड़ी जाति से हैं। वहीं सवर्ण वोटरों की संख्या 20 फ़ीसदी से भी कम मानी जाती है। समाजवादी पार्टी लगातार ओबीसी वोटर्स को साधने में लगी हुई है। जिसके लिए सपा ने पश्चिमी यूपी में ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाने वाले जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी से भी गठबंधन किया है। अब स्वामी प्रसाद मौर्या के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पार्टी को ओबीसी वोटर्स का और समर्थन मिलने का अनुमान है यही कारण है की इस चुनाव में बीजेपी की मुश्किल है बढ़ सकती हैं।

बात अगर भारतीय जनता पार्टी की करें तो स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से चले जाने के कारण पार्टी को पिछड़े वोटर्स का काफी नुकसान हो सकता है। क्योंकि पार्टी के पास अब ओबीसी चेहरे के रूप में सबसे बड़ा नाम उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का है। बीजेपी में उमा भारती, साक्षी महाराज, स्वतंत्र देव सिंह भी ओबीसी के बड़े चेहरे माने जाते हैं।

दलित वोटर्स (dalit voters in up)

उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या 30 फ़ीसदी से ज्यादा है और प्रदेश में 86 सीटें एससी एसटी के लिए आरक्षित भी हैं जिसमें 84 सीटें एससी तथा 2 सीट एसटी की शामिल है। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियों का दलित वोटर्स के तरह इतना झुकाव रहता है। इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश में दलितों की पार्टी माने जाने वाली बहुजन समाज पार्टी दलित वोटरों के साथ सवर्ण वोटों पर भी जो लगा रही है। बसपा लगातार भारतीय जनता पार्टी पर दलित और ब्राह्मण विरोधी सरकार होने का आरोप लगाती है। अगर पिछले चुनाव की बात करें तो 2017 विधानसभा चुनाव में एससी-एसटी आरक्षित कुल 86 सीटों में से बीजेपी ने 70 सीटों पर जीत हासिल की थी। वही बसपा केवल 2 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 7 एससी-एसटी सीटों पर जीत दर्ज की थी।

अगर स्वामी प्रसाद मौर्या के समाजवादी पार्टी में आज आने के बाद समीकरणों पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी को ओबीसी वर्ग के वोटरों से काफी ज्यादा समर्थन मिल सकता है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ने कई छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर किया है जो ज्यादातर पिछड़े वर्ग से ही आते हैं।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party)

समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने वाली पार्टियों में सबसे बड़ा नाम ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी है। ओमप्रकाश राजभर के साथ गठबंधन करने के बाद सपा पूर्वांचल के पूर्वी वर्ग के वोटों में सेंध लगा सकती है।

शोषित समाज पार्टी

सपा से गठबंधन करने वाली पार्टियों में शोषित समाज पार्टी का नाम भी शामिल है। जिसके प्रमुख बाबू लाल राजभर है। बता दें की पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय के लोगों की संख्या बहुत अधिक है इसलिए समाजवादी पार्टी को इसका खासा लाभ मिल सकता है।

भारतीय मानव समाज पार्टी

सपा से गठबंधन करने वाली पार्टियों में तीसरा नाम रामधनी बिंद की भारतीय मानव समाज पार्टी का है। बता दे बिंद निषाद जाति की उपजाति होती है। जिससे समाजवादी पार्टी को पूर्वांचल के कई जिलों के निषाद वोटरों को साधने में आसानी होगी। क्योंकि मौजूदा वक्त में निषाद वोटर्स आरक्षण के मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करने वाले संजय निषाद की निषाद पार्टी से नाराज चल रहे हैं।

अस्मिता समाज पार्टी

इस बार के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी का गठबंधन भारतीय अस्मिता समाज पार्टी के साथ भी हुआ है यह पार्टी महेंद्र प्रजापति की है बता देंगे उत्तर प्रदेश में प्रजापति समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं। इन सब पार्टियों के साथ उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी, मानव हित पार्टी, मुसहर आंदोलन मंच जैसी अनेक ओबीसी चेहरे वाली पार्टियों से गठबंधन किया है। वहीं इन सब के साथ उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश में ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या का समाजवादी पार्टी में शामिल होना पार्टी के लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकता है।



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