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UP Assembly Elections 2022: चुनाव आते ही फिर गरमाने लगा है यूपी को बांटने का मुद्दा
UP Assembly Elections 2022 : विधानसभा सभा चुनाव के पहले एक बार फिर प्रदेश को बांटने का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर जहां भाजपा और बसपा की एक राय रही है, वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी छोटे राज्यों के हिमायती कभी नहीं रहें।
UP Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा सभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunav) के पहले एक बार फिर प्रदेश को बांटने का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर जहां भाजपा (BJP) और बसपा (BSP) की एक राय रही है वहीं कांग्रेस (Congress) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) छोटे राज्यों के हिमायती कभी नहीं रहें। मायावती (Mayawati) ने तो अपनी सरकार के रहते 2011 में विधानसभा से एक प्रस्ताव बनाकर तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केन्द्र की कांग्रेस सरकार को भेजा भी था पर केन्द्र ने उनके इस प्रस्ताव पर कई सवाल खडे़ कर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया अब एक बार फिर जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं यह मुद्दा धीरे धीरे जोर पकड़ रहा है।
उधर भाजपा का भी मानना रहा है कि छोटे राज्यों के गठन से विकास को बढ़ावा मिलता है। इसलिए भाजपा की अटल विहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली जब केन्द्र में सरकार का गठन हुआ तो साल 2000 में मध्यप्रदेश के हिस्से को काटकर छत्तीसगढ बिहार को काटकर झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश के एक हिस्से को काटकर उत्तराखण्ड का निर्माण किया गया। यह इन क्षेत्रों की वर्षो पुरानी मांग थी।
यूपी के छोटे दलों को जोड़ने में जुटे बड़े राजनीतिक दल
ऐसा नही है कि छोटे राज्यों का समर्थन करने वालों में केवल यही दो दल शामिल रहे हों, राष्ट्रीय लोकदल ने तो हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) की मांग को लेकर कई वर्षो तक आंदोलन भी किया। 2003-2007 में मुलायम सिंह की सरकार में चै अजित सिंह के रालोद को सरकार का समर्थन था तो विधानसभा में चै अजित सिंह के विधायकों ने हरित प्रदेश की मांग पर एक संकल्प भी प्रस्तुत किया। इस साल भी यह मुद्दा बेहद तेजी से उठा पर भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी ने यह कहकर अपना विरोध जताया कि हरित प्रदेश मे जिन जिलों को जोडने की बात कही जा रही है वह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं और यदि ऐसा हुआ तो यह पूरा क्षेत्र मिनी पाकिस्तान बन जाएगा।
अपनी सरकार के रहते मायावती ने बिना चर्चा के एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजने के बाद जब 2012 के विधानसभा चुनाव आए तो उन्होंने इसे फिर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की पर यह मुद्दा जोर नहीं पकड़ पाया। वह अपनी चुनावी सभाओं में अवध प्रदेश बुंदेलखण्ड पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मांग करती रही हैं।
समर्थन पर छोटे दलों की मांग
प्रदेश को छोटे राज्यों में बांटने की मांग क्षेत्रीय नेताओं की तरफ से समय समय पर की जाती रही है जहां बुंदेलखण्ड की मांग पर फिल्म अभिनेता और राजनीतिक राजा बुंदेला ने बढचढकर हिस्सा लिया तो पूर्वांचल के लिए हरिकेवल प्रसाद से लेकर मधुकर दिघे तक ने इसकी मांग की। अब जब प्रदेश में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री पूर्वांचल क्षेत्र के योगी आदित्यनाथ हैं,इस क्षेत्र में भी इसकी मांग जोर पकडती जा रही है।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि उत्तर प्रदेश को पुनर्गठन करने का मामला केवल चुनावी मुद्दा ही बनता रहा है। क्योंकि अभी दो साल पहले जब देष में लोक सभा के चुनाव हुए तब भी इस मांग ने जोर पकड़ा था और धीरे धीरे यह ठंडे बस्ते में चला गया और अब जब प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो इस मामले को फिर से हवा दी जा रही है।
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