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UP Election 2022: इस दफे सूखी पड़ी है बुंदेलखंड की बंजर जमीन पर राजनीति की फसल

UP Election 2022: योगी सरकार की तरफ से किए गए विकास कार्य हों अथवा कुछ और पर अब तक राजनीतिक दलों इस क्षेत्र की चिंता नहीं सताई है।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Monika
Published on: 25 Jan 2022 12:26 PM IST (Updated on: 25 Jan 2022 12:29 PM IST)
Up election 2022
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बुंदेखलण्ड चुनाव (फोटो : सोशल मीडिया )

UP Election 2022: यूपी में जब भी विधानसभा (UP Assembly Election 2022) अथवा लोकसभा चुनाव हुए है, राजनीतिक दल बुंदेलखण्ड (Bundekhland) की बदहाली और पृथक बुंदेलखण्ड के मुद्दे को एक हथियार बनाकर राजनीतिक फसल काटते आए है। पर इस बार के चुनाव में राजनीतिक दलों की तरफ से अभी तक इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया गया है। इसके पीछे योगी सरकार (Yogi Government) की तरफ से किए गए विकास कार्य हों अथवा कुछ और पर अब तक राजनीतिक दलों इस क्षेत्र की चिंता नहीं सताई है।

उल्लेखनीय है कि जब देश आजाद हुआ तो छोटे राज्यों को भारत में विलय करने का काम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) और सरदार पटेल (Sardar Patel) की तरफ से किया गया। बुंदेलखंड राज्य को लेकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग (State Reorganization Commission) का गठन किया। इसके बाद राज्य पुनर्गठन आयोग ने बुंदेलखंड को दो भागों में बांट दिया गया। एक हिस्सा मध्यप्रदेष को मिला तो दूसरा उत्तर प्रदेष को।

इसके बाद सत्तर के दशक में अलग से बुंदेलखण्ड राज्य की उठाई गयी मांग हर चुनाव में उठती रही। बुंदेलखण्ड मुक्ति मोर्चा (Bundelkhand Mukti Morcha) के राजा बुदेला ने भी इसकी लम्बी लड़ाई लडी। इनके अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों स्व. विश्वनाथ शर्मा, गंगाचरण राजपूत, बादशाह सिंह, प्रदीप जैन आदित्य, राजा रंजीत सिंह जूदेव, पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, तिंदवारी ब्रजेश प्रजापति, रवि शर्मा, पूर्व सांसद भैरौ प्रसाद मिश्रा, राजेन्द्र अग्निहोत्री, हरगोविंद कुशवाहा, रविंद्र शुक्ला, समेत कई नेताओं ने अलग बुंदेलखंड की माग उठाई । राजा बुंदेला ने तो पृथक बुदलेखंड की मांग को लेकर बुंदेलखंड कांग्रेस (congress) बनाकर 2012 में विधानसभा का चुनाव भी लडा पर उन्हे वह चारो खाने चित्त हुए।

2010 में मनमोहन सरकार ने खेला था बड़ा राजनीतिक दांव

इससे पहले 2010 में केन्द्र की मनमोहन सरकार ने बुंदलखण्ड को विशेष पैकेज देकर 2012 के विधानसभा चुनाव में बड़ा राजनीतिक दांव खेलने का काम किया। जबकि बसपा अध्यक्ष मायावती ने अलग बुंदलेखण्ड की मांग को लेकर केन्द्र सरकार को पत्र भी लिखा जिसे केन्द्र सरकार की तरफ से नकार दिया गया है। चरखारी से विधायक रहीं मप्र. की मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री रह चुकीं उमा भारती ने 30 अक्टूबर 2014 के लोस चुनाव के दौरान बुंदेलखंड़ राज्य बनाने का वादा किया था जो अब तक पूरा नहीं हो सका। 2017 में प्रदेष में भाजपा सरकार आने के बाद लोकसभा चुनाव के पहले बुंदेलखंड़ विकास बोर्ड़ का गठन किया गया। इसके बाद राज्य सरकार ने लगतार इस पूरे क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई।

भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कमल खिलाया था

कभी कांग्रेस का गढ़ रहा बुंदेलखंड अब भाजपा (BJP) का अभेद्य गढ़ बन चुका है। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 52 में से 47 सीटों पर कमल खिलाया था। पार्टी क्लीन स्वीप से महज पांच सीटें पीछे रह गई थी। कानपुर-बुंदेलखंड की पांच सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने एक बार फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 10 में से 10 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की थी। 2017 में भाजपा ने बुंदेलखंड में अपनी राजनीतिक जड़ें इस कदर मजबूत कर ली थी कि 2019 में सपा (samajwai party ) और बसपा (bsp) गठबंधन की चूले हिल गयी। भाजपा की अब यही रणनीति है कि मिशन 2022 मेें भी यही स्थिति बरकरार रहे।

उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह जिलों के बाद भी बुंदेलखंड़ अलग राज्य नहीं बन सका जबकि यह आबादी कई छोटे राज्यों से कहीं अधिक है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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