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UP Election 2022: पतन के तीन दशक, जातिगत राजनीति ने बदल दी यूपी कांग्रेस की चाल 

तीन दशक पहले खोई सियासत को दोबारा पाने की जद्दोजहद से देश की सबसे पुरानी पार्टी जूझ रही है। यूपी कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी विधानसभा चुनाव करीब आते ही एक बार फिर खासी सक्रिय हो गई हैं।

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Report amanPublished By Ashiki
Published on: 13 Sep 2021 11:55 AM GMT
Dalit Swabhiman Yatra
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प्रियंका गांधी 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस पार्टी ने लम्बे समय तक राज किया, लेकिन 80 के दशक में पार्टी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्षेत्रीय दलों की बढ़ती पैठ कांग्रेस को सत्ता में बने रहने देने में नित नई परेशानियां पेश करने लगी थी। इस बीच राजीव गांधी सरकार द्वारा शाहबानो मामला और अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने के फैसले ने उसकी आगे की राहें और मुश्किल कर दीं। नतीजा, 1989 आते-आते कांग्रेस पार्टी हाशिए पर आ गई।

वर्तमान में अपनी तीन दशक पुरानी खोई सियासत को दोबारा पाने की जद्दोजहद से देश की सबसे पुरानी पार्टी जूझ रही है। यूपी कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी विधानसभा चुनाव करीब आते ही एक बार फिर खासी सक्रिय दिख रही हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने का समय है।

1989 से चौथे नंबर की पार्टी

कांग्रेस पार्टी के चुनावी आंकड़े और मत प्रतिशत को देखें तो यह तीन दशक से प्रदेश की सत्ता में चौथे नंबर पर ही अटकी पड़ी है। शेष तीन स्थानों के लिए बसपा, सपा और बीजेपी में रस्साकशी होती रही है। 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 28.89 प्रतिशत वोट के साथ 94 सीटों पर कब्ज़ा किया था।

केंद्रीय कांग्रेसी नीतियों ने भी किया बंटाधार

यूपी की सियासत में समय-समय पर विभिन्न नेताओं ने कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया। इन नेताओं का कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए संघर्ष जारी रहा। इनमें डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम सबसे आगे है। लोहिया जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के कट्टर विरोधी थे। इसके अलावा जयप्रकाश नारायण के आंदोलन ने भी कांग्रेस को खासा नुकसान पहुंचाया। रही सही कसर विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) ने बोफोर्स तोप दलाली कांड को लेकर राजीव गांधी को सत्ता से हटा दिया। हालांकि, इनमें से कई मुद्दे भले ही तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार से जुड़े थे। लेकिन इसका सीधा असर यूपी की सियासत में खामियाजे के तौर पर देखने को मिला।

एनडी तिवारी ने बनायी नई पार्टी

साल 1991 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद राजनीति छोड़ चुके पीवी नरसिम्हा राव को फिर वापस दिल्ली बुलाकर प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके बाद पार्टी के भीतर हालात कुछ ऐसे बने कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी (एनडी तिवारी ) ने अलग पार्टी बना ली। उन्होंने पार्टी का नाम कांग्रेस टी (तिवारी ) रखा। हालांकि, कांग्रेस की लगातार गिरती हालत के मद्देनजर एनडी तिवारी ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। बावजूद कांग्रेस पार्टी की गिरावट जारी रही। कल्याण सिंह अयोध्या आंदोलन तो समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और मुस्लिम तो मायावती दलितों की रहनुमा बनकर उभरी । लेकिन कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं लगा। यह वह दौर था जब कास्ट पॉलिटिक्स उफान पर थी। हालांकि, बीच में बेहद कम समय के लिए एन.डी. तिवारी को एक बार फिर कमान मिली। लेकिन अब कुछ नया करने के लिए उनके पास रहा नहीं था।

प्रदेश अध्यक्ष बदलते गए, नहीं सुधरी हालत

नारायण दत्त तिवारी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मधुसूदन मिस्त्री, जितेंद्र प्रसाद, सलमान खुर्शीद, निर्मल खत्री, रीता बहुगुणा जोशी, निर्मल खत्री, राजबब्बर और उसके बाद गुलाम नबी आज़ाद ये वो नाम हैं जिन्हे कांग्रेस आलाकमान ने अपनी खोई जमीन तलाशने के लिए बारी-बारी से उत्तर प्रदेश में लगाया। लेकिन ये कोई करामात करने में विफल रहे। यूपी कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी इसी कड़ी में हैं। लेकिन इन पर अभी कुछ कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी।

यूपी कांग्रेस बीते 30 सालों से सत्ता से दूर रही। इसने किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया। आंकड़ों की जुबानी समझें प्रदेश यूपी कांग्रेस इन सालों में कब कितनी सीटें जीतने में सफल रही।

- 1989 में कांग्रेस पार्टी ने 27.90 प्रतिशत वोट के साथ 94 सीट जीती।

- 1991 में 17.32 प्रतिशत वोट के साथ 46 सीटें जीती।

- 1993 में 15.08 प्रतिशत वोट के साथ 28 सीटें जीती।

- 1996 में 8.35 प्रतिशत वोट के साथ 33 सीटें जीती।

- 2002 में 8.96 फीसदी वोट के साथ 25 सीटें जीती।

- 2007 में 8.61 प्रतिशत वोट के साथ 22 सीटें जीती।

- 2012 में 11.65 प्रतिशत वोट के साथ 28 सीटें जीती।

- 2017 में 6.25 प्रतिशत वोट के साथ 7 सीटें जीती।

Ashiki

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