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UP Election 2022: अब रालोद पश्चिमी यूपी के बाहर भी बढ़ाना चाहता है असर, आइये पढ़ें पूरी खबर
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर रालोद फ़ैज़ाबाद के अलावा सीतापुर, अयोध्या, लखनऊ कानपुर के अलावा पूर्वांचल की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है।
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में होने वाले विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं रालोद के मंशा अब पश्चिमी यूपी के बाहर अपना जनाधार बढ़ाने की है (Samajwadi Party-RLD Alliance)। रालोद पहले फैज़ाबाद (Faizabad) की एक विधानसभा सीट जीत चुका है। इस बार भाजपा गठबंधन के तहत मिलने वाली सीटों में कम से कम आधा दर्जन सीटे मध्य उत्तर प्रदेश से चाह रहा है।
पिछले महीने ही रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी (RLD President Jayant Choudhary) और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (SP President Akhilesh Yadav) के बीच दो दौर की बात हो चुकी है। चर्चा है कि दोनों दलों में गठबंधन को लेकर लगभग तीन दर्जन सीटों पर सहमति बन चुकी है पर आधिकारिक तौर पर अब तक इसकी घोषणा नहीं की गई।
रालोद पूर्वांचल की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है
रालोद फ़ैज़ाबाद के अलावा सीतापुर, अयोध्या, लखनऊ कानपुर के अलावा पूर्वांचल की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। इसके सीटों के चिन्हांकन का काम पूरा किया जा चुका है। लेकिन उम्मीद है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इन सीटों को देने में आनाकानी कर सकते हैं।
यहां यह बताना जरूरी है कि 2004 का लोकसभा चुनाव रालोद ने सपा से मिलकर लड़ा। लेकिन जब विधानसभा चुनाव 2007 नजदीक आए तो तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को सपा खराब लगने लगी। उन्होंने सपा से अलग होकर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ा। इसके बाद फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा के हमराही हो गए।
1986 में जब जयंत चौधरी के पिता चौ अजित सिंह राजनीति में आए तो वह सीधे राज्यसभा में दाखिल हो गए। इसके बाद उन्होंने लोकदल (अ) का गठन किया। 1988 में उन्होंने अपने दल का जनता पार्टी में विलय कर पार्टी के अध्यक्ष हो गए। 1989 में जब जनता दल बना तो उन्होंने अपनी पार्टी का इसमें विलय कर दिया और इसके महासचिव हो गए।
भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन
जब इसी साल वीपी सिंह (VP Singh) की सरकार बनी तो वह इसमें शामिल होकर केन्द्र में मंत्री बन गए। फिर जब कांग्रेस की सरकार बनी तो वह फिर केन्द्र में मंत्री बन गए। 1996 में कांग्रेसी विरोधी लहर देखकर वह काग्रेस से अलग हो गए। उन्होंने भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन (Formation of Bharatiya Kisan Kamgar Party) कर लिया। लेकिन 1998 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर लिया।
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