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UP Election 2022: विकास के चलते हवा हुआ पूर्वांचल राज्य का मुद्दा, जानें क्या है कारण

UP Election 2022: लेकिन इन सब के बीच कोई भी विपक्षी दल राज्य के और खास कर पूर्वांचल के विकास को लेकर कोई बड़ी योजना शुरू करने का ऐलान नहीं कर रहा है।

Rajendra Kumar
Report Rajendra KumarPublished By Divyanshu Rao
Published on: 22 Nov 2021 1:20 PM GMT
UP Election 2022:
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राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में चुनावी माहौल (UP Election 2022) धीरे-धीरे शबाब पर आ रहा है। सत्ता पार्टी और विपक्ष के महारथी अपने-अपने तरकश के हथियार चलाने शुरू कर चुके हैं। बतौर हथियार मुद्दे सेट किये जा रहे हैं। विधानसभा चुनावों को लेकर बहुत सारी बातें हो रहीं हैं। राज्य में विकास की नई गंगा बहाने के साथ महिलाओं को विधानसभा चुनावों में 40 फीसदी टिकट देने, छात्राओं को स्कूटी और स्मार्ट फोन देने के साथ ही गरीबों को फ्री राशन देने और ना जाने कितने वायदे विपक्षी दलों द्वारा किए जा रहे हैं।

लेकिन इन सब के बीच कोई भी विपक्षी दल राज्य के और खास कर पूर्वांचल के विकास को लेकर कोई बड़ी योजना शुरू करने का ऐलान नहीं कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश सरकार द्वारा वाराणसी, गोरखपुर, कुशीनगर और पूर्वांचल के अन्य जिलों में कराए गए विकास कार्यों का लेखा जोखा बीजेपी (BJP) के नेता जनता के बीच रखते हुए पूर्वांचल की बदहाली को खत्म करने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में विपक्षी दलों के नेता इस बार पूर्वाचल राज्य का मुद्दा नहीं उठा पा रहे हैं। जनता ने भी सरकार द्वारा पूर्वांचल में कराए गए विकास कार्यों के चलते अब पूर्वांचल राज्य के मुददे को हवा में उड़ा दिया है।

पूर्वांचल के डेढ़ दर्जन जिलों में दौरा करने पर जनता के इस रुख का खुलासा होता है। जबकि पांच साल पहले तक समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के नेता पूर्वांचल की बदहाली को लेकर पूर्वांचल में अपनी पैठ बनाते थे। पूरब की गरीबी-बेहाली और आर्थिक-औद्योगिक पिछड़ापन कभी इन सब दलों के लिए पूर्वांचल में पैर जमाने का मुख्य मुद्दा हुआ करता था। परन्तु इस बार यह मुद्दा पूर्वांचल के हर जिले में चर्चा से गायब हो गया है। कारण साफ है, यह मुद्दा सियासी रूप से जनता को सुहा नहीं रहा, इसलिए अब कांग्रेस, सपा और बीएसपी के एजेंडे में अलग पूर्वांचल राज्य का मुद्दा नहीं है। जबकि दो दशक पहले समाजवादी नेता मधुकर दिघे, प्रभु नारायण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, शतरुद्ध प्रकाश, दिग्गज कांग्रेसी कल्पनाथ व श्यामलाल यादव सरीखे नेता अलग पूर्वांचल राज्य की मजबूत आवाज बने थे।

राजनीतिक नेताओं की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

अमर सिंह ने भी लोकमंच के बैनर तले इस मुद्दे को खूब गरमाया था। आजादी के बाद से कई नए राज्य बन गए। पूर्वांचल की आबादी सभी नए राज्यों से ज्यादा है, फिर भी उसे अलग राज्य का दर्जा नहीं मिला। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को उठाकर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास किया। जिस पर अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल में जनउपयोगी विकास कार्य कराकर अंकुश लगा दिया है।

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का निर्माण योगी आदित्यनाथ का ऐसा प्रमुख निर्माण कार्य है जो पूर्वांचल के कई जिलों की बदहाली को दूर करेगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का लोकार्पण करते हुए गत दिवस जब भरोसा जताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दृढ़ इच्छाशक्ति से अब और तेजी से पूर्वांचल का भाग्य बदलेगा तो इतिहास के दशकों पुराने पन्ने पलट गए। चर्चा उस घटना की शुरू हो गई, जब गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी अपने अंचल की बदहाली की व्यथा संसद में रोते हुए सुनाई तो मौजूद सभी सांसदों की आंखें नम हो गई थीं।

उसके बाद भी विकास के लिहाज से पूर्वांचल उपेक्षित ही रहा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबका साथ, सबका विकास के संकल्प के तहत पूर्वांचल के समग्र विकास पर पहली बार ध्यान दिया। उन्होंने निजी तौर पर इसके काम और गुणवत्ता पर लगातार नजर रखी। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कर्मयोगी की उपमा दी। साथ ही कहा कि योगी के कार्यकाल में बिना रुके, बिना थके लगा तार विकास के जो काम हुए हैं और हो रहे हैं, वह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रमाण है। इसी प्रकार वाराणसी, गोरखपुर सहित पूर्वांचल के कई जिलों में विकास कार्यों में करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।

गोरखपुर और वाराणसी में कराए गए विकास कार्यों के इन शहरों का कायाकल्प हो गया है। इन दोनों शहरों में लोगों को रोजगार मिल रहा है, नए -नए उद्योग लग रहे हैं। कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जिले को विश्व के पटल पर ला दिया है। मऊ का हथकरघा कारोबार, मिर्जापुर का पीतल बर्तन कारोबार और भदोही के कालीन उद्योग को प्रदेश सरकार के प्रयासों से नया जीवन मिला है। अब इन जिलों में लोगों को जिले में ही रोजगार मिल रहा है क्योंकि सरकार ने इन जिलों के पारंपरिक कारोबार को डूबने से बचाकर नया जीवन दिया है।

पूर्वांचल में योगी सरकार द्वारा कराए गए विकास कार्य विपक्ष पर भारी पड़ रहे हैं। पूर्वांचल पर फिर कब्जा जमाने के लिए अखिलेश यादव छोटे दलों के साथ गठबंधन करने में जुटे हैं। ओम प्रकाश राजभर के साथ उन्होंने एक मंच पर रैली भी की है। अखिलेश बसपा के मजबूत किले अंबेडकरनगर को भी ढहाने की कोशिश में हैं। यहां से उन्होंने दो मजबूत नेता लालजी वर्मा और रामअचल राजभर को सपा में शामिल कराकर बड़ा संदेश दिया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी पूर्वांचल पर जोर दे रही हैं। अभी तक प्रियंका दो बड़े शहर वाराणसी और गोरखपुर में रैली कर चुकी हैं।

गोरखपुर में प्रतिज्ञा रैली के दौरान प्रियंका गांधी ने क्षेत्र की जरूरत और जातिवादी गणित का आकलन करके लोगों को साधने की कोशिश की थी। रैली में अपनी घोषणाओं से निषाद समाज और उत्पीड़न का जिक्र करके उन्होंने अनुसूचित जाति और ब्राह्मण समाज को अपने पक्ष में करने की भी कोशिश की। परन्तु इन विपक्षी दलों के नेताओं ने पूर्वांचल के विकास को लेकर कोई बड़ी योजना शुरू करने का ऐलान अब तक नहीं किया है। यही नहीं इन नेताओं ने पूर्वांचल राज्य के मुददे पर एक शब्द नहीं बोला है। ऐसा क्यों है? इस सवाल पर उक्त दलों के नेता कहते हैं कि पूर्वांचल राज्य संवेदनशील मुददा है। इसे चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। आम सहमति बने तो इसपर चर्चा कर बात आगे बढ़ सकती है।

ऐसा होना आसान नहीं है और योगी सरकार द्वारा पूर्वांचल के विकास पर दिए जा रहे ध्यान के चलते पूर्वांचल की जनता की रूचि भी अब अलग पूर्वांचल राज्य के मुददे पर नहीं है। यहां ही जनता पूर्वांचल का विकास चाहती है। प्रदेश सरकार इस पर ध्यान दे रही है, जिसके चलते पूर्वांचल की जनता ने अलग पूर्वांचल राज्य के मुद्दे को हवा में उड़ा दिया है।

Divyanshu Rao

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