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UP Election 2022: निषादों की नाराजगी दूर करने में जुटी बीजेपी, आरक्षण के लिए केंद्र को लिखा पत्र

UP Election 2022: निषादों को साधने के लिए यूपी सरकार ने भारत सरकार के रजिस्ट्रार जनरल और मतगणना आयुक्त को पत्र लिखकर इस पर विचार कर मार्गदर्शन करने की मांग की है।

Rahul Singh Rajpoot
Report Rahul Singh RajpootPublished By Shreya
Published on: 21 Dec 2021 9:34 AM IST
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सीएम योगी आदित्यनाथ (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Vidhan Sabha Chunaav) से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) निषादों की नाराजगी नहीं झेलना चाहती। यही वजह है कि 17 दिसंबर को निषाद पार्टी (Nishad Party) और बीजेपी (BJP) की संयुक्त रैली में गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) द्वारा निषादों के आरक्षण के मुद्दे पर बात नहीं करने से उनकी नाराजगी जब जग जाहिर हुई थी तो योगी सरकार (Yogi Government) सकते में आ गई। निषादों को साधने के लिए यूपी सरकार (UP Governmet) ने भारत सरकार के रजिस्ट्रार जनरल और मतगणना आयुक्त को पत्र लिखकर इस पर विचार कर मार्गदर्शन करने की मांग की है।

आपको बता दें कि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद (Sanjay Nishad) ने 17 दिसंबर की रैली से पहले या दावा किया था कि गृहमंत्री उनकी रैली में शामिल होने आ रहे हैं तो सालों से जो उनकी मांग निषादों की आरक्षण (Nishad Ka Aarakshan) की है उस पर वह जरूर बात करेंगे और कोई बड़ा निर्णय लेकर जाएंगे लेकिन रैली में जब अमित शाह (Amit Shah) के द्वारा आरक्षण को लेकर कोई बात नहीं की गई तो निषादों के अंदर भारी आक्रोश देखने को मिला और वह बीजेपी के खिलाफ वोट करने की बात भी करने लगे। जिसके बाद अब योगी सरकार (Yogi Sarkar) उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए यह पत्र लिखा है।

राज्य सरकार के विशेष सचिव रजनीश चंद्र (Rajnish Chandra) की तरफ से रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त, भारत सरकार को भेजे गए पत्र में कहा गया है की उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक 53 पर मझवार जाति का उल्लेख है। डॉ. संजय निषाद का कहना है कि प्रदेश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मझवार जाति के लोग मांझी, मझवार, केवट, मल्लाह, निषाद आदि उपनामों का प्रयोग करते हैं। इसके चलते उन्हें अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जाता, जबकि अन्य अनुसूचित जातियों के लोगों को उपनाम लिखने पर उन्हें प्रमाण पत्र निर्गत करने में कोई आपत्ति नहीं की जाती है। इसी को आधार बनाकर राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर उनके आरक्षण (Nishad Reservation) की मांग पर विचार करने का अनुरोध किया है।

अमित शाह संग संजय निषाद (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बीजेपी के लिए क्यों जरूरी है निषाद वोटर?

गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2017) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) थे लेकिन इस बार वह समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के साथ चले गए हैं। बीजेपी निषादों के नेता (Nishad Neta) संजय निषाद (Sanjay Nishad) को अपने पाले में लाकर उनकी कमी को पूरा करने की कोशिश में है। निषाद मददाता (Nishad Voters) यूपी में 4 प्रतिशत के करीब 8 माने जाते हैं। जिसमें निषाद, केवट, मल्लाह जातियां आती हैं।

यह यूपी की 403 विधानसभा सीटों में 50 सीटों पर जिताने और हराने का माद्दा भी रखते हैं। यही वजह है कि ओपी राजभर के जाने के बाद बीजेपी संजय निषाद पर दांव लगाकर उनकी कमी को दूर करना चाहती है। हालांकि निषादों के एक और नेता इन वोटरों पर अपना दावा ठोकने के लिए बिहार से उत्तर प्रदेश का रुख कर चुके हैं। वीआईपी पार्टी के नेता और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश साहनी (Mukesh Sahani) भी निषाद वोटरों के जरिए यूपी में अपनी गणित सही करने में जुटे हैं।

सपा में शामिल हुए कई नेता

आरक्षण पर बात नहीं किए जाने से नाराज ने कुछ निषाद नेताओं ने कल सोमवार को समाजवादी पार्टी (Nishad Leaders Joins Samajwadi Party) का दामन थाम लिया था। सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल (Naresh Uttam Patel) और सपा ओबीसी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजपाल कश्यप (Rajpal Kashyap) की अगुवाई में इन नेताओं ने प्रदेश कार्यालय पर समाजवादी पार्टी का दामन थामा था। रैली के बाद संजय निषाद (Sanjay Nishad) ने भी सवाल उठाए थे कि अगर बीजेपी को जीतना है तो आरक्षण पर बात करनी होगी और उनका हक देना होगा।

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