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UP Election 2022 Survey: खामोश वोटर, कुल 187 में भाजपा को 79 से 85 सीटें, सपा को 89 से 90 सीटें तय, बसपा-कांग्रेस होंगी सीगिंल डिजिट

UP Election 2022 Survey: चुनावी संग्राम के बीच न्यूज़ ट्रैक/ अपना भारत ने मतदाताओं का मूड भाँपने के लिए जो कोशिश की उसके नतीजे एक दम चौंकाने वाले हैं।

Yogesh Mishra
Report Yogesh MishraPublished By Ragini Sinha
Published on: 15 Nov 2021 10:15 AM GMT (Updated on: 15 Nov 2021 10:32 AM GMT)
यूपी विधानसभा चुनाव 2022
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 यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (डिजाइन फोटो - सोशल मीडिया)

UP Election 2022 Survey: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के विधानसभा चुनावों की तारीख़ अभी नहीं आयी है। पर सूबे में चुनावी संग्राम देखा जा सकता है। इस चुनावी संग्राम के बीच न्यूज़ ट्रैक/ अपना भारत ने मतदाताओं का मूड भाँपने के लिए जो कोशिश की उसके नतीजे एक दम चौंकाने वाले हैं। राजनेता चाहे जितने ताने बाने बुन रहे हों पर जनता मुँह खोलने को तैयार नहीं है। हमने सूबे में चौदह हज़ार लोगों से बात की। बुंदेलखंड, रूहेलखंड, ब्रज, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, अवध, पूर्वांचल- काशी व गोरखपुर मंडल इलाक़े के दो-दो हजार लोगों से रायशुमारी की है। पर कुल 403 सीटों में से केवल 178 सीटों के नतीजों तक पहुँचने में कामयाब हो पाये। इसके मुताबिक़ भाजपा की श्योर शॉट सीटों की संख्या केवल 79-85 हो सकती है। जबकि सपा को 89 से 90 सीटें मिलना तय है। बसपा व कांग्रेस (BSP and Congress) सीगिंल डिजिट पार्टीं होगी। आप पार्टी का खाता खुल जाने के बाबत मतदाता आश्वस्त करते दिखे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी का प्रदर्शन बेमिसाल होने की उम्मीद की जा सकती है। पर उनके हाथ कितनी सीटें लगेंगीं यह किसके साथ गठबंधन करेंगे इस पर निर्भर करेगा। हालाँकि जनता के लिहाज़ से जयंत चौधरी (Jayant Choudhary) व अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का गठबंधन तय है। ओम प्रकाश (Om Prakash) राजभर सात सीटें पाते हुए दिख रहे हैं। ओबैसी का खाता खुलता नहीं दिख रहा है। जबकि निषाद पार्टी अपने विधायक सदन में भेजने में कामयाब होगी। गठबंधन के लिहाज़ से देखें को जनता की राय में अखिलेश यादव बढ़त पर हैं। भाजपा राज्य में सत्ता विरोधी रुझान की गंभीर शिकार है। जनता को यह भी भरोसा है कि चाहे जिसकी भी गलती से हो, चुनाव बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक अंत तक हो ही जायेंगे।

लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट दस फ़ीसदी तक बढ़े (Lok Sabha Election BJP Seats)

अभी राज्य में त्रिशंकु विधान सभा के आसार हैं। हालाँकि तक़रीबन 180 सीटें हैं, जिनके सही नतीजे उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद घोषित हो पायेंगे। इस बार कम वोट पड़ने की उम्मीद है। सूबे की तस्वीर इसलिए भी साफ़ तौर पर नहीं उभर रही है क्यों कि शिवपाल सिंह यादव , जयंत चौधरी, औबैसी आदि के मूव भी चुनावी नतीजों पर असर डालेंगे। ये पत्ते अभी बंद हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा (BJP ki seat) की कुल सीटें घटीं पर वोट 7.35 फ़ीसदी बढ़ा । इसलिए सत्ता विरोधी रुझान का क्या असर पड़ेगा यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा (BJP) को 39.67 फ़ीसदी वोट मिला। जबकि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट दस फ़ीसदी तक बढ़ गये। न्यूज़ ट्रैक/ अपना भारत का सर्वे चौदह अक्टूबर,2021 से दो नवंबर, 2021 के बीच किया गया।

  • भाजपा की श्योर शाट -79/85
  • सपाकी श्योर शॉट- 89/90
  • बसपा की श्योर शॉट- 3/5
  • कांग्रेस की श्योर शॉट- 2/4
  • आप की श्योर शॉट- 0/1
  • अपनादल की श्योर शॉट-5/7
  • भासपा की श्योर शॉट- 7/9

टिकट और चुनावी रणनीति

इस बार टिकट व चुनावी रणनीति पर काफ़ी सीटें निर्भर करेगी। इस मामले में भाजपा की बढ़त साफ़ देखी जा सकती है। यादव व मुसलमान सपा को वोट करते दिखेंगे। जबकि क्षत्रिय मुख्यमंत्री योगी के साथ मज़बूती से खड़ा है। जाटव अभी भी मायावती का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। पासी, बाल्मीकी व धोबी भाजपा के साथ रहेगा। ब्राह्मण उदासीन है। विकल्प तलाश रहा है। यदि अच्छा विकल्प नहीं मिला तो वह मन मारकर मोदी को वोट देगा। इस बार ओबीसी वोटों में व्यापक पैमाने पर बँटवारा देखने को मिलेगा । पश्चिम में जाट जयंत के साथ होगा। गुर्जर भी भाजपा से बिदक रहा है।

2019 लोकसभा चुनाव में यूपी (Uttar Pradesh Lok Sabha Elections 2019)

  • भाजपा – 62 सीटें जीतीं, घटीं – 9, कुल वोट – 42858 171, वोट शेयर 49.98 फीसदी, बढ़ा – 7.35 फीसदी
  • बसपा – 10 सीटें, बढ़ीं – 10, कुल वोट - 16,659,754, 19.43 फीसदी, घटा – 0.34 फीसदी
  • सपा – 5 सीटें, वोट - 15,533,620, 18.11 फीसदी, घटा – 4.24 फीसदी

2014 लोकसभा चुनाव में यूपी (Uttar Pradesh Lok Sabha Elections 2014)

  • भाजपा – 71, बढीं – 61, वोट - 34,318,854, 42.63 फीसदी
  • सपा - 5, घटीं – 18, वोट - 17,988,967, 22.35 फीसदी
  • कांग्रेस – 2, घटीं – 19, वोट – 6061,267, शेयर – 7.53 फीसदी
  • अपना दल सोनेलाल – 2, बढीं – 2, वोट – 812325, शेयर – 1.01 फीसदी
  • बसपा – शून्य, घटीं – 20, वोट - 15,914,194, शेयर – 19.77 फीसदी
  • रालोद – शून्य, घटीं – 5, वोट - 689,409, शेयर – 0.86 फीसदी

2009 लोकसभा चुनाव में यूपी (Uttar Pradesh Lok Sabha Elections 2009)

  • सपा – 23, घटीं – 12, वोट शेयर – 23.26 फीसदी
  • कांग्रेस – 21, बढीं – 12, वोट शेयर – 18.25 फीसदी
  • बसपा – 20, बढीं – 1, वोट शेयर – 27.42 फीसदी
  • बॉक्स

2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा वोट शेयर (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Chunav 2017)

  • भाजपा – कुल वोट – 3,44,03,299, 39.67 फीसदी वोट, बढ़ा – 24.67 फीसदी
  • सपा – 18923769, 21.82 फीसदी, घटा – 7.33 फीसदी
  • बसपा – 19,281,340, 22.23 फीसदी, घटा - 3.68 फीसदी

2012 उत्तर प्रदेश विधानसभा वोट शेयर (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Chunav 2012)

  • सपा – 22,090,571, 29.15 फीसदी, बढ़ा – 3.72 फीसदी.
  • बसपा – 19,647,303, 25.91 फीसदी – घटा – 4.52 फीसदी
  • भाजपा – 11371080, 15 फीसदी, घटा – 1.97 फीसदी

2007 उत्तर प्रदेश विधानसभा वोट शेयर (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Chunav 2007)

  • बसपा - 15,872,561, 30.43 फीसदी, बढ़ा – 7.37 फीसदी
  • सपा - 13,267,674, 25.43 फीसदी, बढ़ा – 0.06 फीसदी,
  • भाजपा - 8,851,199, 16.97 फीसदी, घटा – 3.11 फीसदी

मुश्किल होती जा रही चुनावी भविष्यवाणी (Uttar Pradesh Chunav 2022 Bhavishyavani)

वर्ष 2000 से अब तक 130 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन कई चुनावों से देखा ये गया है कि चुनाव पूर्व सर्वे और अंतिम रिजल्ट में काफी अंतर आता जा रहा है। इसके लिए सर्वे की क्वालिटी भी एक वजह है और एक बड़ी वजह अंतिम क्षणों में निर्णय लेने वाले मतदाताओं की बढ़ती संख्या है।

'लोकनीति' द्वारा पिछले बीस साल में हुए विधानसभा चुनावों में से 78 में चुनाव पूर्व सर्वे या एग्जिट पोल कराये गए हैं। इनमें मतदाताओं से एक सवाल ये भी पूछा गया कि वे किसको वोट देंगे, इस बारे में क्या उन्होंने मन बना लिया है? मतदाताओं के जवाबों के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकंध मतदाता चुनाव प्रचार के दौरान या उसके ख़त्म होने के बाद अपना मन बनाते हैं। वे बहुत पहले से निर्णय नहीं लेते। ये मानसिकता विधानसभा चुनावों में हमेशा से ज्यादा रही है लेकिन पिछले दशक में यह बढ़ गयी है। 78 में से 46 चुनावों में आधे मतदाताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान या अंतिम क्षणों में अपना मन बनाया था।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, लोकनीति ने वर्ष 2000 के बाद से 17 राज्यों में दो बार चुनाव पूर्व सर्वे किया था। इनमें से आठ राज्यों में 2010 के बाद से देखा गया कि मतदाता वोट देने के बारे में चुनाव प्रचार के दौरान या प्रचार खत्म होने के तुरंत बाद अपना मन बनाते हैं। ये राज्य थे असम, बिहार, गुजरात, झारखण्ड, पंजाबा, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल।

दस राज्यों में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में अंतिम क्षण पर अपना वोट तय करने वालों की तादाद काफी बढ़ी है। असम, तमिलनाडु और केरल में हुए इस साल के विधानसभा चुनावों में देखा गया कि ऐसे मतदाता असम में 65 फीसदी, तमिलनाडु में 68 फीसदी और केरल में 39 फीसदी थे। अंतिम क्षणों में मन बनाने वालों की ये संख्या पिछले दो दशक में सर्वाधिक रही है। इसके अलावा 2019 में झारखण्ड, 2018 में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और त्रिपुरा तथा 2017 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में ऐसे मतदाताओं की संख्या पहले से कहीं ज्यादा देखी गयी।

2000 से 2009 के बीच 53 फीसदी मतदाता

सर्वे के विश्लेषणों के अनुसार, 2000 से 2009 के बीच 53 फीसदी मतदाताओं ने अपनी पसंद के कैंडिडेट के बारे में निर्णय चुनाव प्रचार के दौरान या उसके खत्म होने पर कर लिया था। 2010-13 में ऐसे मतदाताओं की संख्या बढ़ कर 57 फीसदी हो गयी थी और 2014-21 में यह 63 फीसदी हो गयी। ऐसे मतदाताओं में सबसे ज्यादा वे रहे हैं जो चुनाव प्रचार के दौरान अपना मन बनाते हैं। अंतिम क्षणों में निर्णय लेने वाले मतदाता कमोबेश वही एक तिहाई बने हुए हैं।2019 के लोकसभा चुनावों में 62 फीसदी मतदता ऐसे रहे जिन्होंने प्रचार के दौरान या अंतिम क्षण में अपना मन बनाया। ये एकदम अलग ट्रेंड रहा क्योंकि 1999 से 2014 के बीच हुए लोकसभा चुनावों में अधिकांश मतदाता ऐसे थे जिन्हों बहुत पहले से ही मन बना रखा था।

लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट दस फ़ीसदी तक

ये समझना जरूरी है कि देर से निर्णय लेने वाले मतदाताओं की वजह से चुनाव प्रेडिक्शन हमेशा उलट नहीं जाते हैं और न ऐसे मतदाता हमेशा बाकी लोगों से बहुत अलग फैसला लेते हैं। लेकिन कई बार ऐसे मतदाताओं का निर्णय एकदम अलग भी रहा है। मिसाल के तौर पर 2021 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अधिकाँश चुनाव पूर्व सर्वे में बताया गया था कि राज्य में बहुत करीबी मुकाबला रहेगा। लेकिन रिजल्ट कुछ और ही रहा और तृणमूल कांग्रेस से असं जीत दर्ज की। लोकनीति के चुनाव उपरान्त डेटा से पता चला कि ये उन लोगों की वजह से रहा जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपना मन बनाया था। ऐसे लोग करीब 16 फीसदी थे। 2020 में बिहार में भी सर्वे बता रहे थे कि एनडीए की आसान जीत होने वाली है लेकिन अंतिम समय में महागठबंधन की तरफ वोट शिफ्ट हो जाने से रिजल्ट काफी करीबी रहा। सो कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि चुनाव रिजल्ट की भविष्यवाणी बहुत पहले से कर देना काफी जोखिम भरा काम हो सकता है क्योंकि मतदाता कब अपना मन बदल देंगे, कोई कुछ नहीं कह सकता।

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Ragini Sinha

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