TRENDING TAGS :
UP Election 2022 : विधानसभा चुनाव में एक लडाई मठ और हाते के टकराव की भी
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 3 मार्च को पूर्वांचल में मतदान होगा। छठे चरण के मतदान में सबसे ज्यादा चर्चित चुनावी क्षेत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर को माना जा रहा है।
UP Election 2022 : यूपी विधानसभा का चुनावी रथ (UP Assembly Election) अब पूर्वांचल में है जहां 111 सीटों का चुनाव दो चरणों में है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण गोरखपुर जिला है जहां पर एक 'मठ' और 'हाता' में चुनावी मुकाबला है। आम व्यक्ति भले ही इस बात से अनभिज्ञ हो पर राजनीतिक के जानकार इससे बेखबर नहीं है। वह लगातार इस पुरानी लड़ाई के मुकाबले पर अपनी पैनी निगाह रखे हुए हैं।
पूर्वांचल क्षेत्र के लोगों को मालूम है कि हाता यानी बाहुबली हरिशंकर तिवारी (Hari Shankar Tiwari) का ठिकाना और गोरखनाथ मठ (Gorakhnath Math) के बीच तनाव को लेकर महंत अवैद्यनाथ के जमाने से तनाव को मीडिया हमेशा जगह देता रहा है। गोरखनाथ मठ की परंपरा के मुताबिक यहां कई गैर-ब्राह्मण पुजारी रह चुके हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) खुद भी जाति से ब्राह्मण नहीं, बल्कि ठाकुर हैं। यह मठ पिछले कई दशकों से राजनीति का गढ़ रहा है। मौजूदा समय में गोरखनाथ मठ की पहचान एक धार्मिक और राजनैतिक संस्थान की बन गई है। यह मठ दो मंदिरों का संचालन करता है जिसमें एक मंदिर नेपाल में है और दूसरा मंदिर गोरखपुर में स्थापित है।
राजनीति के जानकार बतातें हैं कि गोरखपुर में अब तक 18 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें से आठ बार गोरक्षपीठ का कब्जा रहा है। पहले महंत अवैद्यनाथ चुनाव जीतते रहे। बाद में उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ भी 1996 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। वह लगातार पांच बार से चुनाव जीत चुके हैं।
ब्राम्हण बनाम ठाकुर की राजनीति
इस पूरे क्षेत्र में ब्राम्हण बनाम ठाकुर की राजनीति तबशुरू हुई जबजब गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी पर दिग्विजय नाथ आसीन हुए। इस गद्दी पर सुरति नारायण मणि त्रिपाठी आसीन होना चाहते थें। वह इसके पहले वो गोरखपुर के डीएम और बनारस संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके थे। उनकी ब्राम्हण बिरादरी में अच्छी खासी पैठ थी। इसके बाद इस पूरे क्षेत्र में इसे लेकर नाराजगी भी दिखी जो हमेशा अलग अलग तरीके दिखाई देती रही है। यहां के गोरखपुर विश्वविश्वविद्यालय में आज भी छात्रसंघ भवन में रवीन्द्र सिंह ओर रंगनाथ पाण्डेय की मूर्तिया लगी हैं जो आज भी धडेबंदी को बताने का काम करती है।
इसके बाद जातीय घेरेबंदी की रफ्तार और तेज होती गयी। रवीन्द्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच गैंगवार की शुरूआत हुई। कहा जाता है कि इसमें सियासतदानों ने भी अपनी रोटियां सेंकने का काम किया। जातिवाद के टकराव की शुरूआत के बाद यह सिलसिला फिर रुका नहीं जो धीरे धीरे राजनीतिक टकराव में बदलता गया। राजनीतिक लाभ लेने की होड़ में बाहुबली हरिशंकर तिवारी का कद बढता गया और वह ब्राम्हण चेहरा के तौर पर पहचाने जाने लगे। दोनो हस्तियों की ताकत बढती गयी। वीरेन्द्र प्रताप शाही दो बार विधाायक बने और हरिशंकर तिवारी छह बार विधायक बने। इसके बाद जब वीरेन्द्र प्रताप शाही की हत्या हो गयी तो फिर यह लड़ाई गोरखपुर पीठ और हरिशंकर तिवारी के हाते के बीच हो गयी। इसके पहले गोरखपुर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रवीन्द्र सिंह की हत्या का आरोप हाते पर आया।
चुनावी मैदान में विनय शंकर तिवारी
अब जब एक बार फिर विधानसभा का चुनाव हो रहा है तो हरिशंकर तिवारी के बेटे विनयशंकर तिवारी अपने पिता की परम्परागत सीट चिल्लूपार से सपा के टिकट पर चुनाव लड रहे हैं। इससे पहले वह बसपा के विधायक थें पर इस बार उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव लडने का फैसला लिया है। वहीं गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से चुनाव मैदान में हैं। वह पहली बार विधानसभा का चुनाव लड रहे हैं जिसे लेकर भी दोनो पक्षों में टकराव का माहौलदिख रहा है।
प्रदेश में योगी सरकार के गठन होने के तुरंत बाद किसी जांच को लेकर पुलिस ने हाते में छापेमारी भी की जिसे लेकर भी तनावपूर्ण माहौल बन चुका हें। यही नहीं दो साल पहले भी सीबीआई ने कार्रवाई हरिशंकर तिवारी के बेटे बसपा विधायक विनय तिवारी के ठिकानों पर की है। हरिशंकर तिवारी के बेटे बसपा विधायक विनय तिवारी से सम्बंधित कंपनी पर दबिश दे चुकी है। कहा जाता है कि यह कार्रवाई मठ के कहने पर की गयी थी।