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UP ELECTION 2022: विधानसभा चुनावों में रालोद की लगातार घटी ताकत, इस बार होगी जयंत की अग्निपरीक्षा
UP Election 2022: 2017 विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के खराब प्रदर्शन के बाद इस बार देखना होगा कि अखिलेश यादव से हाथ मिलाकर जयंत चौधरी पार्टी को कितना मजबूत बना पाते हैं।
लखनऊ: प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि रालोद (RLD) लगातार कमजोर हुआ है और यही कारण है कि इस बार का विधानसभा चुनाव रालोद मुखिया जयंत चौधरी (Jayant Choudhary) के लिए काफी अहम माना जा रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2017) में पार्टी सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब रही थी जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में रालोद का खाता भी नहीं खुल सका था। जयंत के पिता अजित सिंह (Ajit Singh) और खुद जयंत को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। यही कारण है कि 2022 के चुनावी नतीजे जयंत के सियासी कद को तय करने वाले साबित होंगे।
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद अब पार्टी की कमान पूरी तरह जयंत के हाथों में है। चौधरी अजित सिंह (Chaudhary Ajit Singh) की रसम पगड़ी में खाप चौधरियों की ओर से जयंत को चौधराहट की पगड़ी सौंपी गई थी। इस बार समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के साथ गठबंधन करके पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाने के लिए उतरे जयंत की चौधराहट की भी परीक्षा होगी। यही कारण है कि किसान आंदोलन से संजीवनी पाने के बाद जयंत चौधरी ने इस बार अपना सियासी वजूद साबित करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
विधानसभा चुनावों में लगातार घटी ताकत
यदि पिछले चार विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया जाए तो रालोद की ताकत लगातार कमजोर होती गई। 2002 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़कर 14 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2007 के चुनाव में पार्टी ने 254 सीटों पर किस्मत आजमाई थी मगर पार्टी को सिर्फ 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस चुनाव में पार्टी के 222 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 46 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी थी मगर सिर्फ 9 सीटों पर ही पार्टी को कामयाबी मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए काफी निराशाजनक रहे थे। पार्टी ने 277 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे मगर पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हो सकी थी। यह चुनाव पार्टी के लिए इसलिए भी काफी निराशाजनक रहा था कि 277 में से 266 सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। इन चार विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण से समझा जा सकता है कि पार्टी की ताकत लगातार कमजोर होती गई और 2002 में 14 सीटों के बाद 2017 में 1 सीट तक पहुंच गई।
एकमात्र विधायक भी भाजपा में शामिल
रालोद को एक और बड़ा झटका 2017 के विधानसभा चुनाव के करीब एक साल बाद लगा था। अप्रैल 2018 में पार्टी की ओर से जीत हासिल करने वाले एकमात्र विधायक सहेंद्र सिंह रमाला (Sahendra Singh Ramala) ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा (BJP) का दामन थाम लिया था। उनके इस कदम के बाद प्रदेश विधानसभा में रालोद के सदस्यों की संख्या शून्य हो गई थी। रमाला ने छपरौली विधानसभा सीट पर जीत हासिल करके अजित सिंह की लाज बचाई थी मगर बाद में वे भी पार्टी में नहीं टिक सके। दलबदल से पहले रमाला पर राज्यसभा चुनाव के दौरान भी क्रॉस वोटिंग का आरोप लगा था।
2014 में नहीं खुला खाता
यदि पिछले लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो 1999 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के 32 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे मगर उनमें से सिर्फ तीन ही जीत हासिल करने में कामयाब हुए। 2009 के चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था और पार्टी ने 9 उम्मीदवार उतारकर 5 सीटों पर जीत हासिल की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोदी लहर का जबर्दस्त असर दिखा जिसके कारण रालोद का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। पार्टी ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे मगर पार्टी एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी।
2019 में भी हुआ बुरा हाल
2019 का लोकसभा चुनाव भी रालोद के लिए काफी निराशाजनक रहा। लगातार दूसरे लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता नहीं खुल सका। पार्टी के मुखिया अजित सिंह को मुजफ्फरनगर संसदीय सीट (Muzaffarnagar parliamentary seat) से हार का मुंह देखना पड़ा। उन्हें भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान (Sanjeev Balyan) ने 6,526 मतों से हराया था। मथुरा से 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद 2019 में जयंत चौधरी बागपत संसदीय सीट से मैदान में उतरे थे मगर उन्हें भाजपा प्रत्याशी डॉ सत्यपाल सिंह ने हरा दिया था। रालोद को अपने खाते में आई तीसरी सीट मथुरा में भी हार का मुंह देखना पड़ा था। रालोद प्रत्याशी नरेंद्र सिंह को इस संसदीय सीट पर 3 लाख वोटों से भारी हार झेलनी पड़ी थी।
इस बार का चुनाव जयंत के लिए अहम
इस बार के विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरे हैं। लंबे समय तक चले किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद को नई संजीवनी मिली है। माना जा रहा है कि जाट और मुस्लिमों के बीच पैदा हुई दूरी भी अब समय के साथ कम हो चुकी है। किसान आंदोलन के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई पंचायतों के दौरान भी भाजपा पर तीखे हमले किए गए थे।
वैसे इस बात को पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि जाट मतदाताओं ने पूरी तरह भाजपा से मुंह मोड़ लिया है। सपा-रालोद गठबंधन की ओर से उतारे गए मुस्लिम प्रत्याशियों के कई वीडियो भी वायरल हुए हैं जिनके सहारे भाजपा एक बार फिर अपनी हवा बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। ऐसे में यह विधानसभा चुनाव रालोद मुखिया जयंत चौधरी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। अब यह देखने वाली बात होगी कि जयंत चौधरी इस परीक्षा में किस हद तक कामयाब हो पाते हैं।