UP Election: क्या प्रियंका 2022 में खत्म कर पाएंगी कांग्रेस का वनवास, नेताओं को चमत्कार की आस, आंकड़े करते हैं ये इशारा?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 32 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस पार्टी को संजीवनी देने प्रियंका गांधी वाड्रा निकली

Rahul Singh Rajpoot
Written By Rahul Singh RajpootPublished By Ashiki
Published on: 9 Sep 2021 4:30 PM GMT
Priyanka Gandhi Ka Raebareli Daura
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प्रियंका गांधी वाड्रा (फोटो : सोशल मीडिया )

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 32 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस पार्टी को संजीवनी देने प्रियंका गांधी वाड्रा निकली हैं। उनके कंधों पर यूपी में हाशिये पर खड़ी पार्टी को फिर से जिंदा करने की बड़ी चुनौती है। प्रियंका एक बार फिर लखनऊ के दो दिवसीय दौरे पर पहुंची हैं। जहां वह पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर पार्टी को मजबूत करने और चुनाव की रणनीति तैयार करेंगी। कांग्रेसियों को 2022 के चुनाव में पूरी उम्मीद है कि प्रियंका गांधी यूपी में डगमगा चुकी पार्टी की नैया को पार लगाएंगी। लेकिन ये हिमालय पर्वत से संजीवनी लाने जैसा है।

यूपी में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी थी तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने यूपी की कमान प्रियंका गांधी वाड्रा और मध्य प्रदेश के राजपरिवार से तल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर डाली। लेकिन ज्योतिरादित्य बीच में ही यूपी से विदा लेकर वापस चले गए। अब तो वह बीजेपी में शामिल होकर केंद्रीय मंत्री भी बन चुके हैं। लेकिन प्रियंका गांधी अब भी पूरी जी-जान से लगी हैं। कांग्रेस पार्टी का पुनर्जन्म कराने की कोशिश कर रही हैं। प्रियंका के सामने यूपी में बड़ी चुनौतियां हैं । उन्हें भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के मजबूत वोट बैंक में सेंधमारी करनी होगी तभी कांग्रेस का विजय रथ आगे बढ़ पाएगा।


क्या कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगा पाएंगी प्रियंका?

प्रियंका गांधी ने मिशन यूपी फतह के लिए प्रदेश की कमान अजय कुमार लल्लू जैसे जुझारु नेता को सौंपी है। प्रियंका ने अजय कुमार लल्लू को अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो निशाना साधा है। पहला अजय कुमार लल्लू जब से प्रदेश की बागडोर संभाले हैं, प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश तो आया है। वह सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं। दूसरे ओबीसी नेता को अध्यक्ष बनाकर वोट बैंक का भी दांव उन्होंने चला है। लेकिन बीजेपी ने भी ओबीसी नेता स्वतंत्र देव सिंह को कामन कमान दे रखी है। अखिलेश यादव की सबसे मजबूत पकड़ ओबीसी में है। इसलिए प्रियंका और अजय कुमार लल्लू के सामने मजबूत पकड़ और संगठन वाली इन पार्टियों से मुकाबला करना इतना आसान नहीं है। प्रियंका को यूपी में पार्टी की नांव को पार लगाने के लिए कोई चमत्कार ही करना होगा।

2019 में नहीं चला था प्रियंका का जादू

अगर बात करें पिछले लोकसभा चुनाव 2019 की तो प्रियंका गांधी के ही कंधों पर यूपी की कमान थी। उन्होंने खुद को पहले रायबरेली और अमेठी तक ही समेट रखा था। जहां वो अपनी मां और भाई के लिए चुनाव प्रचार करती नजर आती थीं। प्रियंका का अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखना अमेठी और रायबरेली में लोगों को खींचता था। प्रियंका के लिए नारा भी गढ़ा गया था 'प्रियंका नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है', 'अमेठी का डंका, बिटिया प्रियंका' । लेकिन 2019 के चुनाव में ये पुराने नारे भी धरे के धरे रह गए। राहुल गांधी को कांग्रेस की पुश्तैनी सीट अमेठी से स्मृति ईरानी ने हरा दिया। इस तरह प्रियंका कांग्रेस के गढ़ और अपने भाई को ही जीत नहीं दिला पाईं थी। इस तरह देश की सबसे पुरानी और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस बड़ी मुश्किल से सिर्फ अपनी परंपरागत सीट रायबरेली ही बचा पाई।


2017 में सपा, कांग्रेस के साथ को जनता ने नकार दिया था

2019 के पहले अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी भी यूपी में कांग्रेस के पंजे को संजीवनी नहीं दिला पाई थी। इस गंठबधन को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था। दोनों पार्टियां मिल कर भी सिर्फ 54 सीट ही जीत पाई। हालांकि 2017 में शुरुआत में कांग्रेस पहले एकला चलो के साथ ही चुनावी ताल ठोक रही थी, नारा भी दिया था 27 साल यूपी बेहाल। लेकिन बाद में अखिलेश के साथ आने पर नारा बदल गया था नारा दिया गया था 'यूपी को ये साथ पसंद है' और 'यूपी के लड़के बनाम बाहरी" । लेकिन अखिलेश और राहुल दोनो की सियासी नैया डूब गई। इसलिए 2019 में सपा ने कांग्रेस से किनारा कर अपनी धुर विरोधी बसपा से गठबंधन कर लिया। कांग्रेस अकेली रह गई। आज की तारीख में ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस अब सहयोगी की भूमिका में ही रह गई है।

2022 के चुनाव में कांग्रेस अकेले लड़ेगी चुनाव

यूपी में कांग्रेस पार्टी इस बार का चुनाव अकेले दम पर लड़ने जा रही है। जुलाई में प्रियंका गांधी ने अपने दौरे के दौरान ये संकेत दिए थे कि वह गठबंधन के लिए तैयार हैं। लेकिन अब उनके प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने यह साफ कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेगी। कांग्रेस सभी 403 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। इसके लिए वह तैयारियों में लगे हैं। लेकिन सवाल ये कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ सात सीट और 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस पार्टी कैसे यूपी का मजबूत किला फतह कर पाएगी। जब वह अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसे में प्रियंका और अजय कुमार लल्लू के साथ तमाम नेताओं को कड़ी मेहनत करनी होगी तब वह जीत का स्वाद भले ही चख पाएं।


कांग्रेस के वोटर उनसे बिछड़े

कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक समझा जाने वाला मुसलमान यूपी में कांग्रेस से बहुत दूर जा चुका है। अखिलेश यादव की सपा उसकी पहली पसंद बनी हुई है। वहीं दलितों व पिछड़ों की बात करें तो मायावती की बसपा खुद को उनका खैरख्वाह समझती आई हैं। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने छोटे दलों के साथ मिलकर ऐसी रणनीति बनाई कि सभी चकरा गए। बीजेपी ने गैर यादव गैर जाटव वोटबैंक मे सेंधमारी तो की ही कई मुस्लिम बहुल इलाके की सीट भी अपनी झोली में करने में कामयाब रही। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 7 सीट तो 2019 लोकसभा चुनाव में 1 मात्र सीट रायबरेली ही जीत पाई।

मुस्लिमों को रिझाने के लिए इमरान प्रतापगढ़ी को कमान

यूपी के मुस्लिमों में वापस पैठ मजबूत करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी को अल्पसंख्या विभाग का अध्यक्ष बनाकर एक बड़ा दांव चला है। इमरान प्रतापगढ़ी की मुस्लिमों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें भी मुरादाबाद लोकसभा सीट से मैदान में उतारा था। वह भी चुनाव हार गए थे। इसलिए यह कह पाना मुश्किल होगा की वह यूपी के मुसलमानों को फिर से कांग्रेस में लौटा कर ले आएंगे। क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा के साथ ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी यूपी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है और असद्दीन ओवैसी यूपी अपना प्रचार भी शुरू कर चुके हैं। ओवैसी के पाले में भी मुस्लिमों की बड़ी संख्या जाने की बात कही जा रही है। इससे यूपी में कांग्रेस की राह इतनी आसान नजर नहीं आ रही है।

ब्राह्मण वोट भी छिटका?

यूपी में आजादी के बाद से 1989 तक ज्यादातर ब्राह्मण मुख्यमंत्री ही रहे । कांग्रेस शासन के अंतिम मुख्यमंत्री एनडी तिवारी थे। एक जमाने में ब्राह्मण वोट बैंक पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ थी। लेकिन 90 के दशक में मंडल-कमंडल की सियासत से यूपी की राजनीति की धुरी पिछड़ों, दलितों पर केंद्रित हो गई। लेकिन यूपी चुनाव से पहले एक बार फिर ब्राह्मण पूछ बढ़ गई है। यहां तक बसपा, सपा और बीजेपी प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर इन्हें अपने पाले में करने की कोशिश में लगे हैं। यूपी में ब्राह्मण वोट बैंक जीत हार में निर्णायक भूमिका में रहता है । कभी कांग्रेस का मुख्य जनाधार ब्राह्मण वोट बैंक हुआ करता था। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस के पक्ष में 31 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया था। उसने सबसे ज्यादा 21 सीटें जीती थी। लेकिन कई सालों से ये वोट बैंक टूटने लगा है। 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में ये बीजेपी के साथ खड़ा दिखाई दिया। उसके लिए सत्ता आसान हो गई।

कांग्रेस में सिर्फ दो बड़े ब्राह्मण नेता बचे

कांग्रेस में अब कम ही ब्राह्मण नेता रह गए हैं। हाल ही में जितिन प्रसाद भी कांग्रेस का दामन छोड़कर BJP में शामिल हो गए। अब कांग्रेस के पास यूपी में प्रमोद तिवारी और मिर्जापुर से ललितेश पति त्रिपाठी दो ऐसे बड़े नेता हैं। जिनकी ब्राह्मण समाज में ठीक ठाक पकड़ है। पार्टी ने भी इन्हीं दोनों नेताओं को ब्राह्मण वोटर्स को कांग्रेस से जोड़ने की जिम्मेदारी दी है।

प्रियंका संगठन में कितनी जान फूंक पाएंगी

यूपी चुनाव में कुछ ही वक्त बचा है। कांग्रेस के लिए यूपी में एक कड़वी हकीकत यह है कि बड़े शहरों में कुछ कार्यकर्ता पार्टी का झंडा उठाते दिख जाएंगे छोटे शहरों और कस्बों में तो पार्टी का नाम लेने वाला ही नहीं बचा। वहीं बीजेपी ने चुनाव जीतने के ट्रेंड को काफी हद तक बदल दिया है। राजनीति और रणनीति बनाने में 24×7 एक्टिव रहने वाली बीजेपी से आज की तारीख में मुकाबला कर पाना कांग्रेस की लिए एक बड़ी चुनौती है। साल 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने की एक बड़ी वजह 'एक बूथ, पांच यूथ' की रणनीति थी। जो कारगर रही । लेकिन कांग्रेस के पास बूथ स्तर पर निष्ठावान कार्यकर्ताओं का अकाल है।


बड़े नेताओं के दूसरे दल में शामिल होने की लंबी लिस्ट

यूपीए- वन और टू में दस साल तक सत्ता में मौज करने वाले कांग्रेस के बड़े नेताओं की एक लंबी चौड़ी लिस्ट है , जो उसकी डूबती नैय्या को छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रियंका गांधी महज 5 महीने के भीतर बूथ लेवल तक समर्पित कार्यकर्ताओं की इतनी बड़ी फौज कैसे तैयार कर पाएंगी? यहां यह भी कहना गलत नहीं होगा कि यूपी के 403 विधानसभा सीटों पर उनके पास दमदाम उम्मीद भी नहीं हैं। कुल मिलाकर आज की तारीख में कांग्रेस के लिए यूपी की जंग जीतना आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा दिख रहा है । अब देखना है 32 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी इस बार क्या करिश्मा कर पाती हैं?

एक नजर कांग्रेस के वोट प्रतिशत पर

उत्तर प्रदेश में पिछले दस वर्षों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो यह लगातार घटता गया है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 28 सीट और 11.6 फीसदी वोट मिला, 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी दो सीट जीती और उसे 7.5 प्रतिशत वोट मिला। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सात सीट और 6.25 फीसदी वोट मिला। 2019 के लोकसभा में भी वोट प्रतिशत इतना ही रहा। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिर्फ सवा 6 प्रतिशत वोट लेकर वह कहां और कैसे जीतेगी? फिलहाल कांग्रेस के नेता यह कहते हैं कि 2019 में बात कुछ और थी। अब प्रियंका गांधी के पूरी तरह से यूपी की कमान संभालने के बाद तस्वीर बदली है। कांग्रेस का कार्यकर्ता जाग गया है । शहर से लेकर बूथ स्तर तक उनका संगठन तैयार हो रहा है या हो चुका है। उन्हें उम्मीद है कि 2022 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी यूपी में कमाल करेगे दिखाएगी। फिलहाल यह तो जब चुनाव का रिजल्ट आएगा तब तस्वीर सबके सामने होगी।

Ashiki

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