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UP Election 2022: पश्चिम में एकतरफा नहीं बल्कि कांटे का मुकाबला? जानें क्या है भाजपा की रणनीति

UP Election 2022: आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की शुरुआत पश्चिम उत्तर प्रदेश के 58 सीटों से हो रही है।

Vikrant Nirmala Singh
Newstrack Vikrant Nirmala SinghPublished By Deepak Kumar
Published on: 4 Feb 2022 3:50 PM IST (Updated on: 5 Feb 2022 1:47 PM IST)
Up Election 2022
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UP Election 2022: आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के पहले चरण की शुरुआत पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) के 58 सीटों से हो रही है। बाकी बची सीटों पर दूसरे चरण में चुनाव होंगे। 403 सीटों की यूपी विधानसभा (UP Assembly Election) में पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) से 113 सीटें बताई जाती है। इसलिए इस बार के चुनाव का सबसे चर्चित केंद्र बिंदु पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) बना हुआ है। सिर्फ इसलिए नहीं कि यहां 113 सीटें हैं बल्कि किसान आंदोलन (Kisan Andolan) के बाद उपजी नाराजगी और पश्चिम में जाट और मुसलमानों के बीच दिखता गठबंधन राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा चुका है।

इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) और गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) के बयानों ने चुनावी पारा और ऊपर चढ़ा दिया है। एक तरफ अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और जयंत चौधरी (Jayant Choudhary) की युवा जोड़ी है तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) समेत भाजपा की एक बड़ी टीम है। इसलिए चुनावी विश्लेषकों की नजर पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) पर टिकी हुई है। यहां का चुनाव तय फिर तय करेगा कि सरकार किसकी बनने जा रही है।

पश्चिम उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव का क्या परिणाम था?

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के 325 सीटों के पीछे एक वजह पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) में बड़ी जीत रही थी। कभी शहरी सीटों की पार्टी बताई जाने वाली भाजपा (BJP) ने उत्तर प्रदेश में सबको चौंका दिया था। पश्चिम की कुल 113 सीटों में से भाजपा गठबंधन ने 91 सीटें जीती थी। वहीं मुख्य प्रतिद्वंदी रही समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को महज 17 सीटें और बसपा को 2 सीटें हासिल हुई थी।

इस तरीके की एकतरफा जीत उत्तर प्रदेश में पश्चिम के इलाके में किसी दल को नहीं मिला था। 2012 में सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिए भी पश्चिम उत्तर प्रदेश (West Uttar Pradesh) हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली समाजवादी पार्टी को इस इलाके में 41 सीटें मिली थी तो वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी को 35 और भारतीय जनता पार्टी को 18 सीटें मिली थी।

अबकी पश्चिम उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए कठिन क्यों है?

वर्तमान परिस्थितियों में पश्चिम उत्तर प्रदेश से भाजपा के विधायकों और नेताओं के गांवों से भगाए जाने की खबरें आम हो चली हैं। किसान नाराजगी की वजह से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा पश्चिम में बड़ा नुकसान झेल सकती है। इसका पहला कारण तो कृषि कानूनों पर असंवैधानिक रूप से किए गए जोर-जबर्दस्ती के कारण उत्पन्न नाराजगी है।

भाजपा के लिए दूसरी बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन है। क्योंकि पश्चिम में एक राजनीतिक घटनाक्रम बहुत स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि वहां का जाट समुदाय चौधरी जयंत (Jat community Chaudhary Jayant) को अपना नेता बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं तमाम ध्रुवीकरण के प्रयासों के बीच भी जाट और मुस्लिम समुदाय को एक कर लेना, सपा और रालोद के लिए मुफीद साबित हो रहा है।

वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा की क्या रणनीति है?

भाजपा की चुनावी रणनीति योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के उस बयान से बहुत स्पष्ट हो चुकी थी जब उन्होंने कहा था कि यह चुनाव 80 बनाम 20 (मुस्लिम) का है। उसके बाद ध्रुवीकरण की राजनीति को बल अमित शाह के प्रचार अभियान के मुहूर्त के लिए कैराना चुने जाने से स्पष्ट हो गई।

हाल के दिनों में योगी आदित्यनाथ और अमित शाह (Amit Shah) ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की बार-बार याद पश्चिम उत्तर प्रदेश में दिलाई है। क्योंकि इन दंगों के बाद से पश्चिम उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए मजबूत चुनावी जमीन बन गया था।

2014 का लोकसभा चुनाव या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव रहा हो, भाजपा ने यहां जबरदस्त जीत हासिल की थी। इसका प्रभाव इतना जबरदस्त था कि जाट समुदाय के बड़े चौधरी स्वर्गीय अजीत सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दो बार लगातार चुनाव हार गए। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के लिए मामला उलझ गया है।

पश्चिम के असंतोष को कैसे शांत कर रही है बीजेपी?

भाजपा ने अपनी बदली रणनीति के अंतर्गत 2 महीने पहले ही कृषि कानून वापस ले लिए थे। पश्चिम के बड़े जाट नेताओं को भाजपा ने नाराजगी को कम करने के लिए लगा रखा है, जिसमें प्रमुख नाम संजीव बालियान का है। इस प्रयोग के अंतर्गत पिछले महीने संजीव बालियान ने नरेश टिकैत से मुलाकात की थी, जिसके बाद नरेश टिकैत ने रालोद और सपा गठबंधन के समर्थन पर अपने दिए बयान को वापस ले लिया था। गन्ना किसानों के बीच नाराजगी को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की बिक्री रेट में भी ₹50 की बढ़ोतरी आचार संहिता लगने से पहले ही कर दी थी। पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा के कार्यकर्ता लगातार रिकॉर्ड गन्ना भुगतान की बात रख रहे हैं। भाजपा की एक रणनीति अब यह भी बताई जा रही है कि वह जाट बनाम अन्य जैसे चुनावी समीकरण पर भी काम कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो भाजपा ने बदली रणनीति के अंतर्गत गैर जाट जातियों को एक साथ जोड़कर नया चुनावी प्रयोग करने की तैयारी की है। ठीक कुछ वैसा ही प्रयोग जैसा भाजपा ने हरियाणा में किया था।

सपा और रालोद गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पश्चिम उत्तर प्रदेश मजहबी रूप से बहुत संवेदनशील इलाका है। जयंत और अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने वोटरों को एक दूसरे के प्रति स्थानांतरण कराना है। यह सवाल पश्चिम उत्तर प्रदेश में लगातार उठाया जा रहा है कि क्या मुसलमान अपनी विधानसभा सीट पर किसी मजबूत जाट प्रत्याशी को वोट देगा या फिर जाट अपनी विधानसभा सीट पर किसी मजबूत मुसलमान प्रत्याशी को वोट देगा? अगर जयंत और अखिलेश का गठबंधन वोट स्थानांतरण करने में सफल हो जाते है तो चुनाव निकल सकता है लेकिन दंगों की याद दिला कर भाजपा लगातार चुनावी माहौल बदलने का प्रयास कर रही है। योगी आदित्यनाथ के बयानों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत और अखिलेश की जोड़ी को असहज कर दिया है।

बरहाल 10 फरवरी और 14 फरवरी को दो चरणों में इन इलाकों का मतदान समाप्त हो जाएगा। आगामी 10 मार्च को चुनावी नतीजों के साथ ही स्पष्ट होगा कि इस इलाके में कौन से राजनीतिक समीकरण ने अपनी सफलता हासिल की है। वर्तमान परिस्थितियों में मुकाबला कांटे का है और आने वाले समय में राजनीतिक बयानबाजी से पश्चिम उत्तर प्रदेश का माहौल गर्म रहने वाला है।

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