TRENDING TAGS :
UP Election 2022: पश्चिमी यूपी में ठंडी पड़ी है इन मुस्लिम नेताओं की सियासी तपिश
UP Election 2022: तीन चुनावों में इन नेताओं की किसी न किसी दल की तरफ से चुनावी माहौल को गरमाने की कोशिश होती रही हैं पर इस बार इन नेताओं को टिकट नहीं मिला है ।
UP Election 2022: पिछले तीन चुनावो में गरम होता रहा पश्चिमी यूपी (western UP) का इलाका कुछ मुस्लिम नेताओं (Muslim leaders) की चुनावी भागीदारी में न होने के कारण इस दफे ठंडा पड़ा हैं। ध्रुवीकरण मे माहिर इन नेताओं की सियासी तपिश इस दफे नहीं दिख रही है। इससे पहले के तीन चुनावों में इन नेताओं की किसी न किसी दल की तरफ से चुनावी माहौल को गरमाने की कोशिश होती रही हैं पर इस बार इन नेताओं को टिकट (no ticket) नहीं मिला है जिसके कारण पश्चिमी यूपी का चुनावी माहौल पूरी तरह से ठंडा है।
हाजी याकूब कुरैशी (Haji Yakub Qureshi)
इनमें सबसे पहले नाम आता है हाजी याकूब कुरैशी का। जो इस पूरे क्षेत्र की राजनीति में एक बड़ा नाम रहा है। वह कभी बसपा तो कभी सपा में रहकर भाजपा के लिए दिक्कतें पैदा करते रहे हैं। मुलायम सरकार में मंत्री रहे हाजी याकूब कुरैशी निर्दलीय रहकर भी विधानसभा की चौखट तक पहुंचे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा पर वो चुनाव हार गए। इसके दो साल बाद जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो एक बार फिर मेरठ सीट से वह चुनाव लडे़ लेकिन उन्हे सफलता नहीं मिली तो इस बार उन्हे किसी भी दल से टिकट नहीं मिल पाया है। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल से हारने के बाद याकूब अपने बेटे इमरान कुरैशी को मेरठ दक्षिण के लिए आगे करने लगे। बसपा की अधिकांश बैठकों में इमरान पहुंचने लगे।
इमरान कुरैशी (Imran Qureshi)
बसपा ने दिसम्बर महीने में ही इमरान कुरैशी को मेरठ दक्षिण सीट से प्रत्याशी बनाया था लेकिन चुनावी घोषणा होने से एक दिन पहले ही मायावती ने उनका टिकट काट दिया। अब पिता पुत्र को आगे का कोई रास्ता नहीं दिख रहा। जिले के सपा नेता शाहिद मंजूर और अतुल प्रधान उनके धुर विरोधी हैं। ऐसे में सपा में उनकी एंट्री मुश्किल हो गयी है। इसलिए अब चुनाव लड़ने की संभावना नहीं दिख रही है।
कादिर राणा (Qadir Rana)
पश्चिमी यूपी में मुस्लिम राजनीति का कादिर राणा का एक बड़ा नाम रहा है। 2014 के मुजफ्फरनगर दंगे में भी उनका नाम खूब उछला। पूर्व सांसद और पूर्व विधायक कादिर राणा भी सपा बसपा और रालोद तीनों दलों में रहकर राजनीति करते आए हैं। टिकट पाने को लेकर ही उन्होंने बसपा से किनारा किया था लेकिन इस दफे सपा रालोद गठबन्धन के चलते अखिलेश यादव ने उनको टिकट नहीं दिया। खास बात यह है तीन दशकों बाद राणा परिवार का कोई भी सदस्य इस दफे चुनाव मैदान में नहीं है।
शाहिद अखलाक (Shahid Akhlaq)
शाहिद अखलाक भी पष्चिमी उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम चेहरा है। हर चुनाव में गैर भाजपा दलों की निगाह इस परिवार पर रहती है। लेकिन पहली बार इस परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव में नहीं उतरा है। विधायक मेयर से लेकर सांसदी तक इस परिवार के सदस्य बनते रहे हैं। शाहिद अखलाक खुद मेयर से लेकर सांसद तक रह चुके हैं तो उनके पिता अखलाक कुरैशी मेयर से लेकर विधायक तक रहे हैं। शाहिद अखलाक बसपा और सपा दोनों ही पार्टियों में रहकर चुनाव जीतते रहे हैं। चुनाव के पहले जब शाहिद अखलाक ने अखिलेश यादव से मुलाकात की तो लगा जल्द ही वह सपा में शामिल होगें। लेकिन फिर पता नही सपा में इस परिवार की बात क्यों नहीं बन पाई। पहली बार ऐसा है कि इस परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं हैं।
इमरान मसूद (Imran Masood)
इमरान मसूद पिछले 20 सालों से सहारनपुर जिले में ही नहीं बल्कि पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सियासत का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक वीडियो के माध्यम से मीडिया के निशाने पर आए पूर्व विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद के बेटे इमरान मसूद इस बार कांग्रेस से समाजवादी पार्टी में आकर फिर से चुनाव लडने की तैयारी में थें पर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हे टिकट नहीं दिया।