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UP Election 2022: कहीं यूपी चुनाव में महिलाएं निर्णायक ना साबित हो जाएं?

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में करते हैं। सवाल करते हैं कि विपक्ष महिला मतदाताओं के इस स्पेस के लिए क्या कर रहा है? क्या अखिलेश यादव का पूरा चुनाव प्रचार अभियान पुरुष केंद्रित हो चुका है?

Vikrant Nirmala Singh
Written By Vikrant Nirmala SinghPublished By Vidushi Mishra
Published on: 16 Feb 2022 2:37 PM IST (Updated on: 16 Feb 2022 2:38 PM IST)
UP Election 2022
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UP Election 2022। 

UP Election 2022: वर्ष 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव चल रहे थे। मजदूरों एवं बेरोजगारों की नाराजगी के बीच तेजस्वी यादव की चुनावी सभाओं में आश्चर्यजनक भीड़ दिखाई पड़ रही थी। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा था कि राजद गठबंधन सरकार बनाने जा रही है। लेकिन जब परिणाम आए तो कहानी बदल चुकी थी। नीतीश कुमार अपने सहयोगी गठबंधन दलों के साथ वापस सरकार में आ गए थे।

अब दूसरी घटना का जिक्र करते हैं। पिछली बार कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच बंगाल में चुनाव चल रहे थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने अपनी अब तक की सबसे सर्वश्रेष्ठ ताकत झोंक रखी थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे चुनाव भाजपा के लिए एकतरफा हो चुके हैं। लेकिन जब परिणाम आए तो भाजपा 77 सीटों पर सिमट गई और ममता बनर्जी पिछली बार की तुलना से ज्यादा सीटों के साथ बहुमत में आ गयीं।

महिला मतदाताओं ने एक साइलेंट फ़ोर्स का काम किया

अब इन दोनों राजनीतिक जीत को नजदीक से समझेंगे तो पाएंगे कि नीतीश या ममता के दोबारा सत्ता में लौटने का कारण महिला मतदाता बनी थी। बिहार में नीतीश कुमार और एनडीए गठबंधन के लिए महिला मतदाताओं ने एक साइलेंट फ़ोर्स का काम किया था।

चुनावी नतीजों का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो रहा था कि एनडीए गठबंधन पहले चरण में कमजोर पड़ गया था लेकिन दूसरे और तीसरे चरण में एनडीए ने अच्छी सीटें जीती थी। इसका कारण महिला मतदाताओं का निकल कर सामने आना रहा था। तीसरे चरण में 65.5 फ़ीसदी और दूसरे चरण में 58.8 फ़ीसदी महिलाओं ने वोटिंग की थी। इन दोनों चरणों में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में ज्यादा रही थी।

कुछ ऐसा ही जेंडर एडवांटेज ममता बनर्जी के लिए पश्चिम बंगाल में दिखाई पड़ा था। पश्चिम बंगाल में तकरीबन 50 फ़ीसदी महिला मतदाता है और इन्हीं ने भाजपा के साथ खेल कर दिया था। ममता बनर्जी चुनाव प्रचार के दौरान अपनी महिला कल्याण योजनाओं पर केंद्रित रही। उदाहरण के लिए कन्याश्री, रूपाश्री, स्वास्थ्य साथी, शिक्षा और विवाह के लिए नगद राशि, शिक्षा ऋण आदि। खुद महिला चेहरा होने का फायदा भी ममता बनर्जी को मिला था।

अब इन दोनों घटनाओं का जिक्र उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में करते हैं। सवाल करते हैं कि विपक्ष महिला मतदाताओं के इस स्पेस के लिए क्या कर रहा है? क्या अखिलेश यादव का पूरा चुनाव प्रचार अभियान पुरुष केंद्रित हो चुका है? अखिरकार प्रियंका गांधी 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के नारे के साथ सिर्फ मीडिया और विज्ञापनों में क्यों दिखाई पड़ रही हैं ?

इन सवालों के बीच महिला मतदाताओं के मतदान करने की प्रवृत्ति पर उत्तर प्रदेश में नजर बनाकर रखनी चाहिए। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी महिला मतदाताओं का मत प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक रहा था। बाद‌ के तमाम सर्वेक्षण बताते हैं कि महिलाओं ने बहुमत में भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था। इसलिए इस बार भी महिला स्पेस को नजरअंदाज करके उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को नहीं समझा जा सकता है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे मुफीद समीकरण महिला मतदाताओं का ही दिखाई पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ लगातार यह संदेश देने का काम कर रहे हैं कि उनकी सरकार ने महिलाओं के लिए ढेरों जन कल्याणकारी नीतियां बनाई है।

मसलन प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, कानून व्यवस्था, ट्रिपल तलाक, मुफ्त राशन योजना इत्यादि। कोविड-19 की महामारी के दौरान महिलाओं के जनधन खाते में प्रतिमाह ₹500 भेजे गए थे। इसका भी एक व्यापक प्रभाव चुनावों में दिखाई पड़ सकता है। मुफ्त राशन योजना तो एक ऐसी योजना बन चुकी है जिसका व्यापक प्रभाव महिला मतदाताओं के मनोविज्ञान पर दिखाई पड़ता है। योगी सरकार ने आचार संहिता लागू होने से पहले इसमें मुफ्त तेल, नमक और चना को शामिल कर बढ़त ले ली थी।

महिलाओं के लिए सुरक्षा कितना बड़ा मुद्दा?

उत्तर प्रदेश में किसी भी महिला से बात करने पर यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि उनके लिए सुरक्षा प्राथमिक मुद्दा है। पूर्ववर्ती सरकार में उनकी सबसे बड़ी नाराजगी बिगड़ती कानून व्यवस्था से थी। जब महिला मतदाताओं से वर्तमान सरकार के विषय में बात होती है तो बहुतायत कानून व्यवस्था के मुद्दे पर संतुष्ट दिखाई पड़ती है। इसलिए योगी आदित्यनाथ के लिए कानून व्यवस्था उत्तर प्रदेश के चुनाव में निर्णायक होती दिखाई पड़ रही है।

पहले और दूसरे चरण में राजनीतिक विश्लेषकों ने यह स्वीकार कर लिया कि सुरक्षा के मुद्दे पर जो मतदान दिखाई पड़ रहा है वह भाजपा के लिए प्लस है। स्कूल जाने वाली लड़कियों से लेकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाली महिलाओं के बीच में सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा था और योगी आदित्यनाथ ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया। अखिलेश को हर बार सुरक्षा के मुद्दे पर रक्षात्मक देखा गया।

प्रियंका के नए राजनीतिक प्रयोग 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' नारे पर पढ़ाई कर रही लड़कियों से बात करने पर पता चला कि वह योगी आदित्यनाथ की सरकार में सुरक्षा व्यवस्था पर ज्यादा एकमत दिखाई पड़ती है। उनका यह कहना कि हमारी सुरक्षा अगर सुनिश्चित हो जाए तो हम कोई भी लड़ाई लड़ सकते हैं यह बताता है कि यह मुद्दा योगी आदित्यनाथ के लिए कितना निर्णायक होने वाला है।

वहीं अखिलेश यादव के साथ सबसे बड़ी चुनौती महिला स्पेस में उनकी उपस्थिति का कम होना है। समाजवादी पार्टी के पास कोई ऐसी महिला नेत्री नहीं है जो महिलाओं का एक बड़ा मत समाजवादी पार्टी की तरफ मोड़ सके। डिंपल यादव भी चुनाव प्रचार से काफी दूर दिखाई पड़ रही है।

अखिलेश ने ममता बनर्जी के जरिए एक कोशिश जरूर की लेकिन यह उत्तर प्रदेश में बहुत कामयाब प्रयोग नहीं है। प्रियंका भी महिलाओं का वोट अपनी महिला केंद्रित चुनाव रणनीति के बावजूद भी हासिल करती नहीं दिख रही हैं। इसलिए यूपी चुनाव में महिलाओं का पूरा स्पेस खाली दिखाई पड़ता है। यही भाजपा अब महीन तरीके से काम कर रही है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के लिए महिलाओं के बीच में बराबर एक सहानुभूति देखी जाती है। प्रधानमंत्री अपने हर भाषण में महिलाओं के संदर्भ में जिक्र करना नहीं भूलते हैं। योगी आदित्यनाथ भी लगातार कानून व्यवस्था का जिक्र कर रहे हैं।

भाजपा की पूरी मशीनरी यह याद दिला रही है कि महिलाएं योगी सरकार में ही सुरक्षित हैं। इसलिए इस बार चुनाव में तमाम मुद्दों की बहसों के बीच में महिला मतदाताओं का मत निर्णायक होने जा रहा है। यह संभव है कि नीतीश और ममता की तरह योगी आदित्यनाथ भी महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफल हो जाए।

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