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जोश में होश खो बैठी योगी सरकार, गले की फांस बना फैसला

अखंड बहुमत और प्रचंड आकांक्षाओं के दो पहियों पर चल रही यूपी की भाजपा सरकार की स्टेयरिंग योगी आदित्यनाथ के हाथ है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरका

tiwarishalini
Published on: 23 Jun 2017 3:49 PM IST
जोश में होश खो बैठी योगी सरकार, गले की फांस बना फैसला
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लखनऊ: अखंड बहुमत और प्रचंड आकांक्षाओं के दो पहियों पर चल रही यूपी की भाजपा सरकार की स्टेयरिंग योगी आदित्यनाथ के हाथ है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार की यात्रा का पहला पड़ाव भी पार कर लिया है। 100 दिन का पहला पड़ाव काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कहते हैं कि पूत के पांव पालने में और सरकार की चाल 100 दिन में दिख ही जाती है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ताबड़तोड़ फैसले लेकर अपने पहले पखवारे में सेंचुरी तो मार दी पर बहुत से उसके फैसले अब पलटकर उसके लिए ही अग्निपरीक्षा साबित हो रहे हैं। 100 दिन की शुरुआत के दो फैसलों की बात की जाए तो एंटी रोमियो दल और किसान कर्जमाफी की फांस ने सरकार की छवि को कसौटी पर कसा है।

गले की फांस बना फैसला

- एंटी रोमियो स्क्वायड को लेकर सरकार ने जिस गति से फैसला किया वह तो काबिले तारीफ था पर अफसरों के अति उत्साह ने इस फैसले को गले की फांस बना दिया। इस कदर कि खुद मुख्यमंत्री को अपने पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को इस तरह के अति उत्साह से बचने की हिदायत देनी पड़ी।

- किसान कर्जमाफी भाजपा का अहम चुनावी मुद्दा था। केन्द्र सरकार की तरफ से कोई मदद न मिलने से 36 हजार 369 करोड़ रुपये के इस बोझ को उतारने के लिये वित्त विभाग तरकीबें ढूंढ़ रहा है। सरकार अब कर्ज लेकर कर्जमाफी करने की बात कर रही है। वहीं एक तरीका यह भी निकाला गया है कि कर्जमाफी एक ही वित्तीय वर्ष में होगी पर इसके लिए कुछ स्लैब बनाए जा सकते हैं।

- किसानों की कर्जमाफी के अलावा सातवें वेतन आयोग को लागू करने में आने वाला 34 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्ययभार भी सरकार को उठाना है।

- इसके अलावा पूर्वाचल एक्सप्रेसवे जैसी मेगा परियोजनाओं के लिये धन उपलब्ध कराना भी सरकार के लिये बड़ी चुनौती है। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद एक आदेश के तहत 15 जून तक राज्य की सभी सडक़ों को गड्ढ़ामुक्त करने का फरमान सुनाया था। स्पष्ट आदेशों के बावजूद राज्य सरकार 15 जून तक केवल 63 प्रतिशत सडक़ों को ही गड्ढामुक्त कर सकी है। इसमें भी पीडब्ल्यूडी के अलावा किसी विभाग ने उनकी सुनी ही नहीं है।

शुरुआती तेजी के बाद जांच सुस्त

सत्ता संभालते ही योगी सरकार ने पिछले सरकार के रिवर फ्रंट घोटाले, वक्फ घोटाले और एक्सप्रेसवे घोटाले की जांच के आदेश दिए हैं। रिवर फ्रंट के घोटाले की जांच रिपोर्ट में सिर्फ अधिकारियों को दोषी ठहराया गया है। उसमें भी वर्तमान मुख्य सचिव और अखिलेश के करीबी राहुल भटनागर को बचाकर सिर्फ कुछ रिटायर हो चुके अधिकारियों की तरफ ही इशारा किया गया है। सियासी तौर पर मानें तो योगी सरकार ने यह चाल अखिलेश यादव सरकार को भ्रष्टाचार में लपेटने के लिए चली थी पर नेताओं को बरी करती इस रिपोर्ट को देखकर साफ है कि यह मौका हाथ से जाता दिख रहा है। आगरा एक्सप्रेसवे की जांच भी शुरुआती तेजी के बाद अब सुस्त सी हो गयी है। वहीं वक्फ घोटाले को लेकर कई तरह के बयानों ने जांच शुरू होने से पहले ही सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।

थानेदार नहीं कर रहे काम

अगर जिलों की बात की जाए तो जिलों में ज्यादातर थानेदार बदले नहीं गये पर सपा के करीबी होने की वजह से वे जानते हैं कि उन्हें बदला जाना है। ऐसे में वे काम नहीं कर रहे हैं। प्रशासनिक तजुर्बा रखने वाले कहते हैं कि जो तबादले होने हैं उन्हें कर दिया जाए और नहीं तो यह आश्वस्त कर दिया जाए कि जो है वह बना रहेगा। स्थायित्व न होना ही ही सारी समस्या का जड़ है। यह प्रशासनिक अदूरदॢशता ही है कि दलित और गैरदलित के बीच ही तनाव और टकराव बढ़ रहा है। सहारनपुर की घटना से पांव जमा रही योगी सरकार खासी किरकिरी हुई है।

दरअसल इस दौरान कानून-व्यवस्था को लेकर कई बड़ी चुनौतियों ने सरकार को विपक्ष के निशाने पर ला दिया। कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने के वादे के साथ प्रदेश में आई योगी सरकार के गठन के बाद आपराधिक वारदात में तेजी आ गई। 50 दिन में ही हत्या की सौ घटनाएं हो गयीं। डे-लाइट मर्डर और डकैती की घटनाओं ने हालात और बिगाड़ दिए। हिन्दू युवा वाहिनी और भगवा गमछों की हरकत रोकने का प्रभावी कदम न उठाए जाने से भाजपा को नुकसान हो सकता है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक लिहाज से अतिसंवेदनशील यूपी में भाजपा की छवि को यह गहरा आघात दे सकता है।

अफसरों में ऊहापोह से काम पर उल्टा असर

पुराने ही अधिकारियों से काम कराने को लेकर मुख्यमंत्री का रुख भले ही एक नई नजीर पेश करता हो पर देर से हुए तबादलों और अधिकारियों के बीच ऊहापोह की स्थिति ने बहुत से कामकाज पर उल्टा असर डाला है। दरअसल भाजपा ने यूपी के चुनाव के दौरान डीजीपी और मुख्य सचिव दोनों को हटाने के लिए केंद्रीय निर्वाचन आयोग को पत्र दिया था। डीजीपी को अप्रैल में हटाया गया पर मुख्य सचिव के बने रहने से कई तरह के संदेश जा रहे हैं। वह भी तब जब मुख्य सचिव के बारे में मीडिया में शुगर डैडी जैसी खबरें छप रही हैं जिसका मतलब है कि वे शुगर लॉबी के सरपरस्त हैं और उसी के भरोसे बने हुए हैं। मुख्यमंत्री ने सरकार बनते ही सेवानिवृत्त अधिकारियों को तत्काल हटाने का फरमान जारी किया था, लेकिन इस पर अमल खुद मुख्य सचिव के कार्यालय में नहीं हो पाया है। उनके कार्यालय में आरडी पॉलीवाल और एसएन श्रीवास्तव उनके सहयोगी के तौर पर सेवानिवृत्ति के बाद इस सरकार में भी काम करते रहे।

सीएम के जाते ही खुलवा लिया एसी

- नौकरशाही की अदूरदॢशता का ही नतीजा था कि मुख्यमंत्री देवरिया के एक शहीद प्रेम सागर के ग्राम टीकमपार स्थित घर गये। अफसरों ने शहीद के गांव में कालीन बिछवाया, एसी लगाया और गोरखपुर के टेंट हाउस से मंगाकर सोफा आदि लगा दिया। योगी शहीद परिवार को सांत्वना देकर लौटे तो सब हटा दिया गया। जिस दीवार को तोडक़र एसी लगाया गया था वह दीवार और टेंट के सामानों को लेकर मीडिया और सोशल मीडिया में खबर बहुत वायरल हुई। सोशल मीडिया पर यह खूब वायरल हो रहा है कि यह सरकार पिछली अखिलेश की सरकार से ज्यादा जातिवादी है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को व्यक्तिगत तौर पर इसका जवाब ढूंढना होगा।

कुल मिलाकर एक कहावत है कि नौ दिन चले.....। अब योगी सरकार की रफ्तार को देखकर इस कहावत को सौ दिन में बदला जा सकता है पर कितने कोस, यह सवाल हर उस दिमाग में कौंध रहा है जिसका यूपी से संबंध है।

tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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