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योगी सरकार अभी तक रिव्यू नहीं कर पाई सरकारी वकीलों की सूची

Rishi
Published on: 28 Aug 2017 8:42 PM IST
योगी सरकार अभी तक रिव्यू नहीं कर पाई सरकारी वकीलों की सूची
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21 और 22 फरवरी को अधिवक्ताओं की गैर मौजूदगी में नहीं होगा प्रतिकूल आदेश 

लखनऊ: योगी सरकार अदालत के आदेश के एक माह बाद भी इलाहाबाद हाईकोर्ट व इसकी लखनऊ खंडपीठ में गत 7 जुलाई को जारी की गयी साढ़े पांच सौ से अधिक सरकारी वकीलों की लिस्ट का रिव्यू नहीं पूरा कर पाई।

हालांकि सरकार ने सेामवार को कोर्ट को बताया कि नियुक्तियों के रिव्यू के लिए तीन सदस्यीय एक कमेटी बना दी गयी है। कमेटी में महाधिवक्ता, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एवं प्रमुख सचिव विधि रहेंगे। महाधिवक्ता कमेटी के चेयरमैन होंगे। यह कमेटी 5 सितंबर तक रिव्यू पूरा कर नई सूची जारी कर देगी।

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यह जानकारी सरकार की ओर से सोमवार को एक हलफनामा दायर कर हाईकोर्ट को दी गयी। इसके बाद जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस दया शंकर त्रिपाठी की बेंच ने मामले में रिपेार्ट पेश करने के लिए सरकार को समय देते हुए अगली सुनवाई 5 सितंबर नियत कर दी। महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह व मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे ने एक हलफनामा पेश कर कोर्ट को कमेटी के बावत जानकारी दी और रिव्यू के लिए और अधिक समय की मांग की थी।

वहीं याची की ओर से पेश पूर्व अपर महाधिकवक्ता बुलबुल गोदियाल ने कहा कि जब कोर्ट पहले ही सूची को अवैध करार दे चुकी है तो ऐसे सरकारी वकीलेां से काम लेना सरासर गलत है। सपा सरकार में पीआईएल मामले देखने वाली गोदियाल ने कहा कि एक माह में सूची को रिव्यू न कर पाने पर सरकार की कार्यप्रणाली व इसकी गति पर संदेह होता है।

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योगी सरकार ने 26 मार्च को अपने गठन के लंबे समय बाद अप्रैल में महाधिवक्ता की नियुक्ति की। अप्रैल से लेकर जुलाई के बीच की गयी लंबी कवायद के बाद राज्य सरकार ने 7 जुलाई 2017 को इलाहाबाद व लखनऊ हाई कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए सूचियां जारी की। सूची जारी करते ही बीजेपी व संघ में घमासान मच गया और आरेाप लगा कि नयी सूची में चार दर्जन से अधिक पुराने सरकारी वकीलों को ही बड़े बड़े ओहदेां पर जगह दे दी गयी जबकि भाजपा व संघ से जुड़े तमाम कद्दावर वकील मुंह ताकते रह गये।

सूची मे जहाँ सपा के एक पूर्व मंत्री के बेटे को फिर से बहाल रखा गया वहीं तमाम रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों के पुत्रों व लोवर न्यायपालिका के रिकमंडेड कंडीडेट्स को भारी महत्व दिया गया। सपा व बसपा के कई ओहदेदारों को भी सरकारी वकीलों के पद पर या तो बनाये रखा गया या उन्हें जगह दे दी गयी थी।

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मामला तूल पकड़ते देख सूची से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह व विधि मंत्री बृजेष पाठक ने भी पल्ला झाड़ लिया कि उन्होंने जिस सूची पर दस्तखत किये थे वह जारी ही नहीं हुई। ऐसे मे सरकार ने सूची को स्वयं रिव्यू करने की बात कही।

इस बीच हाईकोर्ट में एडवोकेट महेंद्र सिंह पवार ने एक पीआईएल दायर कर सूची को इस आधार पर चुनौती दी कि जब महाधिवक्ता व सरकार के संबधित मंत्री ने सूची पर हस्ताक्षर ही नही किये तो फिर जारी की गयी सूचियां अवैध हैं। कोर्ट ने रिकार्ड मंगाकर देखा तो आरोपों को सही पाया और 21 जुलाई को तय कर दिया कि सूची कानून की नजरों में टिकने वाली नही हैं।

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हांलाकि कोर्ट ने सूची पर रोक लगाने की बजाय येागी सरकार के मांगने पर समय दे दिया कि वह जल्द से जल्द सूची को रिव्यू कर ले। कोर्ट ने अगली सुनवायी 8 अगस्त नियत की थी । हांलाकि 8 अगस्त को सरकार की ओर से और समय की मांग की गयी जिस पर कोर्ट ने नाखुशी जाहिर करते हुए अगली सुनवाई 28 अगस्त तय कर दी थी।

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कोर्ट के आदेश जारी करने के बाद एक माह बाद भी सरकार रिव्यू का काम पूरा नही कर पायी और सोमवार केा फिर से समय की मांग की। हालांकि सरकार ने हलफनामा पेश कर कोर्ट को यह जरूर बताया कि रिव्यू के लिए कमेटी बना दी गयी है।

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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