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UP Ke Famous Mandir: स्कंदमाता सिखाती हैं एकाग्रता, जानें कहां स्थित मंदिर में पूजन से होती है संतान प्राप्ति
Skandmata: नवरात्र के पांचवें दिन आदि शक्ति स्वरूप देवी स्कंदमाता की आराधना का विधान शास्त्रों-पुराणों में किया गया है।
UP Ke Famous Mandir: शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन माता दुर्गा के नौ रूपों में पांचवीं देवी स्कंदमाता की आराधना होती है। शिव नगरी काशी में माता दुर्गा के सभी नौ रूपों के अलग-अलग मंदिर हैं। लेकिन हम यहां बात करते हैं, उस मंदिर की विशेषता और वहां पहुंचने वाले भक्तों की वहां कौन से मुराद पूरी होती है। इसी क्रम में हम आज आपको बताने जा रहे हैं, वाराणसी स्थित शक्ति स्वरूपा देवी स्कंदमाता मंदिर (Skandmata Mandir) के बारे में।
नवरात्र के पांचवें दिन आदि शक्ति स्वरूप देवी स्कंदमाता की आराधना का विधान शास्त्रों-पुराणों में किया गया है। वाराणसी में देवी स्कंदमाता का मंदिर जगतपुरा क्षेत्र स्थित बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में है। मान्यता है यहां देवी की आराधना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही माता के आशीर्वाद से मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। स्कंद अर्थात 'कार्तिकेय की माता' होने के कारण ही देवी के इस रूप को स्कंदमाता कहा जाता है। देवी के इस रूप का वर्णन 'काशी खंड' और 'देवी पुराण' के क्रम में स्कंद पुराण में किया गया है।
स्कंदमाता रूप की मान्यता (Skandmata Rupi Ki Manyata)
वाराणसी के ज्योतिषियों की मानें तो भगवती के पंचम स्वरूप स्कंदमाता के दर्शन पूजन का विधान पुराणों में किया गया है। स्कंदमाता को बागेश्वरी देवी के रूप में भी पूजा जाता है। भगवती शक्ति से उत्पन्न सनत कुमार यानी स्कंद की माता होने से भगवती स्कंदमाता कहलाती हैं। माता के इस रूप में वह सिंह पर सवार चार भुजाओं में दिखती हैं। स्कंदमाता में मातृत्व है। वे सभी तत्वों की मूल बिंदु का स्वरूप हैं। उन्हें वात्सल्य स्वरूपा कहा जाता है। अतः कहें तो उनकी साधना, आराधना से वात्सल्य और प्रेम की प्राप्ति होती है।
दर्शन से होता है संतान सुख की प्राप्ति
मां दुर्गा के पांचवें रूप स्कंदमाता का भारत में एकमात्र मंदिर वाराणसी में है। हालांकि यह दावा मंदिर के पुजारी करते हैं। उनका कहना है कि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इसका कोई विवरण लिखित तौर पर मौजूद नहीं है। यहां उनकी कई पीढ़ियां सेवाएं देती आई है। लेकिन देवी का उल्लेख ग्रंथों में किया गया है। मंदिर के सेवादार बताते हैं कि जिस दंपति को संतान सुख अब तक प्राप्त नहीं हुआ है, वह अगर यहां पूजा करें तो उनकी मनोकामना माता रानी जरूर पूरा करती हैं। इसलिए नवरात्रि के दौरान यहां ऐसे अनगिनत दंपति आते हैं, जिन्हें अब तक संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है। इस मंदिर के पहले तल पर स्कंदमाता का विग्रह है, तो नीचे गुफा में माता बागीश्वरी का विग्रह।
बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। अर्थात् माता रानी की पूजा से बुध ग्रह के सभी बुरे प्रभाव कम हो जाते हैं। स्कंदमाता 'अग्नि' और 'ममता' की प्रतीक मानी जाती हैं। इसलिए अपने भक्तों पर सदा प्रेम आशीर्वाद की कृपा करती रहती है।
क्या है कथा में? (Kya Hai Katha)
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि असुर तारकासुर कठोर तप कर रहा था। उसकी तपस्या से भगवान ब्रह्मा अति प्रसन्न हुए। ब्रह्मा ने कहा वरदान मांगो। तारकासुर ने वरदान में अमर होने की इच्छा रखी। यह सुनकर ब्रह्मा जी ने उसे बताया कि इस धरती पर जिसने जन्म लिया है,उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। इसलिए कोई अमर नहीं हो सकता। तारकासुर निराश हो गया। फिर उसने वरदान में मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही मेरा वध करे। इसके पीछे तारकासुर ने यह सोचा था कि भगवान शिव तो कभी विवाह करेंगे नहीं। फिर उनका पुत्र आएगा कहां से। ब्रह्मा जी ने यह वरदान दे दिया। अब तारकासुर यह वरदान प्राप्त कर लोगों पर अत्याचार करने लगा। परेशान आकर सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। जब कार्तिकेय बड़े हुए तब उन्होंने तारकासुर का वध किया।
स्कंदमाता के इस रूप की आराधना के लिए मंत्र (Skandmata Ka Mantra)
सिंहासनगता नित्यं,पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी,स्कंदमाता यशस्विनी।।
क्या है पूजन विधि (Kya Hain Puja Vidhi)
देवी स्कंदमाता की पूजा के लिए सबसे पहले जहां कलश स्थापित की गई है। वहां पर स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद उस पर फल, फूल चढ़ाना चाहिए। जिसके बाद धूप-दीप जलाना चाहिए। माना जाता है, कि पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करना बेहद शुभ होता है। शेष प्रक्रिया वैसी ही है जैसी अन्य रूपों की होती है।
स्कंदमाता सिखाती हैं एकाग्रता
स्कंदमाता का यह रूप हमें एकाग्र रहना सिखाता है। साथ ही सिखाती हैं कि जीवन खुद ही अच्छे-बुरे के बीच एक संग्राम है। हम खुद अपने सेनापति हैं। हमें इस जीवन को सफल और निर्भीक होकर चलाने की शक्ति मिलती रहे, इसलिए स्कंदमाता की आराधना करते रहना चाहिए। पूजा के दौरान जातक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे ध्यान, चित्त और वृत्ति एकाग्र हो सके।