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UP Ke Pramukh Mandir: यहां है माता कुष्मांडा का सबसे प्राचीन मंदिर, पिंडी से रिसता पानी आज भी है रहस्य 

Kushmanda Mata Ka Mandir: यूपी में माता कुष्मांडा का एकमात्र मंदिर कानपुर के घाटमपुर में है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि मां दुर्गा की पूजा के बाद मूर्ति से नीर लेकर जो कोई भक्त अपनी आंखों पर लगाता है उसे 'दिव्य नेत्र ज्योति' प्राप्त होती है।

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Report amanPublished By Shweta
Published on: 8 Oct 2021 8:40 PM IST
Mata Kushmanda
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 माता कुष्मांडा (फोटोः सोशल मीडिया)

UP Ke Pramukh Mandir: नवरात्र के चौथे दिन की मां दुर्गा के 'कुष्मांडा' रूप की पूजा होती है। क्या आपको पता है कि यूपी में माता कुष्मांडा (Kushmanda Mandir Kahan Hai)का एकमात्र मंदिर कानपुर के घाटमपुर में है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि मां दुर्गा की पूजा के बाद मूर्ति से नीर लेकर जो कोई भक्त अपनी आंखों पर लगाता है उसे 'दिव्य नेत्र ज्योति' प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, नेत्र विकार से सम्बंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है। नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में मेला लगता है। खासकर, नवरात्रि के चौथे दिन यहां हजारों भक्त माता रानी के दर्शन को कतारबद्ध खड़े रहते हैं। जिन जातकों की मनोकामना पूरी हो जाती है, वो मैय्या को लाल चुनरी, ध्वजा, नारियल, घंटा के साथ भींगे चने अर्पित करते हैं।

इस मंदिर की प्राचीनता का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि इसका उल्लेख भदरस गांव निवासी कवि उम्मेदराय खरे की साल 1783 में फारसी में लिखी गई पांडुलिपि जिसका नाम 'ऐश अफ्जा' था, में भी हुआ है। 'ऐश अफ्जा' में माता कुष्मांडा और माता भद्रकाली के स्वरूपों का वर्णन किया गया है। इसी तरह कानपुर के दो इतिहास लेखकों लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और नारायण प्रसाद अरोड़ा ने भी घाटमपुर की कुष्मांडा देवी का उल्लेख अपने लेखन में किया है।

कुष्मांडा मंदिर का क्या इतिहास (Kushmanda Mandir Ka Itihas)

इतिहासकारों के मुताबिक, घाटमपुर के इस इलाके में कभी घना जंगल हुआ करता था। उनके अनुसार, तब कुड़हा नामक चरवाहा इस क्षेत्र में गाय चराने जाया करता था। गाय झाड़ियों के पास खड़ी होकर अपना दूध गिरा दिया करती थी। कहानी के अनुसार, चरवाहे ने जब गायों की निगरानी की तब उसके सपने में माता रानी ने ने दर्शन दिए। चरवाहा के सपने की बात बताने के बाद जब झाड़ियों के नीचे खुदायी की गई तो वहां मां कुष्मांडा प्रकट हुईं। आज उसी स्थान पर माता का मंदिर है। चरवाहे कुड़हा के नाम पर मां कुष्मांडा का एक नाम कुड़हा देवी भी है। यहां के स्थानीय निवासी उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं। इतिहासकारों की मानें तो कुष्मांडा देवी का जो मंदिर आज है उसे साल 1890 में कस्बे के चंदीदीन भुर्जी ने करवाया था। बाद में, सितंबर 1988 से माता कुष्मांडा के इस मंदिर में अखंड ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित हो रही है।

कुष्मांडा मंदिरपिंडी से रिसता पानी बना रहस्य (Kushmanda Mandir Ka Rahasya)

मंदिर के सेवादार बताते हैं, कि माता कुष्मांडा (Story Of Kushmanda Devi Mandir) की एक पिंडी है, जिससे लगातार पानी रिसता रहता है। कहते हैं, कि इस पानी का सेवन कई प्रकार की बीमारियों से निजात दिलाता है। आश्चर्य की बात है कि देवी की पिंडी से रिसने वाला पानी कहां से आता है, इसका अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। आज भी लोगों के लिए यह रहस्य बना हुआ है।

परिसर के तालाब का जल ही चढ़ाते हैं

कुष्मांडा देवी के इस मंदिर परिसर में दो तालाब भी बने हैं। कहा जाता है प्राचीन समय से ही भक्त तालाब में स्नान करने के बाद दूसरे कुंड से जल लेकर माता कुष्मांडा को चढ़ाते रहे हैं। यहां से जुड़े एक सेवादार बताते हैं कि माता कुष्मांडा का मंदिर जब से बना है, तब से परिसर का तालाब कभी नहीं सूखा। बरसात हो या न हो, लेकिन यह तालाब कभी सूखता नहीं है।

मेले के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

उल्लेखनीय है, कि कुष्मांडा देवी मंदिर में मूर्ति की पूजा वहां के माली द्वारा ही किया जाता है। शारदीय नवरात्र, चैत्र नवरात्रि मेला सहित अन्य प्रमुख पर्व पर मेला परिसर की साफ-सफाई और रोशनी आदि की व्यवस्था नगर पालिका प्रशासन ही करवाता है। नवरात्रि के दौरान लगने वाले मेले में मंदिर परिसर की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती भी होती है।

ऐसे पहुंचें मां कुष्मांडा के मंदिर

अब सबसे अहम जानकारी उन भक्तों के लिए जो माता कुष्मांडा के इस मंदिर दर्शन के लिए जाना चाहते हैं। दर्शनार्थी यहां पहुंचने के लिए बस सेवा ले सकते हैं। इसके अलावा कानपुर-बांदा रेल लाइन से घाटमपुर स्टेशन उतरकर भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। माता कुष्मांडा का यह मंदिर कानपुर-सागर राजमार्ग के किनारे स्थित है। यह मंदिर काफी चर्चित है इसलिए यहां पहुंचने के लिए साधन उपलब्ध रहते हैं। कानपुर के नौबस्ता बाईपास से मंदिर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

माता कुष्मांडा को प्रसन्न करने लिए भक्त इस मंत्र का करें पाठ

ॐ देवी कूष्माण्डायै नम:॥

माता का बीज मंत्र:

कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:

माता की प्रार्थना:

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

स्तुति:

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥



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