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UP Ke Sarkari School: सरकारी स्कूलों से हो रहा है बच्चों व अभिभावकों का मोहभंग, ट्यूशन की ओर किया बच्चों ने रुख़

UP Ke Sarkari School: बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32. 5 फ़ीसदी से घटकर, 2021 में 24.4 फ़ीसदी हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Divyanshu Rao
Published on: 17 Nov 2021 10:19 AM GMT
Difference Government School and Private School
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सरकारी और प्राइवेट स्कूल के छात्रों की तस्वीर

UP Ke Sarkari School: सरकारी स्कूलों (Government School in Uttar Pradesh) से अभिभावकों का मोहभंग हो रहा है। लड़कियों की तुलना में निजी स्कूलों में लड़कों को तालीम दिलाने को ज़्यादा तरजीह दी जा रही है। हालाँकि की उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में नामांकन में बीते तीन सालों में तेरह फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। केरल को छोड़ सभी राज्यों में ट्यूशन में काफ़ी बढ़ोतरी देखी गयी है। जिन बच्चों के माता पिता कक्षा नौ से अधिक पढ़े लिखे हैं ऐसे अस्सी फ़ीसदी बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन उपलब्ध हैं।

बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32. 5 फ़ीसदी से घटकर, 2021 में 24.4 फ़ीसदी हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है। 2018 में अनामांकित बच्चों का अनुपात 1.4फीसदी था, जो कि 2020 में बढ़कर 4.6 फ़ीसदी हो गया था। यह अनुपात 2021 में अपरिवर्तित रहा।15-16 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57.4 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में 67.4 फ़ीसदी हो गया है। इस बदलाव के दो मुख्या कारण है – पहला कि इस आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों का अनुपात 2018 में 12.फीसदी से घटकर 2021 में 6.6 प्रतिशत ही रह गया। दूसरा कि निजी स्कूलों के नामांकन में भी गिरावट दर्ज हुई है।

इसके विपरीत, कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में, सरकारी स्कूलों के नामांकन में गिरावट आई है।अनामांकित बच्चों के अनुपात में वृद्धि हुई है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन 2018में 43.1 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में 56.3 फ़ीसदी हो गया। अन्य राज्यों की तुलना में यह बड़ा बदलाव हैं।

ट्यूशन

राष्ट्रीय स्तर पर, 2018 में, 30 प्रतिशत से कम बच्चे निजी ट्यूशन कक्षाएं लेते थे। 2021 में यह अनुपात बढ़कर लगभग 40 हो गया है। प्राथमिक शिक्षा या कम तालीम पाये माता-पिता के बच्चों में ट्यूशन लेने के अनुपात में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पढ़े-लिखे यानी कक्षा 9 या अधिक पास माता-पिता के बच्चों में यह वृद्धि 7.2 प्रतिशत की है।केरल को छोड़कर सभी राज्यों में ट्यूशन में वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश में 2018 में 20 फ़ीसदी 2021 में यह अनुपात बढ़ कर 38.7 हो गया है।राष्ट्रीय स्तर पर अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश और नागा लैंड का दूसरा स्थान है। जहां यह बढ़ोतरी सबसे ज़्यादा 19.1 फ़ीसदी हुईं है।

सरकारी स्कूल के बच्चे की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

स्मार्टफ़ोन

पिछले वर्ष स्कूल बंद होने के बाद जब सभी शैक्षिक प्रक्रियाएं ऑनलाइन होने लगी, तब स्मार्टफ़ोन शिक्षण का प्रमुख स्त्रोत बन गया। इससे सबसे वंचित वर्ग के बच्चों के पीछे छूट जाने की संभावना दिखने लगी। लिहाज़ा स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 36.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 67.6 हो गई है। लेकिन सरकारी विद्यालय जाने वाले बच्चों की अपेक्षा 63.7 फ़ीसदी निजी विद्यालय के 79 फ़ीसदी से ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उबलब्ध हैं।

2021 में ऐसे 80 फ़ीसदी बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 9 से अधिक पढ़े-लिखे हैं। इसकी तुलना में केवल 50 प्रतिशत ऐसे बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 5 से कम पढ़े-लिखे हैं। लेकिन जिन बच्चों के माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं, उनमें भी लगभग एक चौथाई से अधिक बच्चों की पढ़ाई के लिए मार्च 2020 के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा गया।

हालाँकि नामांकित सभी बच्चों में से दो तिहाई से अधिक यानी 67.6 फ़ीसदी बच्चों के पास घर पर स्मार्टफ़ोन हैं, इनमें से लगभग एक चौथाई यानी तक़रीबन 26.1 फ़ीसदी ऐसे बच्चे हैं, जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है। इसमें कक्षावार देखने पर यह स्पष्ट होता है कि छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा उच्च कक्षा में पढ़ने वाले ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 30.4 फ़ीसदी से बढ़कर 2021 में लगभग दोगुनी होकर 58.9 फ़ीसदी हो गई है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में नामांकित सभी बच्चों में से 58.9 फ़ीसदी बच्चों के पास घर पर स्मार्टफोन उपलब्ध है, इनमें से लगभग 34 फ़ीसदी ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन पढ़ाई के लिए उपलब्ध नहीं है।

घर में बच्चों को पढ़ाई में सहयोग

घर पर पढ़ने में सहयोग मिलने वाले नामांकित बच्चों का अनुपात 2020 में तीन चौथाई से घटकर 2021 में दो तिहाई हो गया है। सहयोग में सबसे ज़्यादा गिरावट उच्च कक्षा यानी कक्षा 9 या अधिक के बच्चों के लिए आई है। दोनों सरकारी और निजी विद्यालय जाने वाले बच्चों में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनको घर से कम सहयोग मिल रहा है। उदाहरण के लिए, जो निजी विद्यालय नहीं खुले है, उनमें जाने वाले 75.6 फ़ीसदी बच्चों को पढ़ने में सहयोग मिलता है। इसकी तुलना में खुले हुए निजी विद्यालयों में जाने वाले 70.4 प्रतिशत बच्चों को यह मदद मिलती है। असर 2021 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 68.7 फ़ीसदी नामांकित बच्चों ,सरकारी और प्राइवेट, को घर से पढ़ाई में सहयोग मिला ।

शैक्षिक सामग्री की उपलब्धि

लगभग सभी तक़रीबन 91.9 फ़ीसदी नामांकित बच्चों के पास अपनी वर्तमान कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं। दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों के लिए यह अनुपात पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा असर 2020 में 79.6 फ़ीसदी से बढ़कर 91.3 फ़ीसदी हो गया है ।

जिन नामांकित बच्चों के विद्यालय नहीं खुले हैं, उनमें से 39.8 फ़ीसदी बच्चों को सर्वेक्षण के पिछले सप्ताह में अपने शिक्षक द्वारा किसी प्रकार की शैक्षिक सामग्री या गतिविधियाँ, पाठ्यपुस्तकों के अलावा, प्राप्त हुई। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है, जब यह अनुपात 35.6 फ़ीसदी था।

पिछले एक सप्ताह में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनमें से 46.4 प्रतिशत को शैक्षिक सामग्री मिली थी। जिन बच्चों के विद्यालय नहीं खुले थे, उनमें यह अनुपात 39.8 फ़ीसदी है। यह मुख्य रूप से खुले हुए विद्यालयों में गृहकार्य मिलने के कारण है।

सरकारी विद्यालयों के नामांकन में पिछले दो वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता हैं। विद्यालय खुलने के साथ बच्चों को मिलने वाला पारिवारिक सहयोग 2020 से कम हो गया है। लेकिन यह विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं के लिए अभी भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा की योजनाएँ बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित है।

माता-पिता के साथ विचार-विमर्श यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद करे।हाइब्रिड लर्निंग के प्रभावी तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को पढ़ाने के आम और नए तरीकों को साथ में लागू किया जा सकें। असर 2021 की सोलहवीं वार्षिक रिपोर्ट यह भी कहती है कि परिवार में स्मार्टफ़ोन होने पर भी वह अक्सर बच्चों के उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होता। भविष्य में बनाई जाने वाली डिजिटल सामग्री और रिमोट लर्निंग की योजनाओं में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।

यह सर्वेक्षण फ़ोन से पहले लॉकडाउन के अठारह महीने बाद, सितंबर-अक्टूबर 2021 में यह पता लगाने के लिए किया गया कि महामारी की शुरुआत के बाद से 5-16 आयु वर्ग के बच्चे घर पर कैसे पढ़ रहे हैं, और विभिन्न राज्यों में अब विद्यालय खुलने पर परिवारों और विद्यालयों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं।असर 2021 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में संचालित किया गया। यह सर्वेक्षण कुल 76,706 घरों और 5-16 आयु वर्ग के 75,234 बच्चों तक पहुंच पाया। साथ ही, असर ने 7,299 प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों या मुख्य अध्यापकों का सर्वेक्षण किया।

Divyanshu Rao

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