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Police Custody Mein Maut: सूबे में लगातार पुलिस कस्टडी में हो रहीं मौतें, योगी सरकार के लिये बन रहीं हैं परेशानी का सबब
UP Police Custody Mein Maut: 27 सितम्बर से जिस तरह से पुलिस कस्टडी में आरोपियों की मौत हो रहीं हैं, उसको सूबे में विपक्ष ने आगामी चुनाव (Up Election 2022) के मद्देनजर इसे चुनावी मुद्दा बना दिया।
UP Police Custody Mein Maut: एक बार फिर योगी सरकार (Yogi sarkar) पुलिस कस्टडी (Police Custody main mout) में आरोपियों की मौत को लेकर कठघरे में हैं। गत 27 सितम्बर से जिस तरह से पुलिस कस्टडी में आरोपियों की मौत हो रहीं हैं, उसको सूबे में विपक्ष ने आगामी चुनाव (Up Election 2022) के मद्देनजर इसे चुनावी मुद्दा बना दिया है। जबकि इन मामलों में अब योगी सरकार (Yogi Adityanath) चुप्पी साधने में मजबूर है।
27 सितम्बर से शुरू हुआ पुलिस कस्टडी में मौतों के सिलसिला
सूबे किबपुलिस कस्टडी में पहली मौत सीएम के गृह जनपद गोरखपुर में रियल स्टेट व्यापारी मनीष गुप्ता (Manish Gupta Death Case) की हुई थी। तब से पुलिस कस्टडी में मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। गत 3 जून 2021 लड़की भगाने के आरोप में सुल्तानपुर पुलिस (Sultanpur police) की हिरासत में लिए गए युवक राजेश कुमार कोरी (Rajesh Kumar kouri death) की भी पुलिस कस्टडी में मौत हो गयी थी। गत 21 अक्टूबर को 25 लाख की चोरी के आरोप में आगरा पुलिस की हिरासत में अरुण बाल्मीकि (Arun Valmiki death) की मौत हो गई थी। अभी इन घटनाओं की आग ठंडी नही हो पाई थी कि गत 8 नवम्बर को रात्रि करीब 8 बजे अल्ताफ पुत्र चांद मियां निवासी नगला सैयद को कासगंज पुलिस (Kasganj Police) ने लड़की भगाने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 9 नवम्बर की सुबह पुलिस कस्टडी में सदर कोतवाली की हवालात के वॉशरूम में उसकी मौत हो गई। इस मौत के मामले में कासगंज के एसपी का जो बयान सामने आया वो अपने आप मे काफी चौकाने वाला है। ढाई फुट की नल की टोंटी से लटक कर 5 फुट के युवक ने आत्महत्या कर ली। इस मामले में मृतक युवक के पिता का सीधा आरोप है कि पुलिस ने ही उनके बेटे की फांसी लगाकर हत्या कर दी है। पूर्व के मामलों की तरह ही इस मामले में भी एसपी ने दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है।
पुलिस कस्टडी में मौत के मामले में यूपी अब अव्वल नम्बर पर है
योगी सरकार (Yogi Adityanath government) के द्वारा अपराधी माफिया के खिलाफ चलाये गए ठोंको अभियान से अब यूपी की पुलिस निरकुंशता की हदों को पार कर रही है। हाल ही कुछ चुनिंदा मामले ऐसे आये हैं जिस कारण उत्तर प्रदेश पुलिस (Uttar Pradesh police) के कारण योगी सरकार के सामने संकट गहराया है और पुलिस के ऐसे क्रियाकलापों के कारण योगी सरकार के सामने से यह संकट टलने का नाम नही ले रहा है।
गोरखपुर व्यापारी हत्याकांड (Gorakhpur vyapari hatyakand) से यही देखने मे आ रहा है कि जैसे जैसे आगामी 2022 के विधानसभा के चुनाव के समय नजदीक आते जा रहे है वैसे वैसे ही उत्तर प्रदेश पुलिस की ऐसी हरकतें सरकार के लिये संकट का सबब बन रही हैं। अगर पिछले तीन साल के आंकड़े पर अगर हम गौर करेंगे तो गत तीन सालों में हिरासत में 1318 लोगों की मौतें हुईं हैं। जो देश के कुल मामलों का तकरीबन 23 प्रतिशत है।
क्या कहती है एनएचआरसी की रिपोर्ट
एनएचआरसी (NHRC) की रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 तो न्यायिक हिरासत में 452 लोगों की मौत हुईं हैं। जबकि 2019-20 में पुलिस हिरासत में तीन लोगों की तो न्यायिक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुईं हैं। इसी तरह से वर्ष 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 लोगों की मौत हुईं हैं तो न्यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौत हो चुकीं हैं।
काफी गम्भीर मसला है पुलिस हिरासत में मौत होना
ये एक काफी गम्भीर मसला सरकार के लिए बनाता जा रहा है। पुलिस हिरासत में अब तक जितनी भी मौतें हुईं हैं उसमें तत्काल दोषी पुलिस कर्मियों के निलंबन किये गए हैं। अब सवाल यह है कि पुलिसकर्मियों के निलंबन कर देने मात्र से ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। अवकाशप्राप्त पुलिस उपाधीक्षक रामनाथ सिंह यादव का मानना है कि पुलिस कस्टडी में किसी भी आरोपी की मौत हो जाना थाने की पुलिस की कार्यशैली पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। इस वर्ष जिस तरह से पुलिस कस्टडी में आरोपियों की मौतें हुईं है उससे तो अब पुलिस की कार्यशैली पर नजर रखे जाने की जरूरत है। रिटायर्ड पुलिस उपाधीक्षक रामनाथ सिंह यादव का कहना है कि अब थानों के सीसीटीवी कैमरे लगाने की जरूरत है ताकि इस तरह पुलिस कस्टडी में होने वाली मौतों का राजफाश हो सके।
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