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UP Politics: मायावती की पर्दाफ़ाश रैली, हंगामा है क्यूं बरपा
UP Politics: पर्दाफाश रैली के दौरान 100 मिनट के अपने भाषण में तकरीबन 53 बार मुलायम सिंह यादव का नाम लेकर मायावती ने कहा कि "मुलायम सिंह जिस थाली में खाता है उसी में छेद कर देता है।
UP Politics: आखिरकार मायावती ने अपनी शैली' में पर्दाफाश कर ही लिया। यह बात दूसरी है कि पर्दे के पीछे कुछ भी ऐसा नया नहीं था जिससे राज फाश होने का इमकान होता या फिर मायावती के समर्थकों या दूसरी राजनीतिक पार्टियों को कोई बहुत बड़ा आश्चर्य होता। यानी 'जोर का झटका धीरे से लगा। मुलायम सिंह यादव पर उन्होंने जितने भी आरोप लगाए हैं, वे सब पुराने और जाने-पहचाने हैं। दिलचस्प यह है कि खुद मायावती ऐसे ही आरोपों के घेरे में हैं। मुलायम सिंह ने 'आउटलुक' साप्ताहिक से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि 'सूप बोले तो बोले चलनी क्या बोले जिसमें लाखों छेद हैं।' सूप और चलनी की यह लड़ाई उत्तर प्रदेश की राजनीति में हिंसा प्रतिहिंसा का नया दौर भी शुरू कर सकती है। मायावती ने पूरी तैयारी के साथ कांग्रेस को भी इस प्रसंग में घसीट लिया है। मोतीलाल बोरा पर उनका प्रहार एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। मायावती अपने साहस का परिचय तो बहुजन समाज को दे गयी। लेकिन अन्य जनता में इस पर्दाफाश का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। भ्रष्टाचार सूबे में इतनी हदें पार कर चुका है कि अब कोई भी ऐसी सूचना किसी को चौकाती नहीं। गौर से देखें तो पर्दाफाश रैली में पर्दा उठने के बाद एक चीज की ओर लोगों की निगाह बिलकुल नहीं गयी और वह है- भाजपा की सोची-समझी रणनीति।
मायावती समझ रही हैं कि वे भाजपा के कन्धों पर चढ़कर सपा को ललकार रही हैं और भाजपा समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी को आमने-सामने खड़ा करके चुपचाप प्रदेश में अपना 'पुनर्निर्माण' कर रही है। यह असम्भव है कि मायावती की इस आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में भाजपा नेताओं से कोई विचार-विमर्श न हुआ हो। प्रदेश की राजनीति में आमने-सामने ताल ठोंकते हुए 'आयरन लेडी' और 'धरती पुत्र मुलायम' एक दूसरे को कितना उखाड़-पछाड़ पाते हैं, यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे। फिलहाल रैलियों के नाम पर उचित या अनुचित तरीके से लाखों-करोड़ों रुपये जो स्वाहा हो रहे हैं। उसका बोझ प्रदेश की जनता पर पड़ना ही है। सरकारी अमले का जमकर 'उपयोग' हो रहा है। हालात यहां तक पहुँच गए हैं कि पर्दाफाश रैली के मंच और आस-पास मुख्यमंत्री के सभी सचिव मौजूद रहे।
'मुलायम सिंह यादव जिन्दगी भर जेल में रहेंगे" यह वक्तव्य देकर मायावती ने बेहद खतरनाक राजनीतिक बात कह दी है। उनकी इस मंशा को अंजाम देने के लिए बसपा के प्रदेश अध्यक्ष के.के. सचान ने लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में 3 मार्च और 8 अप्रैल को राज्यपाल विष्णुकान्त शास्त्री और मीडिया को दी गयी। सी. डी. को कूटरचित (टेम्पर्ड) और फर्जी करार देते हुए मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, बलराम यादव अमर सिंह, आजम खाँ, अम्बिका चौधरी, चन्द्रभद्र सिंह और ओम प्रकाश सिंह के खिलाफ जालसाजी सहित आई०पी०सी० की धारा 414, 443, 447, 453,463, 470, 471, 109 और 120 (बी) के तहत मुकदमा दर्ज कराया है। इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल के विवेकाधीन कोष से जुड़े 35 हजार मामलों की जांच शुरू करा दी गयी है। 148 मामलों में सूबे के 45 जिलों में विवेकाधीन कोष से धन पाए लाभार्थियों और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुकदमें दर्ज करा दिए गए हैं। मायावती के मुताबिक, इसकी सजा आजीवन कारावास तक है।"
धन के दुरुपयोग के पुख्ता सबूत
मुलायम सिंह के कार्यकाल के एक लाख से ऊपर की अनुग्रह राशि पाने वाले 350 प्रकरण हैं। 180 मामलों में मायावती को धन के दुरुपयोग के पुख्ता सबूत मिले हैं। इसमें 3.70 करोड़ रुपए की राशि निहित है। वैसे मायावती ने इस तरह के 600 मामले मुलायम के खिलाफ छांटकर किनारे रख लिए हैं, जिसमें लेट-लतीफ कार्यवाही होनी तय मानी जा रही है। यह दीगर है कि मुलायम सिंह के पिछले दोनों कार्यकालों में खर्च की गयी 43.51 करोड़ रुपए की इस धनराशि के सवाल को लेकर उच्च न्यायालय और सी०ए०जी० का दरवाजा भी खटखटाया जा चुका है। मुलायम को दोनों जगहों से राहत मिल चुकी है।
इतना ही नहीं, मुलायम सिंह के दूसरे कार्यकाल के तत्काल बाद जब मायावती के हाथ में प्रदेश की कमान आयी तो उन्होंने ही अपने अनुपूरक बजट से मुलायम के कार्यकाल में मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से खर्च किए 29.90 करोड़ रुपए की भरपाई की। सवाल यह उठता है कि आखिर उस समय जनता की गाढ़ी कमाई को रेवड़ियों की तरह बांटने पर उंगली क्यों नहीं उठी! इन सवालों का उत्तर तलाशने की कोशिश करें तो जो तथ्य हाथ लगते हैं उससे साफ है कि इन सब के पीछे व्यक्तिगत विद्वेष की वह राजनीति है जिसे देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की 'गृह युद्ध की स्थिति की बात पुख्ता होती दिख रही है।
सूबे में सपाई धरना-प्रदर्शन में जुट गए हैं। उनकी गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया है। मायावती ने रक्षा मंत्री के रूप में शासकीय विमानों के दुरुपयोग करने के आरोप भी मुलायम सिंह पर मढ़े हैं। इसका खुलासा करते हुए मायावती ने कहा है 22 महीने के कार्यकाल में मुलायम सिंह ने 251 बार रक्षा मंत्रालय के वायुयान / हेलीकाप्टर का निजी यात्राओं के लिए उपयोग किया और उन्हें सरकारी यात्रा के रूप में दिखाया गया।
"मुलायम सिंह जिस थाली में खाता है उसी में छेद कर देता है"
पर्दाफाश रैली के दौरान 100 मिनट के अपने भाषण में तकरीबन 53 बार मुलायम सिंह यादव का नाम लेकर मायावती ने कहा कि "मुलायम सिंह जिस थाली में खाता है उसी में छेद कर देता है। पहले राजा भैया अब मुलायम सिंह यादव, अमर सिंह, शिवपाल सिंह यादव, आजम खाँ और मोतीलाल बोरा इतने मोर्चे खोलने के बाद क्या सूबे में बहुजन समाज पार्टी की राजनीति निरापद बनी रहेगी? सवाल यह भी है कि क्या लोक सभा चुनाव के बाद किसी मोड़ पर आकर भाजपा बहुजन समाज पार्टी से अपना दामन झटक लेगी और एक कोने में बसपा और सपा को लड़ने के लिए छोड़ देगी! इन युद्धों में कुछ 'जेनविन' मुद्दे हाशिए की ओर खिसक गए हैं। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिन नेताओं को अपने प्रदेश के पिछडेपन और गरीबी की अंधेरी सुरंग से निकालने हेतु युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए। ये आपस में ही लड़े जा रहे हैं। यह कैसी राजनैतिक संस्कृति है कि 'धिक्कार' का जवाब 'थू-थू' से देने के बाद भण्डाफोड, पर्दाफाश व थाना पुलिस का दौर शुरू हो गया है।
आम जनता स्वाभाविक है कि मीडिया के लिए मायावती की इस रैली का महत्व एक दिवसीय क्रिकेट मैच के सीधे प्रसारण से अधिक नहीं रहा। फर्क इतना रहा कि 'बैटिंग व बालिंग' दोनों मोर्चा पर केवल मायावती ही दिख रही थी। मुलायम सिंह नदारथ थे। मुलायम सिंह की "बैटिंग व बालिंग का जलवा 13 मई को हो सकता है, देखने को मिले। क्योंकि शिवपाल सिंह यादव ने घोषणा कर दी है कि हम इस मामले में किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। 'ये सीमाएं' राजनेताओं और राजनीति को कहाँ तक पहुँचाएंगी, यह बहुत खतरनाक सवाल है।
प्रतिशोध की राजनीति
केवल सपा व कांग्रेस ही नहीं, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी इस व्यक्तिगत प्रतिशोध की राजनीति से बहुत नाराज हैं। एक ओर वह भाजपा की कायरता पर प्रहार कर रहे हैं। तो दूसरी ओर कह रहे हैं कि सत्ता के मद में चूर होकर मायावती अपना मानसिक संतुलन खो बैठी हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने भी मायावती के आरोपों को बचकाना बताया है और उसकी निन्दा की है। कांग्रेस को निशाने पर लेने के पीछे मायावती की दिक्कत साफ है। यह मानती हैं कि राम विलास पासवान और बुद्धा क्लब के माध्यम से दलित राजनीति की अलख जगाने में जुटे उदयराज दोनों कांग्रेस के इशारे पर मायावती के किले में सेंधमारी करना चाहते हैं। यही कारण है कि मायावती ने मोतीलाल बोरा के आठ माह के शासन काल में बांटे गए 18 करोड़ रुपए की जांच भी शुरू करायी है। लेकिन मोतीलाल बोरा ने अपने बचाव में 'आउटलुक' साप्ताहिक के साथ हुई बातचीत में एक माकूल कानूनी सवाल खड़ा कर दिया है, "क्या मुख्यमंत्री को राज्यपाल के खिलाफ जांच का अधिकार है?" हालांकि सूबे में चल रही सियासत के दौर में इन सवालों के लिए जगह नहीं है!
मायावती की मानसिकता से उठा पर्दा
इस पर्दाफाश रैली में सबसे बड़ा पर्दा तो उठा है मायावती की मानसिकता से और वह यह कि अपने समाज को प्रसन्न करने के लिए वह कोई भी मुखोटा चढ़ाने व उतारने के लिए तैयार हैं। उन्होंने मसीहाई चेतावनी के साथ कहा है, "यदि हिन्दू धर्माचायों ने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास न किया तो वह और उनके मान्यवर बौद्ध धर्म अगीकार कर लेंगे। फिलहाल 'मनुवादी भाजपा का मुखौटा मायावती को रास आ रहा है। और पूर्ण बहुमत की गणित साधते हुए वे बौद्ध धर्म के मुखौटे की तैयारी भी कर रही हैं। मायावती के साथ सरकार बनाकर हिन्दू वोटों में सेंधमारी की कोशिश को विफल करने और सामाजिक समरसता का ताना-बाना बुनने में जुटी भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए मायावती की यह चेतावनी 'कुछ खास महत्व' की है।
कांशीराम व मायावती की मूर्ति लगाने की मुख्यमंत्री की घोषणा ने भले ही विस्मय की लकीरें खींची हों । लेकिन रैली में आए बहुजन समाज के लोग इससे बेहद उत्साहित और उल्लासित थे। तैयारियों के मद्देनजर राजनीतिक विशेषज्ञों की इस बात पर भरोसा किया जा सकता है कि जन सैलाब 'धिक्कार रैली' से काफी कम था। लेकिन उनका जलवा और जीवटपन कम नहीं। चटख धूप में तकरीबन तीन हजार लोग उल्टी-दस्त की चपेट में आए। कई लोग बेहोश हुए। रैली में आ रहे और आए पांच लोग काल-कवलित हो गए। चटख नीले रंग की इबारतों से लिखी सूबे की राजधानी की दीवारें मायावती की हौसला आफजाई के लिए कुछ न कुछ कहते हुए दिख रहीं थीं। तकरीबन 70 गेटों और बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी वाले इतने ही गुब्बारे आकाश में लहरा रहे थे। झण्डियों ने पूरे लखनऊ को बसपा के रंग में रंग दिया। देखना यह है कि पर्दाफाश रैली के बाद शुरू हुआ प्रतिशोध का यह दौर प्रदेश की राजनीति को अंधेरी सुरंग के किस मुकाम पर पहुँचाता है। क्योंकि सपा भी कमर कस रही है। विरोध प्रदर्शन और तोड़-फोड़ उसकी ओर से भी शुरू हो गया है।
( मूल रूप से 16. April,2003 को प्रकाशित ।)