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शिक्षकों का तबादलाः कोर्ट ने सुनाया फैसला, अगले आदेश तक लगी रोक
यूपी के तमाम अध्यापकों ने अंतर जिला स्थानांतरण को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी है। याचिका पर न्यायमूर्ति अजीत कुमार सुनवाई कर रहे हैं।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेसिक शिक्षा परिषद के अध्यापकों के अंतर जिला तबादला सूची जारी करने पर रोक लगा दी है। गुरुवार को अंतर्जनपदीय तबादले के मामले में याचिका पर सुनवाई पूरी होने पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित करते हुए आदेश किया है कि इस प्रकरण में सभी बिंदुओं को कोर्ट ने खारिज कर दिया है, केवल एक बिंदु कि जो एक बार स्थानांतरण का लाभ ले चुके हैं उन्हें पुनः मौका दिया जाय कि नही पर फैसला सुरक्षित कर लिया गया है। 03 नवंबर को फैसला आएगा तब तक आवेदनों के संबंध में जो भी कार्य शेष हो उसे राज्य सरकार पूरा करे लेकिन ट्रांसफर लिस्ट जारी नही होगी।
एक बार तबादले का लाभ ले चुके शिक्षकों के दोबारा तबादला लेने पर आना है फैसला
बता दे कि दिव्या गोस्वामी, जयप्रकाश शुक्ल सहित तमाम अध्यापकों ने अंतर जिला स्थानांतरण को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी है। याचिका पर न्यायमूर्ति अजीत कुमार सुनवाई कर रहे हैं। कोर्ट ने वकीलों की बहस सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है। तीन नवंबर को इस पर निर्णय सुनाया जाएगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, सीमांत सिंह, अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी, नवीन शर्मा आदि वकीलों ने पक्ष रखा। याचिकाओं में अंतर जिला तबादले के तहत पुरुष व महिला अध्यापिकाओं के स्थानांतरण के लिए निर्धारित नियमों, पूर्व के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप है।
न्यायालय ने फैसला किया सुरक्षित
कहा गया कि स्थानांतरण 2008 की नियमावली के विपरीत किए जा रहे हैं। नई स्थानांतरण नीति में प्राविधान है कि एक बार जिस शिक्षक ने स्थानांतरण ले लिया वह दोबारा नहीं ले सकता, जबकि 2017 के शासनादेश में ऐसा प्राविधान नहीं था, जिसे 2018 में हटा लिया गया था। अब 2019 के शासनादेश में फिर से वही प्राविधान लागू कर दिया गया।
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परिषदीय स्कूल शिक्षकों के अंतर जिला तबादले की सूची जारी करने पर लगाई रोक
याचीगणों का कहना था कि ये नियमित स्थानांतरण नहीं है। जिन अध्यापकों को पूर्व में अपने गृह जिले में नियुक्ति नहीं मिली उनको दोबारा स्थानांतरण की मांग करने का अधिकार है। इससे उनको वंचित नहीं किया जा सकता है। नियमावली में बदलाव करने का कोई कारण नहीं बताया गया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है।
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