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UP Election 2022: पूर्वांचल की राजनीति का कद्दावर चेहरा, अब परिवार बढा सकता है योगी की टेंशन
UP Election 2022: पूर्वांचल की राजनीति के धूरी माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के परिवार का सपा में शामिल होने का असर यूपी के चुनावों पर पड़ सकता है। इससे खासकर बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लग सकती है।
UP Election 2022: विधानसभा चुनाव को लेकर देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश में रोज नए सियासी समीकरण बन औऱ बिगड़ रहे हैं। जिस तरह दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, ठीक उसी तरह लखनऊ की गद्दी का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजरता है। 2007 से लेकर 2017 तक इस कालखंड में प्रदेश में जो भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनी उनमे पूर्वांचल की सीटों का सबसे बड़ा योगदान था। 147 सीटों वाला पूर्वांचल प्रदेश की कुल सीटों के 33 फीसद है। यही वजह है कि यहां की राजनीति बहुत महीन हो चुकी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राजभर, कुर्मी, मौर्य और चौहान जैसी ओबीसी जातियों को साधने के बाद अब पूर्वांचल में प्रभाव रखने वाले ब्राह्मण समुदाय (Brahmin Politics Gorakhpur) पर अपनी नजरें टिका ली है।
पूर्वांचल की राजनीति का कद्दावर चेहरा
वहीं बात अगर पूर्वांचल की राजनीति की करें तो जेहन में सबसे पहले कद्दावर बाहुबली ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी (harishankar tiwari gorakhpur) और उनके परिवार का नाम आता है। दशकों तक पूर्वांचल की राजनीति की धूरी कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी सियासत में पंडितजी के नाम से जाने जाते रहे हैं। 80 के दशक में अपना सियासी करियर शुरू करने वाले हरिशंकर तिवारी प्रदेश के पहले बाहुबली नेता थे, जिन्होंने जेल से चुनाव लड़ा और उसे जीता भी। गोरखपुर में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की जंग में तिवारी ब्राह्मणों के नेता थे। वहीं वीरेंद्र प्रताप शाही ठाकुरों के नेता थे। उन्हें गोरखपुर मठ का समर्थन प्राप्त था। यही वजह है कि आजतक तिवारी परिवार और मठ के संबंध कभी पटरी पर नहीं लौटे।
पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधानसभा चुनाव जीते। इस दौरान वो हर सरकार में कैबिनेट मंत्री रही। वे भाजपा की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्ता सरकार से लेकर मुलायम सिंह यादव की सरकार तक में मंत्री रहे। इस दौरान वे जगदंबिका पाल की एक दिन वाली सरकार में भी मंत्री थे। हालांकि ये सिलसिला 2007 में तब टूटा जब वो पत्रकार से नेता बने बीएसपी उम्मीदवार राजेश त्रिपाठी से चुनाव हार गए। 2012 में एकबार फिर उन्हें हार का मूंह देखना पड़ा। अबकी बार उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूर जाने का फैसला ले लियाष हालांकि इस दौरान उनका परिवार राजनीति में सक्रिय रहा। उनका बड़ा बेटा भीष्म शंकर तिवारी बीएसपी से सांसदी का चुनाव जीत चुके हैं तो वहीं छोटा बेटा विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से बसपा विधायक हैं। उनके भतीजे गणेश शंकर पांडेय बसपा सरकार के दौरान यूपी विधान परिषद के सभापति रह चुके हैं। हालांकि बीते साल मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का हवाला देकर तिवारी परिवार को बीएसपी से निष्कासित कर दिया था।
तिवारी परिवार का नया ठिकाना अब समाजवादी पार्टी बना है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूर्वांचल के ब्राह्मणों में तिवारी परिवार के रसूख का अपने हित में दोहन करना चाह रहे हैं। अखिलेश मठ और तिवारी परिवार के अदावत का प्रयोग ब्राह्मणों को लामबंद करने में करना चाहते हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ और हरिशंकर तिवारी के बीच 36 का आंकड़ा रहा है। ऐसे में अखिलेश ने तिवारी परिवार को अपने पाले में कर बीजेपी के कोर वोटर ब्राह्मणों को तोड़ने की कोशिश की है।
एसपी की यह चाल भाजपा के साथ साथ बसपा के लिए भी परेशानी का सबब बनन सकती है। यूपी में एक बार फिर 2007 का सोशल इंजिनियरिंग वाला Formula दोहराने की सोच रही बीएसपी के लिए ये किसी बड़े झटके से कम नहीं है। वहीं सीएम योगी पर लग रहे ठाकुरवाद के आरोप के चलते बीजेपी को ब्राह्मण बहूल सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।हालांकि कुछ राजनीतिक टिप्पणीकार मानते हैं कि हरिशंकर तिवारी अब पूर्वांचल की राजनीति में उतने रसूखदार नहीं रहे गए जितना हो वे एक समय हुआ करते थे। अब ऐसा मानना कठिन होगा कि उनके एसपी में जाने से सारा ब्राह्मण वोट साइकिल की तरफ मुड़ जाएगा। लेकिन राजनीति में संकेतों और धारणा का अपना एक अलग महत्व होता है। ऐसे में बीजेपी को एंटी ब्राह्मण वाली छवि को तोड़ना होगा ।