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UP Vidhan Parishad Deputy Speaker: 15 वर्षो से खाली पड़ा है विधानपरिषद में उपसभापति का पद

दीपक सिंह ने कहा कि भाजपा पुरानी परम्पराओं को तोड़कर नई परम्पराए डालने का प्रयास कर रही है।

Shreedhar Agnihotri
Written By Shreedhar AgnihotriPublished By Divyanshu Rao
Published on: 19 Oct 2021 2:53 PM GMT
UP Vidhan Parishad Upsabhapati
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यूपी विधानपरिषद भवन की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

UP Vidhan Parishad Deputy Speaker: विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर हुए चुनाव के बाद अब विधानपरिषद (Uttar Pradesh Vidhan Parishad) में भी उपसभापति (UP Vidhan Parishad Upsabhapati) की मांग उठने लगी है। उच्च सदन में उपसभापति का यह पद साल 2006 से खाली है। अंतिम उपाध्यक्ष के तौर पर मानवेन्द्र सिंह ने इस पद को सुशोभित किया था। विधान परिषद में कांग्रेस पार्टी के नेता दीपक सिंह के विधान परिषद के उपसभापति का चयन (Election for UP Assembly Deputy Speaker) करने के सम्बन्ध में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र भी लिखा है। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल को भेजे गए पत्र में कांग्रेस के विधानपरिषद सदस्य दीपक सिंह उपसभापति के चुनाव की मांग कर चुके है।

न्यूज ट्रैक से बात करते हुए दीपक सिंह ने कहा कि भाजपा पुरानी परम्पराओं को तोड़कर नई परम्पराए डालने का प्रयास कर रही है। लोकतंत्र परम्पराओें से चलता है । लेकिन भाजपा का इसमें विश्वास नहीं है। दीपक सिंह का कहना है कि प्रदेश में जब तक कांग्रेस की सरकारें थीं, तब तक ये परम्पराएं बरकरार रहीं ।.लेकिन उसके बाद अलोकतांत्रिक सरकारों ने सारे नियम और परम्पराएं ताक पर रख दीं। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने अपनी सुविधानुसार विधानसभा उपाध्यक्ष का चुनाव तो करवा लिया । लेकिन उपसभापति के चुनाव से वह पीछे हट रही है।

उत्तर प्रदेश विधान भवन की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

दीपक सिंह के इस पत्र के बाद हाल ही में समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्यों ने भी अपनी बात पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने रखी है। अब जल्द ही इसे लेकर पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल विधानपरिषद सभापति मानवेन्द्र सिंह से मिलकर इस बात की मांग करेगा।

यहां यह बताना जरूरी है कि 100 सदस्यों वाले उच्च सदन में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 38,स्थानीय निकाय के 36, शिक्षक निर्वाचन के आठ, स्नातक के आठ तथा मनोनीत सदस्यों की संख्या 10 है। दलीय आधार पर देखा जाए तो सबसे अधिक 48 सदस्य समाजवादी पार्टी के हैं। इसके बाद भाजपा के 33, बसपा के 6,कांग्रेस का एक,अपना दल का एक, शिक्षक दल गैरराजनीतिक दो,निर्दलीय समूह दो और एक निर्दलीय सदस्य हैं जबकि पांच स्थान रिक्त चल रहे हैं।

विधानपरिषद के उपसभापति के अतीत को देखा जाए तो सबसे पहले अलहज शेख मसूद उज्जमा को यह पद मिला था। उन्होंने इस पद पर 18 जनवरी, 1947 से 27 सितम्बर, 1948 तक कार्य किया। इसके बाद चन्द्रभाल ने 5 नवम्बर, 1948 से 9 मार्च ,1949 तक, अख्तर हुसैन ने 2 फरवरी, 1950 से 20 मार्च, 1952 तक, निजामुददीन ने 27 मई, 1952 से 5 मई, 1958 तक कार्य करने के बाद दोबारा 20 जुलाई, 1958 से 5 मई, 1964 तक इस पद पर अपनी भूमिका निभाने का काम किया। इसके बाद वीरेन्द्र स्वरूप ने 16 फरवरी, 1965 से एक मार्च, 1969 तक, कुंवर देवेन्द्र प्रताप सिंह ने 13 अगस्त, 1969 से 5 मई, 1972 तक, फिर 11 मई, 1972 से 5 मई, 1974 तक निभाने के बाद दुबारा 11 जून, 1974 से 5 मई, 1978 तक इस पद पर विराजमान हुए।

इसी तरह शिव प्रसाद गुप्ता 6 अक्टूबर, 1980 से 5 मई, 1982 तक और फिर 3 मार्च, 1983 से 5 मई, 1984 तक इस पद पर रहे। जबकि नित्यानन्द स्वामी 13 अगस्त्त, 1991 से 6 जुलाई, 1992 तक और कुंवर मानवेन्द्र सिंह 6 अगस्त, 2004 से 5 मई, 2006 तक इस पद पर रहे। तब से यह पद खाली पड़ा है।


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Divyanshu Rao

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