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UP Chunav: सियासी ताप नापने निकल रहे चाचा-भतीजे, क्या 2016 का 'धर्मयुद्ध' 22 में होगा पूरा
UP Chunav: 2016 में शुरू हुए इस 'धर्मयुद्ध' की कहानी जो अधूरी रह गई थी अब वह 2022 में पूरी होने जा रही है।
सियासी ताप नापने निकल रहे चाचा-भतीजे (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)
UP Chunav: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Assembly Election 2022) में एक बार फिर से 'धर्मयुद्ध' की तैयारी शुरू हो गई है। 2016 में शुरू हुए इस 'धर्मयुद्ध' की कहानी जो अधूरी रह गई थी अब वह 2022 में पूरी होने जा रही है। समाजवादियों की बगिया में पले बढ़े सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के बीच जुबां पर तल्खी, दिल में नरमी लेकिन रिश्तो में गांठ बरकरार है। अब चाचा भतीजे डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि (Ram Manohar Lohia Ki Punyatithi) पर यानी 12 अक्टूबर से रथ यात्रा (Rath Yatra) का आगाज करने जा रहे हैं।
रथ यात्रा अपनी ताकत दिखाने का बहाना
समाजवादी विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया के करीबी मुलायम सिंह यादव के बेटे और उनके भाई की राहें जुदा हो चली हैं। 2016 में मुलायम परिवार में शुरू हुआ झगड़ा अभी तक थमा नहीं है। मुलायम सिंह यादव बेटे और भाई के बीच कई दफा समझौता कराने के लिए बैठे लेकिन वह कामयाब नहीं हुए। राजनीति के माहिर खिलाड़ी नेताजी के नाम की गूंज देश और प्रदेश में सुनाई देती है। लेकिन वह अपनों से हार गए हैं।
अखिलेश मिशन 2022 (Akhilesh Yadav Mission 2022) की तैयारी में जुटे हैं और 12 अक्टूबर से 'समाजवादी विजय यात्रा' (Samajwadi Vijay Yatra) की शुरुआत करने जा रहे हैं। परिवार और पार्टी में समझौता नहीं होने के बाद शिवपाल यादव भी मजबूरन अब 12 अक्टूबर को मथुरा से अपनी परिवर्तन यात्रा को लेकर निकलने वाले हैं। चाचा भतीजे की शुरू हो रही यात्राएं सियासी ताप का थाह लेंगी, साथ ही ताकत का एहसास कराएंगे। यह एहसास दोनों के दिलों की दूरी को नजदीक में तब्दील कर सकती हैं क्योंकि राहे भले जुदा जुदा हों पर मकसद दोनों का एक ही है।
समाजवादी विजय यात्रा
शिवपाल के अल्टीमेटम पर अखिलेश ने नहीं दिया जवाब
सपा से निकलने के बाद शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (Pragatisheel Samajwadi Party) का गठन किया। वह 2022 के चुनाव (Vidhan Sabha Chunaav 2022) की तैयारी कर रहे हैं। शिवपाल कई बार यह कह चुके हैं कि वह समाजवादी पार्टी से गठबंधन के लिए तैयार हैं। उन्होंने अखिलेश से कुछ सीटें और गठबंधन को लेकर प्रस्ताव दिया था। लेकिन अखिलेश यादव की ओर से अपने चाचा के प्रस्ताव पर फिलहाल अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस संबंध में अखिलेश यादव से एक सवाल भी पूछा गया था, जिसका जवाब देते हुए उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि दोनों रथ यात्राओं का मकसद एक ही है।
22 नवंबर को तस्वीर होगी साफ
अखिलेश यादव (फाइल फोटो -न्यूजट्रैक )
मुलायम परिवार को करीब से जानने वालों का कहना है कि बहुत कुछ 22 नवंबर को साफ हो जाएगा। 22 नवंबर को मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन होता है।सैफई में मुलायम का पूरा परिवार इकट्ठा होता हैं। इसी दिन बहुत कुछ तस्वीर साफ हो जाएंगी। बता दें सपा और प्रसपा के बीच गठबंधन को लेकर काफी समय से कयास बाजी चल रही है। शिवपाल यादव ने 11 अक्टूबर तक का अखिलेश को समय दिया था । लेकिन उनकी ओर से इस संबंध में कोई भी जवाब उन्हें नहीं मिला। मजबूरन अब वह 12 अक्टूबर से सामाजिक परिवर्तन रथ यात्रा निकालने जा रहे हैं, जो मथुरा से निकलेगी। इससे पहले उन्होंने ओवैसी, राजभर और चंद्रशेखर आजाद से भी मुलाकात कर नए समीकरण बनाने के संकेत दे दिए हैं।
पिता- पुत्र के साख का सवाल
वैसे शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह के सारथी के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है। लेकिन 2016 से वह अब अलग राह पर चल रहे हैं। शिवपाल यादव चुनावी चौसर के महारथी माने जाते हैं । लेकिन उनकी पार्टी के लिए यह पहला चुनाव होगा। इस चुनाव से उनके बेटे आदित्य यादव के राजनीतिक भविष्य का भी फैसला होगा । क्योंकि करीब 6 महीने से शिवपाल पर्दे के पीछे नजर आते हैं । आदित्य यादव फ्रंट फुट पर नजर आ रहे। शिवपाल के खास लोगों की ख्वाहिश है कि नए नेतृत्व के रूप में आदित्य आगे बढ़े, यही वजह है कि उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महासचिव जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। मथुरा से निकलने वाली रथ यात्रा का नेतृत्व भी उन्हीं को सौंपा गया है। कहा जाता है कि शिवपाल अपनी परंपरागत विधानसभा सीट जसवंतनगर से इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। उसे बेटे के लिए खाली करेंगे। शिवपाल यादव दूसरी सीट गुन्नौर से 2022 में किस्मत आजमाएंगे।
फिलहाल अब चाचा भतीजे की यात्राएं अपनी तैयारी और ताकत दिखाने का बहाना है। वह यात्राएं दोनों को एक जाजम पर बैठने के लिए विवश भी कर सकती हैं, अब देखना यह होगा कि चाचा भतीजे विधानसभा चुनाव में साथ नजर आते हैं या एक दूसरे पर हमलावर होकर खुद को ही 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह नुकसान पहुंचाते हैं।