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UP Vidhan Sabha: विधानसभा में लगी अदालत, पेश हुए दोषी 6 पुलिसकर्मी, मिली ये सजा
UP Vidhan Sabha: विधान सभा के अंदर शुक्रवार को अदालत लगायी गयी। कटघरे में कोई और नहीं बल्कि 6 पुलिसकर्मी पेश हुये। इन सभी पुलिस कर्मियों पर विशेषधिकार हनन और सदन की अवमानना का दोष है।
Lucknow News: यूपी की विधानसभा का आज शुक्रवार को 13 वां दिन हैं। विधान सभा में आज एक अलग ही नजारा देखने को मिला। विधान सभा के अंदर शुक्रवार को अदालत लगायी गयी। कटघरे में कोई और नहीं बल्कि 6 पुलिसकर्मी पेश हुये। इन सभी पुलिस कर्मियों पर विशेषधिकार हनन और सदन की अवमानना का दोष है। विधान सभा अध्यक्ष सतीश महाना ने इन सभी दोषी पुलिसकर्मियों को एक दिन की सजा सुनायी गयी। इस दौरान सभी दोषी पुलिस कर्मियों ने विधान सभा में बनी सेल के लॉकअप में रखा जाएगा। फैसले के बाद सभी पुलिसकर्मियों के मार्शल लॉकअप में ले गये। सदन की कार्यवाही के दौरान विधान सभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सभी दलों के नेताओं का पक्ष जाना। हालांकि ज्यादातर नेताओं ने फैसला विधान सभा अध्यक्ष पर छोड़ दिया।
ये पुलिसकर्मी विधान सभा में पेश हुए
विधान सभा में सीओ अब्दुल समद के अलावा किदवई नगर के थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, एसआई थाना कोतवाली त्रिलोकी सिंह, किदवई नगर थाने के सिपाही छोटे सिंह यादव, काकादेव थाने के सिपाही विनोद मिश्र और काकादेव थाने के सिपाही मेहरबान सिंह पेश हुये। विधान सभा अध्यक्ष ने दोषी पुलिस कर्मियों को अपनी सफाई में बोलने का भी मौका दिया। इस दौरान दोषी सीओ अब्दुल समद ने सदन में माफी मांगी। उन्होने कहा कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी।
जानें क्या है पूरा मामला
बता दें कि 2004 में समाजवादी पार्टी के सरकार के समय बिजली कटौती के मामले में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना धरने पर बैठे हुए थे। सतीश महाना का 3 से 4 दिन धरने पर बैठे हुए हो गया था। कानपुर के तत्कालीन डीएम प्रशांत त्रिवेदी सतीश महाना से मिलने के लिए गये थे। लेकिन दोनों लोगों के बीच में विवाद हो गया था। इस धरना प्रदर्शन के जब 4 दिन हो गये थे तो भारतीय जनता पार्टी ने तय किया था कि अलग-अलग विधानसभाओं में धरना पदर्शन करेंगे। उस समय भाजपा के तमाम नेता व कार्यकर्ता समर्थन में जुट रहे थे। इस दौरान बीजेपी के विधायक और कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इसमें तत्कालीन विधानसभा सदस्य सलिल विश्नोई की टांग टूट गयी थी। वह कई महीनों बेड पर रहे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले नें इन दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ 2004 से मई 2005 तक सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सभी को दोषी ठहराया गया था। लेकिन 2005 के बाद से अब तक सजा का ऐलान नहीं हुआ था।