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UP में माध्यमिक शिक्षा का हाल-बेहाल, बेपटरी हो गई तकनीकी शिक्षा व्यवस्था
यूपी में योगी सरकार आते ही अधिकारियों को अपने अपने विभाग का प्रेजेंटेशन देकर एक बेहतर रोडमैप तैयार करने को कहा गया था। यूपी के माध्यमिक शिक्षा विभाग ने भी अपना प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें माध्यमिक शिक्षा के दौरान ही छात्रों को तकनीकी शिक्षा मुहैया कराना भी शामिल था। लेकिन असलियत यह है कि प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा में तकनीकी शिक्षा व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है।
सुधांशु सक्सेना
लखनऊ : यूपी में योगी सरकार आते ही अधिकारियों को अपने अपने विभाग का प्रेजेंटेशन देकर एक बेहतर रोडमैप तैयार करने को कहा गया था। यूपी के माध्यमिक शिक्षा विभाग ने भी अपना प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें माध्यमिक शिक्षा के दौरान ही छात्रों को तकनीकी शिक्षा मुहैया कराना भी शामिल था। लेकिन असलियत यह है कि प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा में तकनीकी शिक्षा व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है।
राजकीय इंटर कॉलेज, निशातगंज
राजधानी स्थित राजकीय इंटर कालेज निशातगंज में कक्षा 6 में पढ़ने वाले छात्र अंकुश का कहना है कि कॉलेज में कंप्यूटर की शिक्षा नहीं दी जाती है। लेकिन प्रिंसिपल दावा करते हैं कि कंप्यूटर की पढ़ाई होती है। इसी कॉलेज के एक शिक्षक ने बताया कि कॉलेज में 2004 में पांच कंप्यूटर आए थे तबसे वे एक कमरे की शोभा बढ़ा रहे हैं। कंप्यूटर शिक्षक न होने के कारण कक्षाएं नहीं चलाई जा रही हैं। एक- दो साल इन कंप्यूटरों पर शिक्षा दी गई, इसके बाद सब ठप है।
नवयुग कन्या विद्यालय, राजेंद्र नगर
लखनऊ के नवयुग कन्या विद्यालय में कक्षा 9 में पढ़ने वाली छात्रा मानसी गुप्ता ने बताया कि बच्चों से कंप्यूटर फीस ली जाती है। कभी-कभी कंप्यूटर की कक्षाएं भी लगती हैं। लेकिन नियमित रूप से इसकी कोई विशेष पढ़ाई नहीं होती। स्कूल प्रशासन के लोगों का कहना है कि कंप्यूटर की तकनीकी शिक्षा दी जाती है। कितने कंप्यूटर अनुदेशक हैं और पढ़ाई का क्या शेड्यूल है, यह जानकारी स्कूल ने नहीं दी।
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क्वींस कॉलेज, लालबाग
राजधानी के इस स्कूल में कंप्यूटर लैब बनी हुई है। स्कूल प्रबंधक आरपी मिश्र का कहना है कि अनुदेशकों के अभाव में तकनीकी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। कई बार इस बारे में अधिकारियों को पत्र लिखा गया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया।
यह उदाहरण तो मात्र बानगी भर हैं। यह हाल तब है जब केंद्र और राज्य सरकार का जोर डिजिटल इंडिया पर है। बड़ा सवाल यह है कि ऐसे में देश को पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन के मार्ग पर सफल कैसे बनाया जा सकता है, जबकि स्कूल में तकनीकी शिक्षा का हाल ही बेहाल है।
आईसीटी योजना पर लगा ब्रेक :
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री डॉ. आरपी मिश्र बताते हैं कि प्रदेश में राजकीय और सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त सहयोग से वर्ष 2004 में ‘इन्फार्मेशन एंड कंप्यूटर टेक्नॉलॉजी’ (आईसीटी) योजना शुरू करने पर सहमति बनी। इसके बाद इसका पहला चरण शुरू किया गया जिसमें प्रदेश के 25 हजार स्कूलों में आईसीटी योजना शुरू होने के दावे किए गए। लेकिन वर्ष 2014 में पता चला कि शिक्षकों के अभाव में ये योजना चल ही नहीं पाई। इसके बाद इसके दूसरे चरण में भी अधिकारियों की उदासीनता के चलते योजना ठीक से परवान नहीं चढ़ पाई। अब इस योजना के तीसरे चरण पर तो ग्रहण ही लग गया है। एक साल बीतने के बाद भी यह चरण शुरू नहीं हो सका है। नतीजा है कि छात्र तकनीकी शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।
यूपी के 4000 स्कूलों में बंद पड़ी आईसीटी योजना
आईसीटी योजना में केंद्र सरकार को 75 प्रतिशत और राज्य सरकार को 25 फीसदी पैसा देना था। यह योजना 268 करोड़ रुपये की थी। जिसमें प्रति स्कूल 6 लाख 70 हजार रुपए प्रतिवर्ष उपलब्ध कराए गए। लेकिन इस योजना के क्रियान्वयन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी यानी कंप्यूटर शिक्षकों की कमी के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका।
दूसरे चरण में पहले चरण के स्कूलों के अलावा 2,000 और स्कूलों में इस योजना को शुरू करने की बात हुई और कंप्यूटर अनुदेशकों को रखने पर शासन तैयार हुआ। पूरे प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए कंप्यूटर अनुदेशक रखे भी गए। जिनका मानदेय 10,000 प्रतिमाह तय हुआ। इसके अलावा स्कूलों में कंप्यूटर भी खरीदे गए और राजकीय और सहायता प्राप्त विदयालयों में कंप्यूटर लैब तैयार कर ली गईं। लेकिन 2,000 स्कूलों में से 1600 में आईसीटी योजना शुरू नहीं हो सकी। इसका कारण कंप्यूटर अनुदेशकों की कभी बताया गया। अब आलम यह है कि 4000 स्कूलों में आईसीटी योजना ठप पड़ी हुई है।
अनुदेशकों की भर्ती और मानदेय दोनों रुके :
माध्यमिक शिक्षक संघ का कहना है कि लगभग सभी राजकीय और सहायता प्राप्त विद्यालयोंं में आईसीटी योजना के मानकों के अनुरूप लैब तैयार हैं। लेकिन प्रदेश सरकार इस योजना में रुचि नहीं ले रही है। 6000 कंप्यूटर अनुदेशकों की भर्ती और मानदेय दोनों अटक गया है। इसी के चलते अब तक आईसीटी का तीसरा चरण अपने तय समय के एक वर्ष बाद तक नहीं शुरू हो सका है। शिक्षक संघ का कहना है कि लखनऊ के करीब 81 स्कूलों में आईसीटी योजना दम तोड़ चुकी है। आरोप है कि प्रदेश के कई विद्यालयों में इस योजना के तहत तैयार कंप्यूटर लैब की आड़ में छात्रों से 800 रुपए सालाना फीस ली जा रही है।
अधिकारी बोले- शासन से नहीं है निर्देश
लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि अभी आईसीटी का तीसरा चरण शुरू नहीं हो सका है। कंप्यूटर अनुदेशकों के मानदेय आदि को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश शासन से प्राप्त नहीं हुए हैं। राजकीय और सहायता प्राप्त विद्यालयोंं में कंप्यूटर लैब तैयार हैं। फिलहाल कोई अध्यापक ही ट्रेनिंग दे रहे हैं। शासन से जैसे निर्देश प्राप्त होंगे, वैसे इस योजना का क्रियान्वयन किया जाएगा।
अशासकीय महाविद्यालयों में बायोमीट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य नहीं
योगी सरकार ने हर विभाग में बायोमेट्रिक मशीनें लगाकर उसी से उपस्थिति दर्ज कराने का एलान किया था। कहा गया था कि ड्यूटी टाइमिंग को सख्ती से लागू किया जाएगा। लेकिन उच्च शिक्षा विभाग ने सरकार की मंशा को ही उलट दिया है। उच्च शिक्षा विभाग ने 19 जुलाई को एक आदेश जारी किया। इसमें उच्च शिक्षा निदेशायलय ने उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय महाविदयालय शिक्षक महासंघ के पत्रांक 97/2017 का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया है कि उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा अशासकीय महाविद्यालयों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस को अनिवार्य नहीं किया गया है। उच्च शिक्षा के निदेशक डॉ. आरपी सिंह ने यह भी उल्लेख किया है कि इस बारे में डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा द्वारा विधानसभा में भी सूचित किया गया है कि अशासकीय विदयालयों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य नहीं है।
राज्य कर्मी बोले- यह तो भेद भाव है
राजधानी स्थित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के इमरजेंसी मेडिकल आफिसर डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए बायोमेट्रिक मशीन लगी हुई है। सबकी उपस्थिति इसी मशीन से दर्ज होती है। उच्च शिक्षा विभाग दवारा जारी यह पत्र हमारे और शिक्षकों के बीच भेदभाव दर्शाता है। 1090 हेल्पलाइन के एक कर्मचारी ने बताया कि यूपी 100, पुलिस लाइन, मॉडर्न कंट्रोल रूम सहित के कार्यालयों में बायोमेट्रिक मशीनें अटेंडेंस के लिए लगी हुई हैं। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र निश्चित रूप से भेद भाव दर्शाता है।
अभी तक नहीं मिला बजट
लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार सिंह और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी का कहना है कि सरकार ने भले ही बायोमेट्रिक को कई जगह अनिवार्य किया है, लेकिन अभी तक विभाग को इस संबंध में बजट ही नहीं मिला है। बजट आने पर बायोमेट्रिक मशीनों को तत्काल लगवाया जाएगा। वैसे, ताजा शासनादेश पर दोनों अधिकारी चुप्पी साध गए।