TRENDING TAGS :
गोरखपुर: बच्चों ने 'मातृ-पितृ पूजन दिवस' के रूप में मनाया वैलेंटाइन डे
गोरखपुर: वैलेंटाइन डे (14 फरवरी) यानी प्रेम के इजहार का दिन। आमतौर पर इस दिन को प्रेमी-प्रेमिका के प्यार के इजहार के रूप में मनाया जाता है। लेकिन गोरखपुर में वैलेंटाइन डे पर नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। यहां बच्चे माता-पिता को भगवान मानकर उनकी पूजा करते दिख करते और उनसे प्यार का इजहार करते दिखे।
गोरखपुर के कई स्कूलों में वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ पूूजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। बच्चे माता-पिता को ही अपना वैलेंटाइन मानकर उनकी पूजा कर उनके प्रति अपने प्यार का इजहार कर रहे हैं।
'मातृ-पितृ पूूजन दिवस'
अमूमन यह माना जाता है कि वैलेंटाइन डे के मौके पर आप अपनों से प्यार का इजहार करते हैं और बताते हैं कि आप उनके लिए कितने अहम हैं। अधिकतर युवा प्रेमियों के लिए इस दिन उनकी दुनिया उनकी प्रेमिका तक ही सिमट कर रह जाती है। लेकिन गोरखपुर में ऐसे माहौल को बदलने का प्रयास किया जा रहा है। जिले के स्कूलों में बच्चे इस दिन को मातृ-पितृ पूूजन दिवस के रूप में मना रहे हैं। इस अवसर पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए।
सभी तीर्थों से ऊपर हैं माता-पिता
बच्चों ने गीतों के द्वारा अपनी भावनाओं का इजहार किया। इसके बाद अपने माता पिता को एक साथ बैठाकर उनकी विधिवत पूजा आरती की और पुष्प अर्पित किए। इसके बाद बच्चों ने माता-पिता के चारों ओर सात फेरे लिए। उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया और जताया कि उनके लिए सभी देवी-देवताओं और तीर्थों से ऊपर उनके माता-पिता हैं।
इस तरह के प्रयास सराहनीय
इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में आए बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चों को सम्मान देते देख भाव-विभाेर हुए। कईयों की तो आंखें भर आयी। माता-पिता का कहना है, कि 'आज जिस तरह से बच्चों में संस्कार खत्म हो रहे हैं उनमें सम्मान का भाव कम होता जा रहा है, उसे देखकर छोटी कक्षाओं से ही उनमेंं इस तरह के कार्यक्रमों के द्वारा संस्कार का बीजारोपण करना अच्छा प्रयास है।'
रिश्तों को और प्रगाढ करने का एक मंच
इस कार्यक्रम के आयोजक राकेश सिंह पहलवान का कहना है, कि 'सच्चे अर्थ में वैलेंटाइन डे अपने माता-पिता के साथ ही मनाना चाहिए। क्योंकि हमें सबसे ज्यादा प्रेम माता-पिता ही करते हैं। आज के दिन इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से वह बच्चों और उनके अभिभावक के रिश्तों को और प्रगाढ करने के लिए एक मंच देते हैं।' उन्होंने कहा, 'धरती पर माता-पिता बच्चों के पहले गुरू और पहली पाठशाला होते हैं। बच्चों के जीवन में संस्कार डालने का पहला काम घर से माता-पिता ही करते हैं। आजीवन उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं। लेकिन आज के दौर में जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने लगे हैं तो ऐसे में आवश्यकता इस बात की, कि बच्चों में ऐसे संस्कार दिए जाएं जिससे वह ताउम्र अभिभावक को अपना आदर्श मानते रहें।'