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Black Powder in Varanasi: आतंकियों का पसंदीदा शस्त्र बना ब्लैक पाउडर, जानें इसके बारे में सबकुछ
Black Powder in Varanasi: ‘ब्लैक पाउडर’ को सामान्य भाषा में देसी बारूद के नाम से जाना चाहता है। अंग्रेजी में इसे ही गन पाउडर कहा जाता है।
Black Powder in Varanasi: बुधवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने वाराणसी के मकबुल आलम रोड से एक 24 वर्षीय लड़के बासित कलाम सिद्दीकी को गिरफ्तार किया था। सिद्दीकी इराक और सीरिया में कहर मचाने वाला सुन्नी चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट का आतंकी था। एनआईए ने उसके ठिकाने से कई संवेदनशील चीजें बरामद की थीं, जिससे यह स्पष्ट था कि वो किसी बड़ी वारदात की तैयारी कर रहा था। वह 'ब्लैक पाउडर' बनाने की कोशिश कर रहा था। इस काम में उसकी मदद अफगानिस्तान में बैठे उसके आका कर रहे थे। तो आइए जानते हैं 'ब्लैक पाउडर' के बारे में –
'ब्लैक पाउडर' को सामान्य भाषा में देसी बारूद के नाम से जाना चाहता है। अंग्रेजी में इसे ही गन पाउडर कहा जाता है। इसका इस्तेमाल बम, विस्फोटक और पटाखे बनाने में किया जाता है। ये विस्फोटक छोटे मिलिटेंट संगठनों और उग्रवादी संगठनों का पसंदीदा हथियार है। भारत में माओवादी और नक्सली भी इसका खूब इस्तेमाल करते हैं। इसका इस्तेमाल तोप के गोले, फायरआर्म्स, रॉकेटरी और पाइरोटेक्नीक में होता है। कुछ जगहों पर इसका इस्तेमाल सड़क निर्माण और खनन कार्य के दौरान विस्फोट करने के लिए भी होता है।
ब्लैक पाउडर का इतिहास
ब्लैक पाउडर को बनाने के लिए सल्फर, कार्बन या चारकोल और पोटाश यानी पोटैशियम नाइट्रेट की जरूरत होती है। कहते हैं कि इस विस्फोटक को सबसे पहले चीन ने ईजाद किया था। 9वीं सदी में जब चीन में तांग साम्राज्य की हुकूमत चल रही थी, तब पहली बार इसका प्रयोग किया गया। 11वीं सदी में चीन के ही सॉन्ग साम्राज्य ने इसे और बेहतर बनाया। इसमें लहसून और शहद मिलाया गया ताकि आग की तेज लपटें निकल सकें। सीरिया के हसन अल-रामाह ने ब्लैक पाउडर बनाने के 107 तरीके ईजाद करते हुए बकायदा इस पर एक किताब लिख डाली है। किताब का शीर्षक है - The Book of Military Horsemanship and Ingenious War Devices.
चीन से निकलकर मंगोलिया पहुंचा
चीन से निकलकर ब्लैक पाउडर पड़ोसी देश मंगोलिया पहुंचा। चंगेज खान के नेतृत्व में उन दिनों मंगोलियाई सेना दुनिया के कई हिस्सों में कहर मचा रही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगोलियाई सेना ने इसका इस्तेमाल 1240 से 1280 के बीच इस्लामिक देशों के खिलाफ किया। जंग के मैदान में पहली बार ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल 1260 ईस्वी में ऐन जलूत के जंग में किया गया था, जो मामलूक और मंगोलिया के बीच लड़ा गया था।
मंगोल और यूरोपीय सेना के बीच जंग में हुआ था इस्तेमाल
उन्नत हथियारों की रेस में हमेशा से आगे रहने वाला यूरोप इस मामले में एशिया से पिछड़ गया था। यूरोप में ब्लैक पाउडर की खोज 1267 ईस्वी के आसपास हुई थी। 1241 में मंगोल और यूरोपीय सेनाओं के बीच मोही में जंग हुआ था। इस जंग में मंगोलों ने यूरोपीय सेना के खिलाफ इस देसी बारूद का इस्तेमाल किया था।
भारत में ब्लैक पाउडर की आमद
भारत में भी ब्लैक पाउडर के आमद में मंगोलों की अहम भूमिका है। दुनिया के अन्य हिस्सों में मौत का तांडव मचाने के बाद जब मंगोल आक्रमणकारियों की नजर भारत पर पड़ी, तो उसने यहां भी धावा बोला। उस समय दिल्ली के तख्त पर अलाउद्दीन खिलजी बैठा था। खिलजी ने जंग के मैदान में मंगोलों को खदेड़ दिया। इस दौरान कुछ मंगोल भारत में ही रूक गए। इन्हीं मंगोलों ने 16वीं सदी में भारत में ब्लैक पाउडर बनाना शुरू किया। इसके बाद 19वीं सदी आते-आते इसका इस्तेमाल जंग के मैदान में काफी बढ़ गया। दोनों विश्व युद्धों में इसका जमकर इस्तेमाल किया गया।
बता दें कि वर्तमान में भारत के साथ दुनिया के अधिकतर देशों में ब्लैक पाउडर रखना अपराध है। ब्लैक पाउडर का व्यापार करना, परिवहन करना गैर – कानूनी है। पकड़े जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।