×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

बनारस में गंगा के बदले रंग ने किया हैरान, जाँच में जुटे बीएचयू के वैज्ञानिक

काशी में अब मां गंगा के जल का रंग हरा हो गया है। प्रथम दृष्टया इसका कारण धारा का प्रवाह कम होना माना जा रहा है।

Ashutosh Singh
Reporter Ashutosh SinghPublished By Vidushi Mishra
Published on: 27 May 2021 8:27 PM IST (Updated on: 28 May 2021 2:25 PM IST)
Color changed in favor of Ganga in varanasi, BHU scientist engaged in investigation
X

बनारस में गंगा नदी का बदला रंग(फोटो-सोशल मीडिया) 

वाराणसी: कोरोना काल में हुई मौतों के बाद जब अंतिम संस्कार की व्यवस्था नहीं हो पाई तो लोगों ने अपनों के शवों को गंगा में बहा दिया। जो पवित्र जल में तैरते रहे, सड़ते रहे। जिन्हें कुत्ते नोचते रहे, चील, कौवे खाते रहे। इसका परिणाम अब मां गंगा के पवित्र जल पर देखने को मिल रहा है। गंगा का जल अब हरे रंग का हो गया है। जो कोरोना काल में शवों की दुर्गति से हुए भीषण प्रदूषण की तरफ इशारा कर रहा है।

प्रवाह कम होने से गंगा में बढ़ी शैवाल

कानपुर से लेकर बनारस तक और आगे कई जनपदों में गंगा की धारा में बड़ी संख्या में शव तैरते नजर आए थे। इसके अतिरिक्त यहां सीवेज, फैक्ट्रियों का केमिकलयुक्त पानी, गंदा पानी व अन्य कई नाले गिरने से भी भीषण प्रदूषण होता है। इसके साथ ही गंगा की जलधारा में पानी का प्रवाह कम होने से नीली हरी शैवाल अपना कब्ज़ा जमा लेती है। इन कारणों से भी गंगा जल का रंग बदल जाता है।

जाँच में जुटे वैज्ञानिक

काशी में अब मां गंगा के जल का रंग हरा हो गया है। प्रथम दृष्टया इसका कारण धारा का प्रवाह कम होना माना जा रहा है। लेकिन वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और शोधार्थी अब इस पर शोध करेंगे। शोध करके गंगा जल का रंग बदलने के कारणों का पता लगाएंगे। हालांकि इसके पीछे कुछ लोगों का प्रदूषण का होना भी मानना है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट आॅफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डवलपमेंट विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ कृपा राम ने न्यूज ट्रैक के फेसबुक लाइव में बताया कि गंगा में शैवाल पाए जाने से पता चल रहा है कि पानी में पौधों का विकास करने वाले न्यूट्रिएंट की मात्रा अधिक हो गई है।

इसका मतलब है कि गंगा के जल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस जैसे तत्व कहीं से आकर एकत्र हो गए हैं। यह खेतों से बहकर भी आ सकते हैं और शहर की सीवेज या उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जन का भी हिस्सा हो सकते हैं।

उन्होंने बताया कि गंगा नदी के तल में शैवाल उगने की वजह जल में न्यूट्रिएंट की मौजूदगी के साथ ही पानी के प्रवाह में कमी और सूरज की किरणों का सीधे पड़ना है। मार्च—अप्रैल से लेकर मई तक का मौसम काई या शैवाल के उगने का सबसे अनुकूल समय होता है। इस मौसम में सूरज की किरणें सीधी जमीन पर पड़ती हैं।

गर्मी अधिक होती है और पानी भी कम हो जाता है। गंगा नदी में भी पानी इन दिनों कम हो गया है। ऐसे में शैवाल उगने की यह बड़ी वजह हो सकती है लेकिन अभी इसकी विस्तृत जांच होनी बाकी है कि क्या यह खेतों से बहकर आए पानी के साथ रासायनिक खाद की वजह से हुआ है या उद्योगों से निकला प्रदूषित जल है।



\
Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story