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सिसक रही कबीरचौरा की गली, निःशब्द है संगीत घराना
कबीरचौरा की वह गली जिसमें पंडित राजन मिश्र जन्म में पले बढ़े और बढ़े, उनके निधन की सूचना पर जैसे स्तब्ध हो गई है.
वाराणसी: कबीरचौरा की वह गली जिसमें पंडित राजन मिश्र जन्म में पले बढ़े और बढ़े, उनके निधन की सूचना पर जैसे स्तब्ध हो गई है. इस गली में रहने वाले कलाकार परिवारों का भी यही हाल है.
पद्मश्री के नाम से मशहूर ये गली अपने बेटे के निधन से ख़ामोशी की चादर ओढ़े है. उनके आवास पर परिवारीजन रो-रोकर बेहाल हैं. बड़ी बहन इंदुमति के लिए के लिए ये किसी सदमे से कम नहीं था. उनकी आंखों से अश्रुधारा थमने का नाम नहीं ले रही थी.
पंडित जी श्राद्ध देश-विदेश कहीं भी रहे लेकिन तन-मन से बनारसी ही रहे. उनका दिल हमेशा बनारस के लिए धड़कता था. करीब चार दशक पहले वह दिल्ली में जाकर बस गए, लेकिन हर साल होली और जन्माष्टमी पर अपने शहर और घर आते ही रहते थ.
संगीत की महफिल सजा दे और अपने शिष्यों को नई चीज सिखाते थे. पंडित राजन मिश्रा में कूट-कूट कर बनारसीपन भरा था. बनारसी सिल्क का कुर्ता, मुंह से रिसता बनारसी पान, धवल चांदनी सरीखे सिर के बाल. पहचान थी पंडित राजन मिश्रा की.
हमेशा याद रही बनारस की कबीरचौरा
उनके निधन के बाद बनारस का संगीत जगत शोक में डूबा हुआ है. पद्म श्री राजेश्वर आचार्य कहते हैं कि ऐसे कलाकार बहुत कम होते हैं जिनका प्रभाव शास्त्रीय संगीत से अनभिज्ञ लोगों पर भी उतना ही पड़ता है जितना कि भिज्ञ पर पड़ता है,ऐसे ही से हमारे पंडित राजन मिश्र. मैंने उन्हें उनके बचपन से ही जाना और समझा. इतने बड़े कलाकार होते हुए भी उनमें लेस मात्रा अभिमान नहीं था. उन्होंने कभी अहंकार का प्रदर्शन नहीं किया.
पद्म विभूषण छन्नूलाल महाराज कहते हैं कि राजन मिश्रा का जाना आज बहुत खल रहा है. आज उनके अचानक चले जाने से समझ में नहीं आता कि जीवन क्या है. वाकई पंडित राजन मिश्रा ऐसे जिंदादिल व्यक्तित्व थे जिनसे मोह अनायास ही सो जाता था.
पद्मभूषण राजन मिश्रा उम्र मुझसे छोटे थे और रिश्ते में मेरे सारे लगते थे.दिल्ली में रहते हुए भी वह बनारस की कबीरचौरा को नहीं भूले. उनका दिल्ली का रहन-सहन अलग था लेकिन जब बनारस आते थे तब खाटी कबीरचौरामय हो जाते.