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Manikarnika Ghat Ki Holi: मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच खेली जाएगी चिता भस्म की होली, तैयारियां पूरी

Manikarnika Ghat Ki Holi: मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है, हजारों हजार की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंचता हैं। ऐसी मान्यता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं।

Ajit Kumar Pandey
Published on: 4 March 2025 10:08 PM IST
Holi to be played at Manikarnika Ghat in Kashi preparations complete Varanasi News in hindi
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काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच खेली जाएगी चिता भस्म की होली (Photo- Social Media)

Varanasi News: रगंभरी एकादशी के दूसरे दिन महामशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाएगी चिता भस्म की होली। सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ चीता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग जाते हैं और जहां दुःख व अपनों से बिछडने का संताप देखा जाता है, वहां उस दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है। हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोजकर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हुए जाता है।

मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाती है चिता भस्म की होली

जब समय आता है बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है, हजारों हजार की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंचता हैं। ऐसी मान्यता है कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं। तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पूण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पूण्य बांटते हैं।


अंत में बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते हैं । वर्षों की यह परम्परा अनादि काल से यहां भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं। इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महामशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने जो पिछले 24 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक जन सहयोग से पहुंचाया है।


सभी देवता इस उत्सव में होते हैं शामिल

गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि "काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना विदाई कराकर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवासी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्‍भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे स्टार देवता, यछ गन्धर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत प्रेत, पिशाच किन्नर दृश्य अदृश्य शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है।

लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुशियों का ध्यान नहीं देते अंत में सबका बेडापार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चीता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को हर्षउल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।

क्योंकि इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं और इस अद्भुत अद्वितीय अकल्पनीय होली को देखकर, खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के शास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मशात करते हैं।

इस बातचीत में प. विजय शंकर पाण्डेय संजय प्रसाद गुप्ता दीपक तिवारी करन जायसवाल हंसराज चौरसिया इत्यादि लोग शामिल थे।

Shashi kant gautam

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