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Varanasi News: महाश्मशान में मसाने की होली को अधार्मिक कृत्य कहना निंदनीय - कपाली बाबा

Varanasi News: काशी उत्सवधर्मा है यहां मृत्यु का भी उत्सव मनाया जाता है इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक माघ मेले के बाद साधु सन्यासी महादेव की प्रसन्नता के लिए मसाने की होली खेलते हैं।

Ajit Kumar Pandey
Published on: 9 March 2025 7:12 PM IST
Calling Masanes Holi irreligious act in Mahashmashan is condemnable - Kapali Baba
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महाश्मशान में मसाने की होली को अधार्मिक कृत्य कहना निंदनीय - कपाली बाबा (Photo- Social Media)

Varanasi News: उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी वाराणसी में आज हरिश्चंद्र घाट पर आयोजित पत्रकार वार्ता में सामाजिक, आध्यात्मिक संस्था अघोरपीठ हरिश्चंद्र घाट काशी द्वारा पीठ के पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली "कपाली बाबा" ने कहा कि "श्मशान की होली जिसे मसाने की होली भी कहते हैं, काशी की धार्मिक परमाराओं में एक विशेष स्थान रखती हैं।

लगभग चार दशकों से मैं भी इस परंपरा का निर्वहन आदरणीय नागा संन्यासियों व अघोर परंपरा के साधक संन्यासियों व अन्य विरक्त परम्पराओं के संतो के साथ ही किन्नर समुदाय के साथ करता रहा हूं।"

कपाली बाबा ने कहा कि "यह एक पवित्र आयोजन है, यह यक्ष, गंधर्व, किन्नर, प्रमथ गणों, झोटिंग गणों, नागा संन्यासियों व अघोर साधुओं का पर्व है। यह होली विरक्तों और समाज के उस वर्ग के लिए है जिसे समाज में नहीं सिर्फ महादेव के दरबार में सम्मान मिला है उन्होंने कहा कि भगवान शिव समस्त वर्जनाओं से मुक्त है विधि और निषेध शिव के लिए लागू नहीं होते।

संपूर्ण काशी को ही महाश्मशान कहा गया है जो कि भगवान शिव के आनंदमय कोष से निर्मित है अतः इसे आनंदवन भी कहा गया है। यह अविमुक्त क्षेत्र माना गया है, यह महादेव के त्रिशूल पर बसी है अतः यह सामान्य नियमों को स्वीकार नहीं करती।

जहां मृत्यु का भी उत्सव मनाया

काशी उत्सवधर्मा है यहां मृत्यु का भी उत्सव मनाया जाता है इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक माघ मेले के बाद साधु सन्यासी महादेव की प्रसन्नता के लिए मसाने की होली खेलते हैं।

कपाली बाबा ने कहा कि प्रत्येक धार्मिक नगरों की अनूठी परंपराएं है जैसे बरसाने की लट्ठमार होली, ब्रज की लड्डुओं की होली, श्रीनाथ जी की फूलों की होली, एकलिंग जी की विशिष्ट मेवाड़ी होली, इसे लोक मान्यताओं के अनुसार देखना चाहिए।

इसी प्रकार से भूत भावन भगवान शंकर का मुख्य श्रृंगार चिता - भस्म ही है। अतः इस काशी रूपी महाश्मशान में मसाने की होली को अधार्मिक कृत्य,

असामाजिक आयोजन कहना निंदनीय है

कुछ विधर्मी द्वारा इसे वीभत्स रूप देने का प्रयास किया जा रहा जो उचित नहीं है। जानकारी के अनुसार दोनों ही श्मशान घाटों पर भगवान मसान की विशेष पूजा, नारायण स्वरूप भगवान दत्तात्रेय की पूजा चिता - भस्म से करने के बाद महात्मागण चिता - भस्म रूपी शिव निरमाल्य को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।

कपाली बाबा ने कहा कि कालांतर मे इस आयोजन ने वृहद स्वरूप धारण कर लिया है। इसमें आयोजकों द्वारा किसी भी प्रकार के नशे से संबंधित व्यवस्था नहीं की जाती हैं और न ही किसी प्रकार के असामाजिक कृत्य को बढ़ावा दिया जाता हैं।

Shashi kant gautam

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