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Varanasi News: काशी में संस्कृति संसद 2023 आज से, यहां पढ़ें विस्तार से

Varanasi News: काशी में संस्कृति संसद से अयोध्या की भावभूमि तैयार कर विश्व को मिलेगी शाश्वत चिंतन की दृष्टि

Shiv Pratap Shukla
Published on: 2 Nov 2023 9:15 AM GMT
Varanasi Kashi Culture Parliament 2023
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Varanasi Kashi Culture Parliament 2023 

Varanasi News: भगवान विश्वेश्वर की भूमि और संस्कृति की राजधानी काशी में संस्कृति संसद का आयोजन स्वयं में एक सिद्धि है। इसमें कोई संशय तो हो ही नही सकता कि अपने उद्देश्यों में यह अतीव सफल होगा। आज जब हम इस अत्यंत महत्वपूर्ण सारस्वत यज्ञ के शुभंकर के लोकार्पण के अवसर पर यहां एकत्र हैं तो ऐसे अनेक विंदु हैं जो एक भारतीय के रूप में मेरे मन में बार बार उभर भी रहे हैं और बहुत सलीके से ऊर्जस्वित भी कर रहे हैं। जिस पवित्र सनातन तत्व पर व्यापक विमर्श और उसकी अविरल यात्रा को लेकर यह आयोजन किया जा रहा है , मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इससे मंथन के बाद जो संदेश निकल कर सामने आएगा उसका प्रभाव केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। मुझे बताया गया है कि सनातन जीवन संस्कृति के लिए सर्वदा मंगल स्वर प्रदान करने वाली अखिल भारतीय संत समिति, हमारी संत परंपरा की अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और काशी विद्वतपरिषद के साथ महामना मदन मोहन मालवीय जी जैसे सनातन राष्ट्र पुरुष द्वारा स्थापित गंगा महासभा ने यह आयोजन किया है। यह इस श्रृंखला का पांचवां सोपान है, यह और भी महत्वपूर्ण है। आयोजन काशी में हो रहा है तो इसमें कोई संदेह ही नहीं कि इससे निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा संदेश विश्व को मिलने वाला है।

यह सभी की जानकारी में है कि हमारे देश ने अभी अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे किए हैं। इस अमृत वर्ष के साथ ही हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री ने अब से 2047 तक की अवधि को अमृत काल के रूप में सुनिश्चित किया है। यह संयोग ही है कि जिनके नेतृत्व में भारत आज नित नए कीर्तिमान गढ़ रहा है , भारत की संसद में वह इसी धरती का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। आज विश्व में जिस नायकत्व के साथ भारत की स्थापना हो चुकी है वह निश्चित रूप से हमारे इसी नेतृत्व के परिश्रम और दूरदृष्टि तथा संकल्प शक्ति का परिणाम है। भारत ने अभी जी20 का शिखर सम्मेलन आयोजित किया है और नई दिल्ली घोषणापत्र के माध्यम से जो संदेश दिया है उससे आप सभी अवगत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के एक पृथ्वी , एक परिवार के उद्घोष से अब विश्व सहमत भी हो रहा है और अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान भारतीयता के इसी सनातन तत्व में मिलने उम्मीद दुनिया ने लगा रखी है।


जब हम भारतीय अथवा सनातन जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो यह ठीक से समझना चाहिए कि यह अस्तित्व और संस्कृति के रूप में यह सृष्टि के आरंभ से मानव सभ्यता की अब तक की यात्रा का ऐसा प्रमाण है, जिसके बिना मनुष्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक पृथ्वी , एक परिवार का हमारे नेतृत्व का उद्घोष केवल एक नारा नहीं है। ऐसा हजारों वर्षों से होता आ रहा है। सनातन का उद्घोष ही यही है।

वसुधैव कुटुंबकम्, विश्व बंधुत्व , सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः जैसे वैश्विक उद्घोष सदा से हमारी संस्कृति करती आई है। भारत के यही संस्कार हैं कि हमने कभी भी कहीं भी पंथ, संप्रदाय या मजहब के आधार पर मनुष्य को मानव भावना से अलग करने और समझने की कोशिश नहीं की। हमारा धर्म मानव ही नही अपितु समस्त जीवों और वनस्पतियों तक के कल्याण का है। यही धर्म का मूल है और इसीलिए यह सनातन है। इसको अब आधुनिक विश्व भी स्वीकार कर रहा है। विश्व अब इस तथ्य को आधार बनाकर ही आगे बढ़ रहा है कि अपौरुषेय वेदों से संचालित जीवन की सनातन संस्कृति से ही अस्तित्व अथवा साहस्तित्व का निर्धारण संभव है। यह संस्कृति केवल किसी कर्मकांड या पूजापद्धति अथवा उपासना का मार्ग नहीं दिखाती बल्कि सृष्टि में जड़ चेतन जो कुछ भी है उसकी सुरक्षा और संरक्षा कैसे की जा सकती है। इस संस्कृति के लिए जितने महत्वपूर्ण मनुष्य की प्रजाति है उतने ही महत्व के साथ समस्त वनस्पतियां, जंगल, प्राणी, पहाड़, नदियां यानी पृथ्वी, प्रकाश, पवन, वायु , आकाश और अग्नि जैसे सभी पांच महाभूतों की सुरक्षा और संरक्षा आवश्यक है। आज विश्व केवल मानव समुदाय के लिए चिंतित नहीं है बल्कि पर्यावरण के सभी क्षेत्रों में बढ़ चुके भयानक प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, अंतरिक्ष के प्रदूषण, ओजोन परत में विघटन आदि बहुत बड़ी चिंता का विषय बन चुके हैं । जिनका समाधान केवल भारतीय सनातन संस्कृति ही उपलब्ध करा सकती है।


यह सत्य है कि इस सदी में अब दुनिया की गति जितनी तेज हुई है, उसी अनुपात में मनुष्य जीवन के संकट भी बढ़े हैं। आज विश्व में दो स्थानों पर प्रत्यक्ष युद्ध लड़े जा रहे हैं। इसके साथ ही अनेक राष्ट्र परोक्ष रूप से इन युद्धों में शामिल हो चुके हैं। मानव जीवन की सबसे भीषण त्रासदी , कोविड के प्रकोप से अभी दुनिया उबर भी नहीं पाई थी कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू हो गया। विश्व की समस्त आपूर्ति व्यवस्था धराशाई हो गई। इसी बीच हमास का इजरायल पर आतंकी हमला और अब इजरायल द्वारा आतंक के खिलाफ छिड़े युद्ध की स्थिति। स्वाभाविक है कि मानवीय और अमानवीय संघर्षों में पिसेगी मनुष्यता और प्रकृति ही।

वैश्विक परिदृश्य अब ऐसा बन चुका है कि सभी की निगाहें अब उम्मीद से भारत पर ही टिकी हैं। कारण यह कि इस सृष्टि के संचालन की जो प्राचीन भारतीय दृष्टि है उसी में जगत को अपने अस्तित्व के संरक्षण की आशा दिख रही है। बीते लगभग ढाई हजार वर्षों में विश्व ने अनेक संस्कृतियों या सभ्यताओं का उदय और पतन देखा है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक अनेक महान सभ्यताएं कैसे कैसे अस्तित्वविहीन होती गई हैं , इसका इतिहास विश्व के सामने है। उनमें से अधिकांश ऐसी हैं जिनका कोई नामलेवा तक नहीं बचा है। ऐसे में विश्व देख रहा है कि भारत की सनातन संस्कृति की प्राचीनता लिए सर्वाधिक युवा ऊर्जा से भरपूर भारत वर्ष अब विश्व के संचालन और नए वर्ल्ड ऑर्डर के निर्माण के लिए बिल्कुल तैयार है। आर्थिक, सामरिक और संख्याबल के साथ ही अपनी प्राचीन ज्ञान और कौशल की विराट परंपरा के साथ इस युवा भारत के सामने समस्त वैश्विक चुनौतियां हैं जिनके समाधान के सभी तत्व भी इसी के पास हैं।

इसीलिए जब हमारे स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 2047 के विश्वगुरू भारत की बात करते हैं तो बहुत यकीन के साथ करते हैं क्योंकि आने वाले 25 वर्षों में दुनिया के लिए भारतीयता के तत्व ही संरक्षक बन कर इसे सम्हाल पाएंगे। सनातन पर विमर्श के लिए आयोजित की जा रही इस संस्कृति संसद में हमारी समग्र सनातन विरासत के सभी स्तंभ काशी में एकत्र होकर चिंता करने वाले हैं।

इस चिंता की तुलना हम उस अवस्था से भी कर सकते हैं जब कलियुग के आरंभ में मानव संस्कृति की सुरक्षा और संरक्षा के लिए हमारे सभी ऋषियों ने एकत्र होकर गंभीर विमर्श किया था और उस विमर्श के बाद अनेक ग्रंथ अस्तित्व में आए। जिनको आज भी सनातन का आधार मान कर उन सभी ग्रंथों पर चर्चाओं से समाधान निकाले जा रहे हैं। जब मैं यह कह रहा हूं कि वैश्विक चुनौतियों का समाधान केवल हमारे पास ही है तो इसका बहुत बड़ा आधार है। अभी जब हम सब ने चंद्रयान को भेजा और चंद्रमा की सतह पर वह सफलता पूर्वक उतरा उसके बाद इसरो के प्रमुख सोमनाथ के वक्तव्यों को देखिए। एक तो उन्होंने सबसे पहले संस्कृत में वक्तव्य दिया।

दूसरी बात उन्होंने यह कही कि यह सब कुछ करने की दिशा उनको वेदों और सनातन ग्रंथों से प्राप्त हुई है। इसको और भी स्पष्टता से कहा जा सकता है कि पश्चिम के अधिकांश वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि भारत के ग्रंथों ने ही उन्हें उनके कार्य के लिए दिशा दी। आइंस्टीन से लेकर कई अन्य वैज्ञानिकों ने अपनी आत्मकथाओं में लिखा भी है। यह सर्वविदित है कि वेद से उत्पन्न दर्शन को व्याख्यायित करते हुए भारत ने जब अपने 6 आस्तिक और 3 नास्तिक दर्शन तलाश लिए उसके बाद पहली बार ईसा से 600 साल पहले पश्चिम ने दर्शन की अवधारणा समझी और उस पर कार्य शुरू किया। इसी भारत के दर्शन में आज विश्व में प्रचलित सभी विषय समाहित हैं, जैसे दर्शन ने जब मन की चिंता की तो हमें मनोविज्ञान विषय मिला। दर्शन ने राजनीति की चिंता की तो राजनीति शास्त्र मिला। दर्शन ने अर्थ की चिंता की तो अर्थ शास्त्र मिला। दर्शन ने जब जीव की चिंता की तो वही से जीवन विज्ञान मिला जिसकी अनेक शाखाएं अब कार्य कर रही है। प्राणी शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, गणित , अंक शास्त्र, खगोल विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान , अभियांत्रिकी, अंतरिक्ष विज्ञान आदि समस्त विषयों का मूल दर्शन ही है और दर्शन केवल भारत में उत्पन चिंतन प्रणाली है। इस दर्शन का आधार ही सनातन संस्कृति है। ऐसे में जब काशी में सनातन की चार प्रमुख संस्थाएं, अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, अखिल भारतीय गंगा महासभा और काशी विद्वत परिषद एक साथ बैठ कर वर्तमान विश्व परिदृश्य और सनातन की स्थिति पर चिंतन करेंगी तो इस चिंतन और मंथन से जो तत्व निकलेगा उससे केवल भारत की ही नहीं, विश्व की भी अनेक गंभीर समस्याओं का समाधान प्राप्त होगा।

मां गंगा के पावन आंचल में, भगवान विश्वनाथ की धरती पर अपने राष्ट्र पुरुष और यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीकी कर्म स्थली पर इस आयोजन के शुभंकर के लोकार्पण का यह अत्यंत शुभ कार्य करने के लिए आपने मुझे अवसर प्रदान किया, यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय है। इसके लिए स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती जी और गोविंद शर्मा जी और संस्कृति पर्व के संपादक संजय तिवारी के प्रति मैं हार्दिक आभार ज्ञापित करता हूं। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री जी द्वारा भारत को विश्वगुरु बनाने का जो स्वप्न देखा गया है उस को साकार करने की दिशा में काशी का यह आयोजन एक गंभीर प्रयास है जिसका सुफल सभी के लिए कल्याणकारी होगा।

आयोजन की सफलता की कामनाओं के साथ आप सभी के प्रति आभार।

धन्यवाद

वन्देमातरम।।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल हैं।)

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