TRENDING TAGS :
Varanasi News: मसान की होली साधु-संतों-अघोरियों के लिए ही छोड़ दें, बोले- संत दिगंबर खुशाल भारती
Varanasi News: सोशल मीडिया के बहकावे में आकर नई पीढ़ी के काशीवासियों को कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। मसान की होली उनके लिए नहीं है। इसे साधु-संतों-अघोरियों के लिए ही छोड़ दें।
संत दिगंबर खुशाल भारती (photo: social media )
Varanasi News: काशीवासी बाबा विश्वनाथ से अपने विशेष संबंध का निर्वाह करते हुए जब उनके विवाह का उत्सव मनाते हैं तो लोकाचार भी करते हैं। तिलक, तेल हल्दी, विवाह के बाद गौना-विदाई करने की परंपरा काशी विश्वनाथ मंदिर के महांत परिवार की अगुवाई में पिछले कई सौ वर्षों से काशी के गृहस्थ भक्त निभाते आ रहे हैं। यही काशी का गौरव है, काशी की विशिष्टता है। यह परंपरा आगे भी बनी रहे इसका दायित्व काशीवासियों का है।
सोशल मीडिया के बहकावे में आकर नई पीढ़ी के काशीवासियों को कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। मसान की होली उनके लिए नहीं है। इसे साधु-संतों-अघोरियों के लिए ही छोड़ दें। यह बातें श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा की उदयपुर शाखा के प्रभारी संत दिगंबर खुशहाल भारती ने कहीं। वह बुधवार को मणिकर्णिका घाट स्थित अपने कैंप में मीडिया से बातचीत कर रहे थे। नागा संत दिगंबर खुशहाल भारती ने कहा कि काशी की जो परंपराएं हैं उन परंपराओं को उनके मूल स्वरूप में ही आगे बढ़ते रहना आवश्यक है। काशी एकमात्र ऐसी नगरी है जहां बाबा विश्वनाथ अपने गृहस्थ और आदियोगी दोनों ही स्वरूपों में विराजमान हैं।
काशीवासियों का बाबा विश्वनाथ से संबंध
इस अद्वितीय नगरी की शास्त्रीय और लोकपरंपराएं भी अद्वितीय हैं। काशीवासियों का बाबा विश्वनाथ से संबंध सिर्फ भक्त और भगवान तक ही सीमित नहीं है। यहां के लोग बाबा विश्वनाथ को अपने दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानते हैं। यहां के लोगों का कोई भी काम बाबा के बिना होता ही नहीं है। मै काशीवासियों को याद दिलाना चाहता हूं कि काशी में गृहस्थों और संन्यासियों द्वारा बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने की अलग-अलग लोकपरंपरा रही है।
रंगभरी एकादशी की तिथि पर काशीवासी महंत आवास पहुंचकर गौरी-शंकर-गणेश के साथ होली खेलते हैं। उसके ठीक अगले महाश्मशान पर बाबा के साथ संन्यासियों द्वारा होली खेलने की परंपरा है। गृहस्थों को गलती से भी महाश्मशान की होली में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। इससे बड़ा दोष पड़ता है। मै काशीवासियों से स्पष्ट आग्रह करना चाहता हूं कि वे रंगभरी एकादशी के दिन महंत आवास पर शिव-पार्वती-गणेश के साथ होली खेलें। परंपरानुसार बाबा की पालकी महंत आवास से विश्वनाथ मंदिर तक लेकर जाएं। द्वादशी की तिथि पर साधु-संन्यासी मसान पर बाबा के साथ होली खेलेंगे।
काशीवासीक तो सीधे-सीधे बाबा के ही दूत
मै एक बार पुनः कहना चाहता हूं कि काशी की शास्त्रीय और लोक परंपराओं का मूलरूप में निर्वाह करने का दायित्व काशीवासियों का ही है। शास्त्र और लोक के इस संतुलित सामन्जस्य के आधार पर ही काशी का संपूर्ण विश्व में श्रेष्ठ है, सनातन का गर्व है। हम नागा साधु बाबा के गण हैं लेकिन काशीवासीक तो सीधे-सीधे बाबा के ही दूत हैं। वे बाबा के दूत हैं इसीलिए ये काशी में हैं और हम सब गण है इसलिए हिमालय की कंदराओं में हैं। काशीवासी बनाने की भगवान शिव द्वारा की गई कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर कालचक्र हमें समय-समय पर देता रहता है। वर्तमान का सांस्कृतिक संक्रमण काल हमारी परंपराओं और मान्यताअ के सामने चुनौती बनकर खड़ा है। इसे स्वीकार करते हुए देवाधिदेव महादेव पर पूर्ण विश्वास रख कर प्रत्येक काशीवासी को अपना कर्तव्य निभाना होगा। धर्मरक्षा के लिए बहुत आवश्यक हुआ तो हम अगले कुम्भ से पहले काशी लौटने पर विचार कर सकते हैं।