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Varanasi News: रगंभरी एकादशी के दूसरे दिन मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली, दिखा दिव्य व अलौकिक दृश्य

Varanasi News: हजारों की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच रहा था। यह कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं।

Ajit Kumar Pandey
Published on: 11 March 2025 10:01 PM IST
Varanasi News: रगंभरी एकादशी के दूसरे दिन मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली, दिखा दिव्य व अलौकिक दृश्य
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रगंभरी एकादशी के दूसरे दिन महामशान मणिकर्णिका घाट पर खेली गई चिता भस्म की होली   (photo: social media )

Varanasi News: वाराणसी मे सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ चिता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग गए थे। जहा दुःख व अपनो से बिछडने का संताप देखा जाता था वहां आज के दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है। हर शिवगण अपने अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हुए जाता है। संपूर्ण विश्व में काशी का मणिकर्णिका घाट ही एक ऐसा महा मसान है जहां दुःख नहीं उत्सव होता हैं। ये वो मंगल स्थान है जहां लोग देह त्यागने आते है, फिर भी जिनकी किस्मत में होता हैं वहीं यहां देह त्याग पाता हैं।

जब समय आता है बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था। हजारों की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच रहा था। यह कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं। तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुन्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पुण्य बांटते हैं। अंत बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है। वर्षों की यह परम्परा अनादिकाल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं।

काशी में यह मान्यता है

इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने ,जो पिछले 24 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने-कोने तक जन सहयोग व आप सभी मीडिया कर्मियों के विशेष सहयोग आपार प्रेम से पहुंचा पा रहे हैं। गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना विदाई करा कर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्‍भ माना जाता है।


उत्सव में सभी होते हैं शामिल

इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी देवता, यच्छ, गन्धर्व, मनुष्य। और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत प्रेत पिशाच, किन्नर दृश्य अदृश्य शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं आम जन मानस के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनों की खुसियों का ध्यान नहीं देते अंत सब का बेडा पार लगाने वाले शिवशंकर उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता हर्ष उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। चुकी इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाया जाता है, जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। इस अद्भुत अद्वितीय अकल्पनीय होली को देखकर खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्म शांत करते हैं।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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